Cruel fate story: कभी-कभी जिंदगी इतनी बेदर्द हो जाती है कि जो इंसान दूसरों की जान बचाने में लगा हो, उसी की जान कुछ ही घंटों बाद एक सड़क हादसे में चली जाए – और ऐसा ही हुआ विनोद आतकोटवार के साथ। खराळपेठ गांव के रहने वाले विनोद आतकोटवार ने इंसानियत की मिसाल पेश करते हुए 18 मई की सुबह एक सड़क हादसे में घायल तीन लोगों की मदद की। उन्होंने ना सिर्फ घायलों को अस्पताल पहुंचाया बल्कि गंभीर रूप से जख्मी लोगों को चंद्रपुर रेफर कराने में भी अहम भूमिका निभाई। लेकिन नियति ने कुछ और ही ठान रखा था – उसी शाम विनोद खुद एक सड़क हादसे का शिकार हो गए और घटनास्थल पर ही उनकी मौत हो गई।
Whatsapp Channel |
सुबह की मानवता, शाम की त्रासदी
गोंडपिपरी-खराळपेठ मार्ग पर 18 मई की सुबह शैलेश फुलझेले, गुरुदास चटारे और दामु गुडपले की दो बाइकों की टक्कर में गंभीर रूप से घायल हो गए। उसी रास्ते से गुजर रहे विनोद आतकोटवार ने बिना समय गंवाए पुलिस और गांववालों की मदद से घायलों को गोंडपिपरी के अस्पताल पहुंचाया।
विनोद यहीं नहीं रुके – उन्होंने नाते-रिश्तेदारों के साथ मिलकर गंभीर मरीजों को चंद्रपुर रेफर करने का भी इंतज़ाम किया। सुबह से शाम तक लोगों की मदद में जुटे विनोद जब गांव लौटे, तभी उन्हें शैलेश फुलझेले की मौत की खबर मिली। गांव में शोक की लहर दौड़ पड़ी।
वापसी में मौत बनकर आई एक ट्रैक्टर
शाम होते-होते विनोद फिर गोंडपिपरी की ओर निकले। रास्ते में खड़े एक ट्रैक्टर से उनकी बाइक टकरा गई। टक्कर इतनी भीषण थी कि विनोद की मौके पर ही मौत हो गई। जिस व्यक्ति ने सुबह तीन जिंदगियों को बचाने की पूरी कोशिश की, वह खुद शाम को एक दर्दनाक हादसे में जिंदगी की जंग हार गया।
गांव में मातम, हर चेहरा उदास
खराळपेठ गांव में एक ही दिन में दो मौतों से मातमी सन्नाटा छा गया है। कुछ दिन पहले इसी सड़क पर एक और युवक की जान गई थी। हादसों की इस श्रृंखला ने गांववालों को झकझोर कर रख दिया है। विनोद आतकोटवार पेशे से राजमिस्त्री थे और सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। उनके दो छोटे बेटे हैं और घर की आर्थिक स्थिति भी कमजोर है। अब उनका परिवार अनिश्चित भविष्य की ओर देख रहा है।
एक दिन, दो जनाज़े – गांव में शोक की लहर
18 मई को हुई दोनों मौतों – विनोद आतकोटवार और शैलेश फुलझेले – के बाद दूसरे दिन वढोली स्थित अंधारी नदी किनारे दोनों का अंतिम संस्कार गांववासियों की उपस्थिति में किया गया। यह दिन न केवल खराळपेठ बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए एक काला दिन साबित हुआ – जहां इंसानियत और हादसे दोनों ने अपने चरम रूप दिखाए।
इस खबर ने न केवल एक आम आदमी की बहादुरी और मानवता को उजागर किया, बल्कि हमारी लचर सड़क सुरक्षा व्यवस्था पर भी सवाल खड़े किए हैं। एक सड़क, एक ही मार्ग और कुछ ही दिनों के भीतर तीन जानें – क्या स्थानीय प्रशासन और परिवहन विभाग अब भी सोता रहेगा?
विनोद आतकोटवार की कहानी हम सबके लिए एक प्रेरणा भी है और चेतावनी भी – कि हम एक-दूसरे की मदद तो करें, लेकिन अपने सुरक्षा के प्रति भी सतर्क रहें।
यह खबर सिर्फ एक दुर्घटना नहीं, बल्कि समाज के लिए एक आईना है – जिसमें संवेदनशीलता, दर्द और सिस्टम की लापरवाही तीनों साफ दिखाई देते हैं।