चंद्रपुर शहर का हरा-भरा, शांत और निसर्गरम्य रामबाग ग्राउंड आज एक बड़े जनआंदोलन का गवाह बना। वर्षों से खेल और सामाजिक गतिविधियों का केंद्र रहा यह ऐतिहासिक मैदान अचानक प्रशासन की नजरों में आ गया, और यहां जिला परिषद की नई इमारत का निर्माण कार्य शुरू कर दिया गया। जैसे ही स्थानीय नागरिकों और युवाओं को इस बात की जानकारी मिली, पूरे क्षेत्र में आक्रोश की लहर दौड़ गई।
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प्रशासन से कई बार की गई अपीलों के बावजूद जब निर्माण कार्य नहीं रुका, तो आज बुधवार 7 मई की सुबह 9 बजे, दर्जनों नागरिकों और खिलाड़ियों ने एकजुट होकर निर्माण स्थल पर पहुंचकर काम बंद करवा दिया। निर्माण के लिए खुदाई कर बनाया गया विशाल गड्ढा जनता के रोष का कारण बन गया।
इस विरोध में पूर्व नगरसेवक पप्पू देशमुख और राजेश अडुर समेत श्रीकांत भोयर, रविंद्र माडावार, दौलत साटोणे, नवनाथ देरकर, प्रवीण कुमार वडलोरी, माधव डोडाणी, तपन दास, कोमील मडावी, राहुल ठाकरे, प्रफुल बैरम, अक्षय येरगुडे, अमुल रामटेके, अमोल घोडमारे जैसे सैकड़ों लोग शामिल थे।
“रामबाग हमारा है, कोई कब्जा नहीं करेगा!”
स्थानीय लोगों ने साफ शब्दों में प्रशासन को संदेश दिया कि रामबाग ग्राउंड पर किसी भी तरह का सीमेंट-कॉन्क्रीट का जंगल नहीं बनने दिया जाएगा। यह ग्राउंड पिछले 50 वर्षों से आम जनता और खिलाड़ियों की सांसों में बसा हुआ है। इसका प्राकृतिक सौंदर्य और खुलापन ही इसकी पहचान है।
आज होगी निर्णायक बैठक
भविष्य की रणनीति तय करने के लिए कल 8 मई, गुरुवार को सुबह 7 बजे ‘रामबाग मैदान बचाव संघर्ष समिति’ के बैनर तले एक महत्त्वपूर्ण बैठक बुलाई गई है। इस बैठक में शहर के सभी जागरूक नागरिकों, खिलाड़ियों, युवाओं और सामाजिक संगठनों से उपस्थित रहने की अपील की गई है।
पूर्व नगरसेवक पप्पू देशमुख ने कहा, “हम इस ऐतिहासिक मैदान को नहीं गवां सकते। यह केवल एक ग्राउंड नहीं, बल्कि हमारी पहचान, हमारी साँसें और हमारी अगली पीढ़ी का भविष्य है।”
क्या प्रशासन जनता की आवाज सुनेगा?
रामबाग ग्राउंड की लड़ाई अब केवल एक जमीन की नहीं, बल्कि आम जनता के अधिकारों, पर्यावरण संरक्षण और भावनाओं की लड़ाई बन चुकी है। देखना यह होगा कि प्रशासन इस जनभावना के आगे झुकता है या टकराव की राह चुनता है।