औद्योगिक नगरी घुग्घुस की नगरपरिषद के अध्यक्ष पद के आरक्षण की घोषणा ने शहर की राजनीति में भूचाल ला दिया है। सोमवार को अध्यक्ष पद अनुसूचित जाति (Scheduled Caste) की महिला के लिए आरक्षित घोषित होने के साथ ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस के कई दिग्गज उम्मीदवारों की 58 महीने की मेहनत और उम्मीदों पर पानी फिर गया है। इस अप्रत्याशित घोषणा के बाद दोनों प्रमुख दल अब एक सक्षम और योग्य अनुसूचित जाति की महिला उम्मीदवार की तलाश में जुट गए हैं।
ज्ञात हो कि लंबे संघर्ष और कई आंदोलनों के बाद 31 दिसंबर 2020 को घुग्घुस ग्रामपंचायत को नगरपरिषद का दर्जा दिया गया था। तब से लेकर आज तक 58 महीने बीत चुके हैं, लेकिन शहर को अपनी पहली नगरपरिषद और नगराध्यक्ष का इंतजार है। इस दौरान तीन मुख्य अधिकारियों (सीओ) और दो प्रभारी अधिकारियों पदभार संभाले है।
पिछले 58 महीनों से, शहर के प्रमुख राजनीतिक दलों के कई पुरुष और महिला नेता अध्यक्ष बनने का सपना संजोए हुए थे। बैनर, होर्डिंग्स और सोशल मीडिया के जरिए अपनी दावेदारी पेश कर रहे थे। शक्ति प्रदर्शन, कार्यकर्ताओं की “इनकमिंग-आउटगोइंग” और एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी शहर की जनता ने खूब देखा। लेकिन सोमवार की एक घोषणा ने सारे समीकरण बदलकर रख दिए हैं।
प्रमुख दावेदारों के सपने चकनाचूर
कांग्रेस में “वॉटर मैन” के नाम से मशहूर शहर अध्यक्ष राजुरेड्डी और किसान सेल के पूर्व जिलाध्यक्ष रोशन पचारे, दोनों ही (ओबीसी) समुदाय से आते हैं और अध्यक्ष पद के प्रबल दावेदार माने जा रहे थे। वहीं, भाजपा में “इवेंट मैनेजर” और “गुरुजी” के नाम से प्रख्यात विवेक बोढे (ओबीसी) और उनकी पत्नी किरण बोढे भी दावेदारों की सूची में थीं। किरण बोढे पिछले कुछ वर्षों से सामाजिक और राजनीतिक कार्यक्रमों में काफी सक्रिय थीं और उम्मीद थी कि यदि पद ओबीसी या सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित होता, तो वह एक मजबूत उम्मीदवार होतीं। इनके अलावा, पूर्व भाजपा शहर अध्यक्ष विनोद चौधरी की पत्नी नीतू चौधरी जिलापरिषद सदस्य तथा बालकल्याण सभापति रही और वह भी नगराध्यक्ष की दावेदार के रेस में थी और नगरपरिषद दर्जा दिलाने में अहम भूमिका निभाई हैं, नीतू चौधरी और निरीक्षण तांड्रा ने अपना सभापति पद भी त्याग किया था।
पूर्व उपसरपंच और नवनियुक्त भाजपा शहर अध्यक्ष संजय तिवारी भी अपनी दावेदारी पेश कर रहे थे। आरक्षण की घोषणा के बाद इन सभी नेताओं के खेमों में सन्नाटा पसरा हुआ है और शहर में अब एक ही सवाल गूंज रहा है – “अब कौन बनेगा नगराध्यक्ष?”
अब निगाहें वार्ड आरक्षण पर
अध्यक्ष पद का फैसला होने के बाद अब सभी की निगाहें बुधवार, 8 अक्टूबर को होने वाले वार्ड आरक्षण पर टिक गई हैं। शहर के बालाजी लॉन में दोपहर 12 बजे 11 वार्डों के 22 सदस्यों के लिए आरक्षण की घोषणा की जाएगी। प्रत्येक वार्ड से दो सदस्य चुने जाने हैं। यह आरक्षण तय करेगा कि किस वार्ड से कौन से समुदाय का उम्मीदवार चुनाव लड़ सकेगा और नगरपरिषद में किस दल का बहुमत होगा। वार्डों का आरक्षण ही आने वाले नगरपरिषद चुनाव की पूरी रूपरेखा तय करेगा।
राजनीतिक पृष्ठभूमि और संघर्ष
यह सर्वविदित है कि तीन दशकों के अथक संघर्ष के बाद 2020 में तत्कालीन महाविकास अघाड़ी सरकार ने घुग्घुस को नगरपरिषद का दर्जा दिया था। इसमें कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और कई आंदोलन किए थे। हालांकि, राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई यहां हमेशा से ही तीव्र रही है। 2017 के ग्रामपंचायत चुनाव में कांग्रेस ने जीत हासिल की थी, लेकिन बाद में भाजपा ने महिला सरपंच के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाकर और कांग्रेस के उपसरपंच को अपने पाले में मिलाकर अपना प्रभारी सरपंच बना दिया था। अगर लोकसभा और विधानसभा चुनावों के आंकड़ों पर नजर डालें तो यहां कांग्रेस के उम्मीदवारों को भाजपा के मुकाबले अधिक मत मिलते रहे हैं, जो कांग्रेस के जमीनी जनाधार को दर्शाता है।
अब जबकि अध्यक्ष पद का फैसला हो चुका है, बुधवार को होने वाला वार्ड आरक्षण यह तय करेगा कि राजनीतिक ऊंट किस करवट बैठेगा। क्या प्रमुख दल किसी अनुभवी महिला कार्यकर्ता को आगे करेंगे या किसी नए चेहरे पर दांव लगाएंगे, यह देखना दिलचस्प होगा। फिलहाल, घुग्घुस की राजनीति एक रोमांचक मोड़ पर खड़ी है और आने वाले दिन राजनीतिक सरगर्मियों से भरपूर रहने वाले हैं।
