जिले की औद्योगिक नगरी घुग्घूस में भाजपा के भीतर उबाल, शहर अध्यक्ष पद को लेकर कार्यकर्ताओं और दिग्गज नेताओं के बीच जबरदस्त खींचतान देखने को मिल रही है। राज्य भाजपा आलाकमान द्वारा जारी नई गाइडलाइन के बाद स्थिति और भी जटिल हो गई है।
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आलाकमान का ‘उम्र बम’ – बुजुर्गों की छुट्टी!
राज्य स्तर पर भाजपा ने स्पष्ट कर दिया है कि अब शहर अध्यक्ष वही बन सकता है जिसकी उम्र 35 से 45 वर्ष के बीच हो। इस नए निर्देश ने घुग्घूस समेत पूरे राज्य भर के वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं की महत्वाकांक्षाओं पर तगड़ा ब्रेक लगा दिया है। और इस आदेश ने पुराने धुरंधरों के अरमानों पर पानी फेर दिया है। जो नेता अब तक शहर भाजपा की नकेल कसते थे, वही उम्र की दहलीज लांघ चुके हैं। पार्टी के भीतर का असंतोष अब फूटने को तैयार लावा बन गया है।
कांग्रेस-भाजपा की पारंपरिक टक्कर में भाजपा को चाहिए दमदार कप्तान
औद्योगिक नगरी घुग्घूस में कांग्रेस और भाजपा के बीच राजनीतिक जंग कोई नई बात नहीं है। किंतु बीते चुनावों के आंकड़े गवाह हैं कि चाहे ग्राम पंचायत हो, विधानसभा या लोकसभा चुनाव—यहां कांग्रेस को हमेशा भाजपा प्रत्याशियों से अधिक मत मिले हैं। ऐसे में भाजपा को एक ऐसे युवा, ऊर्जावान और जुझारू शहर अध्यक्ष की जरूरत है जो कांग्रेस से आर-पार की लड़ाई लड़ सके। लेकिन जब खुद पार्टी के भीतर युद्ध छिड़ा हो, तो मोर्चा संभालने वाला योद्धा कहां से निकलेगा?
मुंगटीवार बनाम जोरगेवार: भाजपा के भीतर ‘गृहयुद्ध’
शहर भाजपा की कमान लंबे समय तक वरिष्ठ नेता देवराव भोंगले और विवेक बोडे के नेतृत्व में मुंगटीवार सेवा केंद्र के माध्यम से संचालित होती रही। लेकिन बीते विधानसभा चुनावों के बाद से हालात तेजी से बदले हैं। अब अनेक असंतुष्ट कार्यकर्ता क्षेत्रीय विधायक जोरगेवार के खेमे में जा चुके हैं। जिले में मुंगटीवार और जोरगेवार के बीच वर्षों से जारी अंदरूनी संघर्ष अब खुलकर सतह पर आ चुका है।
45 के भीतर नेता खोजो मुहिम
शहर में इस उम्र सीमा के भीतर नेताओं की संख्या उंगलियों पर गिनी जा सकती है। ऐसे में आलाकमान का यह फैसला घुग्घूस भाजपा के लिए संकट का कारण बनता दिख रहा है। अध्यक्ष पद के दावेदारों की फेहरिस्त बेहद छोटी और कमज़ोर है।
अब कौन बनेगा घुग्घूस का कप्तान?
अब सबकी निगाहें इस पर टिकी हैं कि शहर अध्यक्ष का ताज किस गुट के सिर सजेगा—मुंगटीवार गुट के वफादारों के सिर या जोरगेवार गुट के नए उभरते नेताओं के हाथ। भाजपा के भीतर गुटबाजी, नई उम्र सीमा और राजनीतिक समीकरणों के बीच घुग्घूस के भाजपा कार्यकर्ताओं में असमंजस की स्थिति बनी हुई है। भीतरखाने में जोड़-तोड़, लॉबिंग और एक-दूसरे को मात देने की रणनीतियाँ चरम पर हैं। आने वाले दिन घुग्घूस की राजनीति के लिए निर्णायक साबित होंगे।
अगर सही चेहरा नहीं चुना गया, तो घुग्घूस में भाजपा के लिए आगामी चुनाव एक बुरे सपने से कम नहीं होंगे। लेकिन इतना तय है कि घुग्घूस भाजपा में मचा यह घमासान आगामी चुनावों में पार्टी की रणनीति और परिणामों पर गहरा असर डालेगा।