घुग्घुस में ट्रैफिक कार्रवाई पर मचा बवाल: पुलिस अधिकारी और यूट्यूबर के बीच सड़क पर भिड़ंत!
घुग्घुस की सड़कों पर ट्रैफिक व्यवस्था सुधारने के उद्देश्य से चलाए जा रहे पुलिस अभियान के दौरान एक 🔍पुलिस अधिकारी और एक 🔍स्वयंभू यूट्यूब चैनल प्रतिनिधि के बीच घटित एक हालिया घटना ने न केवल स्थानीय प्रशासन को झकझोर दिया है, बल्कि पूरे समाज के सामने एक गंभीर प्रश्न भी खड़ा किया है – क्या सोशल मीडिया की ताकत अब क़ानून से ऊपर हो चुकी है?
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पुलिस अधिकारी जब मुख्य मार्गों पर अवैध रूप से खड़े ट्रकों के खिलाफ कार्रवाई कर रहे थे, तब अचानक एक स्वयंभू यूट्यूबर मौके पर पहुंचता है और कार्रवाई को बीच में रोकने की कोशिश करता है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, यूट्यूबर ने पुलिस को खुलेआम धमकाया कि “इन ट्रकों पर कार्रवाई नहीं करना वरना देख लूंगा।” यह ट्रक कथित तौर पर उसके करीबी लोगों से जुड़े थे।
यह घटना महज एक टकराव नहीं, बल्कि ‘डिजिटल दादागीरी’ के बढ़ते चलन का प्रतीक बनकर सामने आई है। सोशल मीडिया की पहुंच और प्रभाव ने कुछ लोगों को इतना आत्ममुग्ध और प्रभावशाली बना दिया है कि वे खुद को कानून और व्यवस्था से ऊपर समझने लगे हैं।
जब पत्रकारिता की आड़ में हो मनमानी
पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है – इसका उद्देश्य है सत्ता की निगरानी करना, जनहित की बात करना और समाज को जागरूक बनाना। लेकिन दुर्भाग्यवश आज सोशल मीडिया और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म पर कई स्वयंभू “पत्रकार” उग आए हैं, जिनका मकसद न तो जनहित होता है, न सत्य की खोज – बल्कि सिर्फ टीआरपी, लाइक्स, शेयर और पेड प्रमोशन।
ऐसे में सवाल उठता है – जब पुलिस शहर की सड़कों को जाम से मुक्त करने के लिए प्रतिबद्ध हो, और कोई यूट्यूबर कैमरे के दम पर पुलिस को धमकाने लगे, तो वह पत्रकार है या ‘डिजिटल दलाल?
जनता की मांग – ‘डिजिटल दादागीरी’ पर लगे लगाम
इस पूरे मामले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अब वक्त आ गया है जब ऐसे यूट्यूब चैनलों और तथाकथित पत्रकारों पर सख्त कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए, जो जनता की सुरक्षा से जुड़े मामलों में अवरोध पैदा कर रहे हैं।
यह सिर्फ पुलिस और प्रशासन की प्रतिष्ठा की बात नहीं है – यह नागरिकों की जान, सुरक्षा और उनके जीने के अधिकार की बात है।
साथ ही, आम नागरिकों को भी अब सोशल मीडिया पर फैलते ‘डिजिटल भस्मासुरों’ को पहचानना होगा। जो सच बोल रहे हैं, उन्हें समर्थन दें, लेकिन जो कैमरे के दम पर डर और दबाव पैदा कर रहे हैं, उनका सामाजिक बहिष्कार आवश्यक है।
कानून को हाथ में लेने का अधिकार किसी को नहीं है – फिर चाहे उसके हाथ में कैमरा हो या सत्ता।
पुलिस को चाहिए कि वह इस प्रकरण में उदाहरण पेश करे, ताकि कोई भी ‘डिजिटल दबंग’ दोबारा व्यवस्था के पहिए में अड़ंगा न डाल सके।
ट्रैफिक का स्थायी संकट और तीन साल से अधूरा पुल
घटना का दूसरा पहलू शहर की बदहाल ट्रैफिक व्यवस्था से भी जुड़ा है। G-39 रेलवे गेट पर पिछले तीन वर्षों से अधूरा पड़ा फ्लाईओवर ब्रिज घुग्घुस की ट्रैफिक समस्या का सबसे बड़ा कारण बना हुआ है। भारी वाहनों की आवाजाही और निर्माण कार्य की सुस्ती ने स्थिति को और बदतर बना दिया है।
लेकिन इसी बीच, 🔍घुग्घुस पुलिस स्टेशन के🔍 थानेदार प्रकाश राउत और उनकी टीम ने राहत की दिशा में बड़ा कदम उठाया – शुभम पेट्रोल पंप और सुभाषनगर के पास सर्विस रोड को दोपहिया और छोटे वाहनों के लिए चालू किया गया। यह जनता के लिए बड़ी राहत की बात रही।