70 फीट गड्ढे में घर, तीन साल से आसमान तले ज़िंदगी… पुनर्वास का वादा अधूरा
26 अगस्त 2022 – यह दिन जिले की औद्योगिक नगरी घुग्घुस के लिए काली स्याही से लिखा गया। शाम करीब 5 बजे अमराई वार्ड निवासी 🔍गजानन मडावी का मकान अचानक ज़मीन में समा गया। 70 फीट गहरे गड्ढे में घर और उसका सारा सामान लुप्त हो गया। सौभाग्य से जनहानि नहीं हुई, लेकिन परिवार बेघर हो गया। आज, पूरे तीन साल बाद भी मडावी और बाकी 169 प्रभावित परिवार अपने घर का इंतज़ार कर रहे हैं।
हादसा और प्रशासनिक लापरवाही
इस हादसे ने सिर्फ़ एक घर ही नहीं, बल्कि पूरे मोहल्ले की नींव हिला दी।
स्थानीय नागरिकों का आरोप था कि भूमिगत खदानों में रेत और मिट्टी भरने के काम में वेकोलि (WCL) प्रशासन की भारी लापरवाही हुई। सुरंगों को सुरक्षित रूप से बंद नहीं किया गया, जिसका नतीजा ज़मीन धंसने के रूप में सामने आया।
उस वक्त 🔍नेताओं, अधिकारियों और मीडिया का तांता लगा। तत्कालीन पालकमंत्री सुधीर मुनगंटीवार, दिवंगत सांसद बाळू धानोरकर, विधायक किशोर जोरगेवार समेत कई बड़े चेहरे घटनास्थल पर पहुंचे। मुआवज़ा और पुनर्वास का आश्वासन दिया गया। 6 महीने तक 169 परिवारों को किराया और अस्थायी स्थलांतरण की व्यवस्था भी हुई। मगर, यह सब काग़ज़ों और सुर्ख़ियों तक सीमित रह गया।
अधूरी वादाख़िलाफ़ी
- पीड़ित परिवारों को वेकोलि के क्वार्टर में अस्थायी तौर पर रखा गया।
- मुख्यमंत्री सहायता निधि से 10 हज़ार रुपये और ज़रूरी सामान की किट बांटी गई।
- फ़रवरी 2022 की विशेष बैठक में प्रभावित परिवारों को स्थायी ज़मीन उपलब्ध कराने का वादा किया गया।
लेकिन तीन साल बाद भी स्थिति जस की तस है। न घर मिला, न किराया जारी है।
जो नेता उस वक्त फोटो खिंचवाने और बयान देने आए थे, वे अब खामोश दर्शक बन चुके हैं।
देवराव भोंगले विधायक बन चुके हैं, और विवेक बोढे भी चुप्पी साधे हैं।
जिलाधिकारी विनय गौड़ा भी इस विषय पर कोई बैठक लेते नहीं दिखते।
सवालों के घेरे में प्रशासन
- सबसे बड़ा सवाल यही है कि अगर हादसा राजधानी या किसी बड़े शहर में हुआ होता तो क्या सरकार और प्रशासन इतनी बेरुख़ी दिखाते?
- क्या गरीब और मज़दूर वर्ग का जीवन इतना सस्ता है कि 3 साल तक उन्हें बिना घर के भटकने पर मजबूर किया जाए?
- नेताओं और अधिकारियों की जिम्मेदारी सिर्फ़ आश्वासन देने तक ही क्यों सीमित रहती है?
न्याय कब तक टलेगा?
अमराई वार्ड हादसा सिर्फ़ एक दुर्घटना नहीं, बल्कि प्रशासनिक संवेदनहीनता का आइना है। तीन साल बाद भी 169 परिवार छत के इंतज़ार में हैं।
नेताओं ने राजनीतिक लाभ उठाया, प्रशासन ने औपचारिकता निभाई, मगर पीड़ित आज भी बेघर हैं।
अगर अब भी शासन-प्रशासन आवाज़ अनसुनी की गई, तो जनता का आक्रोश आने वाले समय में राजनीतिक भूकंप ला सकता है।
