Wardha River Water Level Decline: Effects on Ghugus Area Agriculture, Industries & Ecology | वर्धा नदी विदर्भ क्षेत्र की प्रमुख नदियों में से एक है, जो कई जिलों के लिए पेयजल और सिंचाई का प्रमुख स्रोत है।जिले की औद्योगिक नगरी घुग्घूस में यह नदी जीवनदायिनी मानी जाती है, क्योंकि यहां स्थित वेकोलि, एसीसी, लॉयड्स और अन्य उद्योगों के साथ-साथ शहरी और ग्रामीण आबादी इसी नदी के जल पर निर्भर है।
Whatsapp Channel |
हालांकि, इस वर्ष मार्च महीने की शुरुआत से ही नदी का जल स्तर तेजी से घटने लगा है। इस स्थिति ने उद्योगों, किसानों और स्थानीय नागरिकों के लिए चिंता बढ़ा दी है। विशेषज्ञों का मानना है कि नदी से अत्यधिक जल दोहन, अवैध रेत खनन और जल स्रोतों का अपर्याप्त संरक्षण इस संकट के मुख्य कारण हैं।
औद्योगिक क्षेत्र पर प्रभाव
घुग्घूस क्षेत्र में कई बड़े उद्योग स्थापित हैं, जिनकी जलापूर्ति मुख्य रूप से वर्धा नदी से होती है। इनमें वेकोलि वणी क्षेत्र, एसीसी सीमेंट कंपनी और लॉयड मेटल स्टील कंपनी प्रमुख हैं।
» वेकोलि वणी क्षेत्र: इस क्षेत्र में कार्यरत कर्मचारियों और उनके आवासीय परिसरों में प्रतिदिन हजारों गैलन पानी लिया जाता है। इसके बदले में वेकोलि सरकार को टैक्स भी चुकाती है।
» एसीसी सीमेंट कंपनी: यह कंपनी अपने उद्योग और कर्मचारियों के आवासीय क्षेत्रों के लिए वर्धा नदी से पानी लेती है। मार्च के पहले सप्ताह से ही जल स्तर इतना गिर चुका है कि जकवेल पंप के टैंक क्षेत्र में रेत जमा हो गई और पानी का प्रवाह बाधित हो गया। इस समस्या को हल करने के लिए कंपनी को नदी में जमा रेत हटानी पड़ी, ताकि टैंक में पानी आ सके। एसीसी कंपनी हर साल सिंचाई विभाग को करीब 1.5 करोड़ रुपये का कर चुकाती है।
» लॉयड मेटल स्टील कंपनी: यह कंपनी भी नदी से पानी लेकर अपने उद्योगों के संचालन में उपयोग करती है और प्रतिमाह करीब 7 लाख रुपये टैक्स सिंचाई विभाग को देती है।
अगर जल स्तर में इसी तरह गिरावट जारी रही तो इन उद्योगों को पानी के गंभीर संकट का सामना करना पड़ेगा, जिससे उत्पादन प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है और स्थानीय रोजगार पर भी असर पड़ेगा।
कृषि और ग्रामीण जीवन पर प्रभाव
वर्धा नदी केवल उद्योगों के लिए ही नहीं, बल्कि स्थानीय किसानों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस नदी का पानी सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता है, जिससे हजारों हेक्टेयर कृषि भूमि की उपज प्रभावित होती है।
» जल संकट के कारण किसान परेशान: गर्मी की शुरुआत में ही जल स्तर घटने से किसानों की चिंता बढ़ गई है। यदि पानी की यह स्थिति बनी रही, तो फसलों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
» पेयजल की समस्या: नदी का जल स्तर कम होने से ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल संकट भी उत्पन्न हो सकता है, क्योंकि कई गांवों के कुएं और बोरवेल इसी नदी पर निर्भर हैं।
पर्यावरणीय समस्याएं और अवैध रेत खनन
पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि वर्धा नदी में जल स्तर गिरने का एक बड़ा कारण अवैध रेत खनन है। रेत खनन से नदी का जल प्रतिधारण कम हो जाता है, जिससे पानी तेजी से बहकर सूख जाता है। जल स्रोतों के संरक्षण की उचित योजना न होने से नदी में पानी की मात्रा कम हो रही है। औद्योगिक क्षेत्र के बढ़ते जल उपयोग से जल संकट और गंभीर होता जा रहा है।
वर्धा-पैनगंगा संगम और धार्मिक महत्व
वर्धा नदी आगे जाकर पैनगंगा नदी से संगम करती है। यह संगम धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है और हर वर्ष हजारों श्रद्धालु यहां स्नान और पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। यदि नदी का जल स्तर इसी तरह घटता रहा तो यह धार्मिक स्थल भी प्रभावित होगा।
समाधान और संभावनाएं
वर्धा नदी को जल संकट से बचाने और उद्योगों, किसानों तथा नागरिकों को राहत देने के जिला प्रशासन इस गंभीर विषय र समय रहते ध्यान देना चाहिए।
» डैम निर्माण: वर्धा संगम के आगे एक छोटा डैम (बांध) बनाया जाना चाहिए, जिससे जल स्तर को नियंत्रित किया जा सके और पानी का संरक्षण हो। इससे सिंचाई और पेयजल आपूर्ति सुचारू बनी रहेगी।
» अवैध रेत खनन पर रोक: सरकार को सख्ती से अवैध रेत खनन पर प्रतिबंध लगाना चाहिए, ताकि नदी का जल स्तर गिरने से बचाया जा सके।
» जल संरक्षण अभियान: स्थानीय प्रशासन और उद्योगों को मिलकर जल संरक्षण के उपाय करने चाहिए, जैसे रेनवाटर हार्वेस्टिंग और नदी के जल स्रोतों का पुनर्जीवन।
» उद्योगों का जल प्रबंधन: उद्योगों को जल उपयोग की नई तकनीकों को अपनाना चाहिए, जिससे जल की बर्बादी को कम किया जा सके।
वर्धा नदी इस क्षेत्र की जीवनरेखा है, लेकिन लगातार घटते जल स्तर के कारण यह संकट में है। यदि समय रहते उचित कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में उद्योग, किसान और आम नागरिक सभी जल संकट का सामना करेंगे। सरकार, उद्योगों और आम नागरिकों को मिलकर नदी के संरक्षण के लिए ठोस प्रयास करने होंगे, ताकि यह नदी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी जीवनदायिनी बनी रहे।