घुग्घुस नगरपरिषद चुनाव का महासंग्राम इस बार प्रभाग क्रमांक 7 में सबसे अधिक दिलचस्प और रोमांचक मुकाबले के रूप में उभरकर सामने आया है। यहां पहली बार मैदान में उतरी तीन महिला उम्मीदवारों के साथ-साथ तीन पुरुष उम्मीदवार भी अपने राजनीतिक भविष्य को परखने के लिए तैयार हैं। उत्तरभारतीय और मराठी भाषी मतों का अनूठा मिश्रण इस प्रभाग को खास बनाता है, जहां कुल चार उत्तरभारतीय और दो मराठी भाषी उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।
भाजपा की मधु तिवारी: दो दशक का तिवारी परिवार का राजनीतिक अनुभव साथ
वेकोलि के इंदिरा नगर और भंगली कैम्प क्षेत्र में भाजपा ने अपने शहर अध्यक्ष और पिछले 20 वर्षों से अधिक समय तक ग्रामपंचायत सदस्य रहे संजय तिवारी की पत्नी मधु तिवारी को मैदान में उतारा है।
मधु तिवारी पहली बार चुनाव लड़ रही हैं, परंतु उनके पीछे तिवारी परिवार की वर्षों की राजनीतिक पकड़ और संघटनात्मक मजबूती एक बड़ा आधार है।
उत्तरभारतीय वोट बैंक में तिवारी परिवार की मजबूत पकड़ को भाजपा अपने पक्ष में भुनाना चाहती है।
कांग्रेस की सरिता विशाल खैरे: मराठी भाषी समाज की दमदार प्रतिनिधि
कांग्रेस की उम्मीदवार सरिता खैरे सामाजिक कार्यों के कारण इस क्षेत्र की महिलाओं और वेकोलि कर्मियों के परिवारों के बीच एक अच्छी पहचान रखती हैं।
महिला बचतघट, घरेलू महिलाओं के प्रशिक्षण कार्यक्रम और सामाजिक आंदोलनों में उनकी सक्रियता ने मराठी भाषी समुदाय में उनकी पकड़ मजबूत की है।
कांग्रेस इस प्रभाग में मराठी भाषी मतों को एकजुट रखने की रणनीति पर काम कर रही है।
एनसीपी (अजित पवार गुट) की मौसम सिंह: युवा, शिक्षित और सामाजिक रूप से सक्रिय
26 वर्षीय मौसम सिंह इस प्रभाग की सबसे युवा और शिक्षित (ग्रेजुएट) उम्मीदवार के रूप में उभर रही हैं।
उत्तरभारतीय समाज में अच्छा प्रभाव रखने वाले रविश सिंह की पत्नी होने के साथ-साथ मौसम सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय हैं।
वे आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के बच्चों को मुफ्त ट्यूशन देकर शिक्षण सहायता प्रदान करती हैं, जिससे युवा व महिलाओं में उन्हें खास समर्थन मिलता दिख रहा है।
उत्तरभारतीय वोटों पर मधु तिवारी और मौसम सिंह दोनों ही मजबूत दावा पेश कर रही हैं।
उत्तरभारतीय महिला वोट पर भाजपा बनाम एनसीपी की सीधी भिड़ंत
प्रभाग 7 में उत्तरभारतीय मतदाताओं की संख्या निर्णायक मानी जाती है।
यहां उत्तरभारतीय महिला मतदाताओं का भी बड़ा प्रभाव है, जिसके चलते मधु तिवारी और मौसम सिंह के बीच सीधी टक्कर साफ दिखाई देती है।
दोनों ही महिलाएं पहली बार चुनाव लड़ रही हैं, इसलिए उनमें नए नेतृत्व की उम्मीद भी मतदाताओं में आकर्षण पैदा कर रही है।
वहीं, सरिता खैरे मराठी भाषी तथा वेकोलि कर्मियों के परिवारों में अपने मजबूत जनाधार के बल पर इस तिकोने संघर्ष को और पेचीदा बनाती हैं।
पुरुष उम्मीदवारों का समीकरण: वेकोलि कर्मियों का दबदबा
इसी प्रभाग में तीन पुरुष उम्मीदवार भी पहली बार मैदान में हैं:
प्रकाश निषाद (कांग्रेस)
पहले भाजपा नेता संजय तिवारी के कट्टर समर्थक माने जाने वाले प्रकाश निषाद अब कांग्रेस से उम्मीदवार हैं।
उनकी उत्तरभारतीय समाज में अच्छी पकड़ मानी जाती है, जिससे कांग्रेस को अतिरिक्त आधार मिल सकता है।
शिवकुमार चौहान (एनसीपी – अजित पवार गुट)
वेकोलि कर्मी और उत्तरभारतीय समुदाय से जुड़े शिवकुमार चौहान भी मजबूत प्रत्याशी के रूप में उभर सकते हैं।
उनकी श्रमिकों के बीच अच्छी छवि बताई जाती है।
गणेश पिंपलकर (भाजपा)
मराठी भाषी भाजपा उम्मीदवार पिंपलकर वेकोलि कर्मियों के संगठनों में पदभार संभाल चुके हैं और वर्तमान में बीएमएस से जुड़े हैं।
मराठी समुदाय और श्रमिकों के वोटों को भाजपा उनके माध्यम से मजबूती देने की कोशिश में है।
इन तीनों में दो उत्तरभारतीय और एक मराठी भाषी उम्मीदवार होने से पुरुष मोर्चे पर भी मुकाबला तिकोना है।
राजनीतिक तस्वीर: वोटों का निर्णायक बिखराव संभव
प्रभाग 7 में कुल 4 उत्तरभारतीय और 2 मराठी भाषी उम्मीदवार हैं।
मतों का बिखराव होना तय माना जा रहा है—विशेष रूप से उत्तरभारतीय समाज में, जहां महिला और पुरुष दोनों श्रेणी में एक से अधिक उम्मीदवार चुनाव को अनिश्चित बनाते हैं।
महिला और पुरुष दोनों श्रेणियों में तिकोनी लड़ाई ने राजनीतिक विश्लेषकों के लिए भी परिणाम का अनुमान लगाना कठिन बना दिया है।
21 दिसंबर पर टिकी नजरें—कौन होगा प्रभाग 7 का विजेता?
तीन महिला और तीन पुरुष प्रत्याशियों के बीच यह मुकाबला घुग्घुस नगरपरिषद के सबसे रोचक चुनावों में से एक बन गया है।
उत्तरभारतीयों और मराठी भाषियों के अलग-अलग समीकरण, वेकोलि कर्मियों का प्रभाव, तथा सामाजिक कार्यों में सक्रिय उम्मीदवारों की मौजूदगी ने इस चुनाव को बेहद प्रतिस्पर्धी बना दिया है।
अब देखना यह होगा कि प्रभाग 7 के जागरूक मतदाता 21 दिसंबर को किसे अपना प्रतिनिधि चुनकर नगरपरिषद में भेजते हैं—
राजनीति का अनुभव, सामाजिक सेवा, युवा नेतृत्व—किस पर जनता मुहर लगाती है, यह नतीजे ही तय करेंगे।
