चंद्रपुर जिले की राजनीति इन दिनों भीतर ही भीतर सुलगती हुई आग की तरह गरमाती जा रही है। जहाँ पहले कांग्रेस की गुटबाजी चर्चा का विषय थी, वहीं अब भारतीय जनता पार्टी (BJP) के भीतर भी खेमेबंदी खुलकर सामने आने लगी है। जिले के दो प्रमुख भाजपा नेता— विधानसभा में मंत्री पद संभाल चुके सुधीर मुनगंटीवार और दूसरे चंद्रपुर के विधायक किशोर जोरगेवार—के बीच का टकराव अब कोई रहस्य नहीं रहा।
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इस गुटबाजी ने न केवल भाजपा कार्यकर्ताओं को असमंजस में डाल दिया है, बल्कि विपक्ष को भी अवसर प्रदान किया है कि वह इसका राजनीतिक लाभ उठाए। यही मौका भांपते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और विपक्ष के नेता विजय वडेट्टीवार ने तीखा तंज कसा। उन्होंने दोनों भाजपा नेताओं को “पहलवान” कहकर वर्तमान संघर्ष को एक राजनैतिक कुश्ती का नाम दे डाला, जहाँ वे स्वयं को एक “प्रेक्षक” के रूप में प्रस्तुत करते हैं जो इस तमाशे का आनंद ले रहे हैं।
वडेट्टीवार ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा कि एक पहलवान “मुंबई के सागर बंगले की मेहरबानी से सूर्योदय की ओर झुका है” और दूसरा “सूर्यास्त की ओर!” यह बयान जितना प्रतीकात्मक है, उतना ही गहरा भी। सागर बंगला, महाराष्ट्र की सत्ता की एक प्रमुख पहचान है, जो यह संकेत देता है कि एक खेमे को सरकार का समर्थन प्राप्त है, जबकि दूसरा धीरे-धीरे राजनीतिक अस्त के ओर बढ़ रहा है।
इस तंज का स्पष्ट संदेश है: भाजपा का आंतरिक संघर्ष विपक्ष के लिए एक सुनहरा अवसर बनता जा रहा है। जहां एक ओर भाजपा खुद को मजबूत और अनुशासित पार्टी के रूप में प्रस्तुत करती रही है, वहीं ऐसी घटनाएं उसकी छवि को आघात पहुंचा रही हैं। भाजपा के दोनों नेता अपने-अपने वर्चस्व को लेकर संघर्षरत हैं, जिसका सीधा असर जिले की राजनीति और संगठनात्मक एकता पर पड़ रहा है।
राजनीतिक दांव-पेंच का भविष्य
वडेट्टीवार की रणनीति साफ है—वह भाजपा की आपसी लड़ाई का आनंद उठाकर उसके कमजोर पहलू को उजागर करना चाहते हैं, ताकि जब सही समय आए, वे विजयी पहलवान से निर्णायक लड़ाई लड़ सकें। यह राजनीतिक चतुराई की पराकाष्ठा है, जहाँ विपक्ष सीधे टकराव से बचते हुए भाजपा की आपसी फूट को हवा देकर उसे अंदर से कमजोर कर रहा है। यह स्थिति न केवल भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण है, बल्कि आने वाले स्थानीय निकाय चुनावों की दिशा भी तय कर सकती है। अगर भाजपा समय रहते इस अंदरूनी कलह को नियंत्रित नहीं कर पाती, तो यह पार्टी की जमीनी पकड़ को कमजोर कर सकती है।
चंद्रपुर की राजनीति इस समय एक दिलचस्प मोड़ पर है। भाजपा के दो कद्दावर नेताओं के बीच का टकराव कांग्रेस के लिए संजीवनी सिद्ध हो सकता है, बशर्ते वह इसे रणनीतिक रूप से साध सके। वहीं भाजपा के लिए यह आत्मचिंतन का समय है—क्या व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं संगठनात्मक एकता पर भारी पड़ेंगी, या पार्टी एकता को प्राथमिकता देते हुए समय रहते इस संकट का समाधान निकाल पाएगी?
इस राजनीतिक कुश्ती में कौन विजेता बनेगा, यह तो समय बताएगा, पर अभी के लिए दर्शक दीर्घा में बैठे विपक्ष को भरपूर मनोरंजन और रणनीतिक लाभ जरूर मिल रहा है।