घुग्घुस में 20 दिसंबर को मतदान, वहीं तेलंगाना में ग्राम पंचायत चुनाव — उंगली पर अमिट स्याही से मतदाता दुविधा में; उम्मीदवारों की ‘घर-घर पहुँच’ मुहिम तेज
चंद्रपुर जिले के घुग्घुस नगरपरिषद के 11 प्रभागों की 22 सीटों पर 20 दिसंबर को होने वाले मतदान से पहले राजनीतिक हलचल चरम पर है। विशेष बात यह है कि घुग्घुस क्षेत्र में बड़ी संख्या में तेलुगु भाषी मतदाता रहते हैं, जिनमें से कई लोगों का नाम महाराष्ट्र के साथ-साथ पड़ोसी राज्य तेलंगाना की मतदाता सूची में भी दर्ज है।
तेलंगाना में 11, 14 और 17 दिसंबर को विभिन्न जिलों में ग्राम पंचायत चुनाव प्रस्तावित हैं। इस वजह से यहां के कई मतदाता पहले तेलंगाना में वोट डालेंगे और फिर 20 दिसंबर को घुग्घुस में मतदान करने का प्रयास करेंगे।
डबल वोटिंग की दुविधा: स्याही बनेगी सबसे बड़ी बाधा
मतदाताओं की सबसे बड़ी चिंता यह है कि तेलंगाना में डाले गए वोट के बाद उंगली पर लगाई जाने वाली अमिट स्याही (इंडेलिबल इंक) को मिटाना आसान नहीं होता।
यह स्याही 3–4 दिन से लेकर एक सप्ताह तक साफ नहीं होती, ऐसे में यदि किसी मतदाता ने 17 दिसंबर को तेलंगाना में मतदान किया तो 20 दिसंबर को घुग्घुस में वोट डालना मुश्किल हो सकता है।
स्थानीय राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि: कई मतदाता तेलंगाना में मतदान करने के बाद महाराष्ट्र में वोट डालने से वंचित हो सकते हैं। चुनाव आयोग की सतर्कता और पहचान सत्यापन की प्रक्रिया इस मामले में अहम होगी। यदि ऐसे मतदाता बड़ी संख्या में प्रभावित होते हैं तो यह चुनाव परिणाम के समीकरण बदल सकता है।
10 दिन शेष, उम्मीदवारों की भागदौड़ तेज – प्रचार में लगे दोबारा दम
घुग्घुस के चुनाव में अब मात्र दस दिन बचे हैं। प्रमुख दलों के साथ स्वतंत्र उम्मीदवार पिछले एक महीने से लगातार प्रचार में जुटे हुए थे। अधिकांश प्रत्याशियों ने अपने-अपने प्रभागों में एक से दो राउंड से अधिक प्रचार पूरा कर लिया है। अब दूसरे चरण के प्रचार का दौर फिर शुरू हो चुका है।
लेकिन इस बीच बड़ी समस्या सामने आ रही है – चुनावी खर्च। बैनर–पोस्टर के लिए धन की कमी, ब्याज पर पैसा खोज रहे उम्मीदवार
स्थानीय स्तर पर चर्चा है कि: कई उम्मीदवारों का चुनावी बजट लगभग खत्म हो चुका है। बैनर, पोस्टर, वाहन और प्रचार सामग्री के लिए दोबारा धन की आवश्यकता है। कुछ उम्मीदवार पैसे की व्यवस्था के लिए ब्याज पर रकम लेने को भी मजबूर हैं। कई प्रत्याशी दिन-भर फंड जुटाने और शाम को प्रचार में व्यस्त देखे जा रहे हैं।
वोटरों को ‘वापस बुलाने’ की जद्दोजहद: नागपुर–वणी–वेकोलि क्षेत्रों तक दौड़
तेलुगु भाषी और प्रवासी वोटरों को साधने के लिए उम्मीदवारों ने विशेष रणनीति अपनाई है।
सूत्रों के अनुसार: प्रत्याशी अपने-अपने प्रभागों के मतदाता सूचियों को बारीकी से खंगाल रहे हैं। चंद्रपुर, नागपुर, वणी और वेकोलि क्षेत्रों में वर्षों से रहने वाले मतदाताओं के घर जाकर आग्रह किया जा रहा है कि वे 20 दिसंबर को घुग्घुस वापस आकर वोट ज़रूर डालें। कई जगह उम्मीदवारों की टीम ‘मतदाता संपर्क अभियान’ चला रही है। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि इस प्रयास का असर अंतिम समय में मतदान प्रतिशत पर दिख सकता है।
चुनाव आयोग की चुनौती: दोनों राज्यों में मतदान करने वाले मतदाताओं की निगरानी
दो अलग-अलग राज्यों में मतदान करने वाले मतदाताओं पर नजर रखना चुनाव आयोग के लिए आसान नहीं होगा।
यदि बड़ी संख्या में मतदाताओं की उंगलियों पर पहले से स्याही लगी मिलती है, तो उन्हें मतदान के अधिकार से वंचित करना पड़ेगा, जो स्थानीय असंतोष को जन्म दे सकता है।
20 दिसंबर को घुग्घुस में दिलचस्प मुकाबला, मतदाताओं की भूमिका निर्णायक
घुग्घुस नगरपरिषद चुनाव अब सस्पेंस और चुनौतियों से भरा दिखाई दे रहा है। जहाँ एक तरफ उम्मीदवारों के लिए प्रचार और वित्तीय दबाव बढ़ रहा है, वहीं दूसरी ओर मतदाताओं के सामने तेलंगाना और महाराष्ट्र में दो अलग-अलग चुनावों में भाग लेने की पहेली है।
अब देखना यह होगा कि: मतदाता दोनों राज्यों में मतदान कर पाते हैं या नहीं, चुनाव आयोग इस स्थिति को कितनी गंभीरता से संभालता है, और उम्मीदवारों की ‘डोर-टू-डोर मुहिम’ कितनी कारगर साबित होती है।
अगले 10 दिन घुग्घुस की राजनीति के लिए बेहद महत्वपूर्ण रहेंगे।
