कांग्रेस बागी पत्नी ने ठोकी नगराध्यक्ष पद पर ताल; UBT के ‘AB फार्म’ और अन्य तकनीकी पेंचों से कोर्ट में पहुंचा चुनावी मामला
कोयलांचल नगरी घुग्घुस में नगरपरिषद चुनाव का महासंग्राम अब निर्णायक मोड़ पर आ चुका है। नामांकन वापसी की अंतिम तिथि, शुक्रवार 21 नवंबर थी, अब चुनावी परिदृश्य स्पष्ट हो गया है। कुल 14 उम्मीदवारों द्वारा नाम वापस लेने के बाद, अब एक नगराध्यक्ष पद के लिए 6 उम्मीदवार और 11 प्रभागों के 22 नगरसेवकों के लिए 145 उम्मीदवार चुनावी अखाड़े में डटे हुए हैं। इस बार के चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के भीतर की अंदरूनी कलह और बागियों की बड़ी संख्या ने मुकाबले को बेहद दिलचस्प बना दिया है।
प्रमुख दलों की स्थिति और निर्दलियों का बढ़ता दबदबा
नगरसेवक पदों के लिए, भारतीय जनता पार्टी (BJP) के 20 और कांग्रेस के 21 उम्मीदवार मैदान में हैं, जो साफ दर्शाता है कि दोनों प्रमुख दलों को सभी 22 सीटों पर प्रत्याशी उतारने में सफलता नहीं मिली।
चुनावी मैदान में सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरे हैं निर्दलीय उम्मीदवार और अन्य छोटे राजनीतिक दल। रिपोर्ट के अनुसार, इस बार घुग्घुस में क्षेत्रीय दलों से भी अधिक निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं, जो शहर की राजनीति में पहली बार देखने को मिला है। भाजपा और कांग्रेस से टिकट न मिलने से नाराज़ अनेकों कार्यकर्ताओं ने या तो निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर या फिर अन्य पार्टियों के बैनर तले अपनी किस्मत आजमाई है, जिससे दोनों प्रमुख दलों की रणनीति प्रभावित हो रही है।
कोर्ट-कचहरी की चौखट पर चुनाव
इस चुनाव की एक विशेष बात यह है कि नामांकन सूची में त्रुटियों और राजनीतिक खींचतान के कारण मामला कोर्ट तक पहुँच गया है। 24 नवंबर को इन मामलों पर सुनवाई होने की बात कही जा रही है:
BJP के उम्मीदवार: गणेश पिम्पलकर और पल्लवी प्रवीण सोदारी।
Congress के उम्मीदवार: मल्लेश बल्ला।
UBT (शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे) का पेंच: UBT के दो ‘AB फार्म’ (पार्टी अथॉरिटी लेटर) जमा होने के कारण, नगराध्यक्ष उम्मीदवार शोभा ठाकरे और नगरसेवक उम्मीदवार नवीन मोरे का मामला भी तकनीकी विवाद में फँस गया है।
बागी का ‘घर का झगड़ा’: कांग्रेस में भूचाल
कांग्रेस पार्टी के लिए सबसे बड़ी चुनौती तब खड़ी हो गई जब कांग्रेस उम्मीदवार पवन अगदारी की पत्नी, रंजीता अगदारी, ने स्वयं नगराध्यक्ष पद के लिए निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में नामांकन दाखिल कर दिया। इस ‘घर की जंग’ से कांग्रेस पार्टी आलाकमान की रणनीति और कार्रवाई पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं। यह घटना कांग्रेस की अंदरूनी एकता पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगाती है।
प्रमुख नगराध्यक्ष उम्मीदवार
नगराध्यक्ष पद के लिए मैदान में प्रमुख उम्मीदवार इस प्रकार हैं:
भाजपा: शारदा दुर्गम
कांग्रेस: दीप्ति सोनटक्के
अन्य/निर्दलीय: रीता देशकर, नैना ढोके, आरती पाटिल और अन्य।
‘मशाल-घड़ी’ गठजोड़ की चर्चा
शहर में इन दिनों राजनीतिक गलियारों में एक खास चर्चा ज़ोरों पर है कि “मशाल (UBT) – घड़ी (NCP) भाऊ के हाथ पकड़कर चल रहे हैं।” चर्चा यह है कि ‘मशाल’ के कुछ नेताओं ने नामांकन से ठीक पहले कांग्रेस का दामन थाम लिया और सीधे उम्मीदवार घोषित हो गए। यह संकेत देता है कि स्थानीय स्तर पर अनौपचारिक राजनीतिक समीकरणों में तेजी से बदलाव आ रहा है।
जनता का फैसला और भाजपा के निष्ठावान सिपाही
विशेष बात यह भी है कि भाजपा के तीन विधायकों के निष्ठावान कार्यकर्ता भी चुनावी मैदान में हैं, जिससे उनकी जीत-हार का असर सीधे-सीधे क्षेत्रीय विधायक की साख पर पड़ेगा।
कल शुक्रवार को नामांकन वापस लेने के अंतिम दिन, कई निर्दलीय उम्मीदवारों को मनाने में मुख्य दलों को कामयाबी नहीं मिल पाई, और अनेक उम्मीदवार तो ‘नॉट रिचेबल’ हो गए थे।
अब सबकी निगाहें शहर की जनता पर टिकी हैं कि वे क्षेत्रीय विकास, पार्टी निष्ठा, या बागी निर्दलियों के पक्ष में किसे अपना नगरसेवक और नगराध्यक्ष चुनती हैं। चुनावी नतीजों से साफ होगा कि क्या बागी उम्मीदवार दोनों प्रमुख दलों की जड़ें हिलाने में कामयाब हो पाते हैं या नहीं।
