चंद्रपुर जिले के सैकड़ों किसानों के फसल बर्बाद, सरकार की घोषणाओं और अधूरी मदद के बीच संघर्ष कर रहे हैं
जब भी प्राकृतिक आपदा आती है, इसका सबसे बड़ा प्रभाव किसान समुदाय पर पड़ता है। चाहे सूखा हो या बाढ़, इसका सीधा असर खेतों और किसानों के जीवन पर पड़ता है। हर बार सरकार की घोषणाएं होती हैं, वादे किए जाते हैं, लेकिन वास्तविक मदद जमीन तक कितनी पहुँचती है, यह एक बड़ा सवाल है। चंद्रपुर जिले के गोंडपीपरी तहसील के सकमूर गांव में हुए हालिया बाढ़ ने इस सच्चाई को फिर से उजागर कर दिया है।
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चंद्रपुर जिले की त्रासदी:
हाल ही में चंद्रपुर जिले में दो बार बाढ़ आई, जिससे सबसे ज्यादा नुकसान खेती को हुआ। सकमूर गांव के किसान भारत अलोने ने दो एकड़ जमीन पर कपास की खेती की थी, जिस पर उन्होंने लगभग एक लाख रुपये खर्च किए थे। पहले बाढ़ में उनके खेत का पचास प्रतिशत कपास नष्ट हो गया था। स्थिति सुधारने के लिए उन्होंने फसल पर कीटनाशक छिड़काव और खाद डाली, लेकिन फिर से आई बाढ़ ने उनकी पूरी फसल को पानी में डुबो दिया। तीन दिनों तक पानी में रहने के बाद उनकी फसल सड़ गई।
बाढ़ से जिले का हाल:
केवल अलोने ही नहीं, चंद्रपुर जिले के हजारों किसान इस बार बाढ़ के कारण अपनी फसलें खो बैठे हैं। सरकारी सहायता का इंतजार सभी किसान कर रहे हैं, लेकिन मदद कब तक पहुंचेगी, यह सवाल बना हुआ है। सरकार ने नुकसान का सर्वेक्षण करने का आदेश दिया है, लेकिन इसके आधार पर कब और कितनी मदद मिलेगी, यह अनिश्चित है।
घोषणाओं और वास्तविकता के बीच किसान:
हर साल किसान इसी तरह संकटों का सामना करते हैं। सूखा हो, बाढ़ हो या कोई और प्राकृतिक आपदा, सरकार की घोषणाएं जरूर होती हैं, लेकिन वह किसानों की समस्याओं का पूरा समाधान नहीं कर पातीं। पंचनामा होने के बाद कुछ राहत अवश्य मिलेगी, लेकिन क्या वह राहत किसानों की परेशानियों को कम कर पाएगी? किसानों को मिलने वाली यह मदद अक्सर बहुत कम होती है और इतनी देर से आती है कि उनका संकट तब तक और बढ़ चुका होता है।
चंद्रपुर जिले के किसान सरकार की मदद की प्रतीक्षा कर रहे हैं, लेकिन यह सवाल अभी भी बना हुआ है कि क्या यह मदद पर्याप्त होगी? किसान हर साल अपनी मेहनत, धन और समय लगाकर फसलें उगाते हैं, लेकिन आपदाओं के कारण उन्हें लगातार नुकसान उठाना पड़ता है। सरकारों को इस ओर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए कि किसानों की समस्याओं का स्थायी समाधान कैसे हो, ताकि वे हर साल संकट में न फँसें।