घुग्घुस, जिसे जिले की औद्योगिक नगरी कहा जाता है, इन दिनों नगर परिषद चुनावों से पहले राजनीतिक उथल-पुथल का केंद्र बन गया है। खासकर कांग्रेस से भाजपा और भाजपा से कांग्रेस का यह आना–जाना यहाँ नई बात नहीं, लेकिन इस बार की एंट्री ने राजनीति के रंग और भी चटख कर दिए हैं।
‘हनुमंता’ की दो साल पुराना घटनाक्रम
अक्टूबर 2023 में घुग्घुस के प्रमोद महाजन चौक पर आयोजित एक कार्यक्रम में तत्कालीन विपक्ष नेता विजय वडेट्टीवार की मौजूदगी में भाजपा से नाराज हेमंत उरकुड़े ने अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस का दामन थाम लिया था। वडेट्टीवार ने मंच से कहा था – “भाजपा की लंका में आग लगाने वाला हनुमंता अब कांग्रेस आ गया है।” यह बयान सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हुआ और उरकुड़े को कांग्रेस खेमे का ‘फायरब्रांड एंट्री’ माना जाने लगा।
लेकिन राजनीति का गणित हमेशा दो और दो चार नहीं होता। कल, विधायक किशोर जोरगेवार के कर्तव्य केंद्र में भाजपा शहर अध्यक्ष संजय तिवारी की अगुवाई में आयोजित पक्ष प्रवेश कार्यक्रम में वही हनुमंता, दो वर्ष पूर्व जिस रंग के कुर्ते मे कांग्रेस में गए थे, उसी रंग के कुर्ते में, भाजपा की चौखट पर माथा टेकते नज़र आए। मानो यह संदेश देने आए हों कि “लंका की आग बुझाने के लिए अब वही हनुमंता वापस लौटा है।”
भाजपा की ‘दो लंका’
2024 विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा यहाँ दो खेमों में बंटी – एक ओर मुनगंटीवार का पाला, दूसरी ओर जोरगेवार का डेरा। यह दरार इतनी गहरी है कि कार्यकर्ता किसके आदेश पर चलें, यह तय करना मुश्किल हो गया है। ऐसे में उरकुड़े की घरवापसी का तमाशा भले भीड़ जुटा ले, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह भीड़ भाजपा को एकजुट करेगी, या फिर दोनों लंकों में नई चिंगारी डालेगी?
मंच से जोरगेवार का कटाक्ष
इस कार्यक्रम में जोरगेवार ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि “कुछ लोग कार्यकर्ताओं को फोन कर रोकने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन मुझे पता है कि वे कौन हैं।” यह बयान सीधे तौर पर उनके प्रतिद्वंद्वी खेमे की ओर इशारा माना जा रहा है। यानी भाजपा की ‘लंका’ में अब भी आग धधक रही है, बस चिंगारी को हवा देने की देर है। बावजूद इसके, बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं की उपस्थिति ने संदेश दिया कि उरकुड़े की ‘घरवापसी’ भाजपा के लिए ऊर्जा संचार का काम कर सकती है।
स्थानीय राजनीति की वास्तविकता, भाजपा को लाभ या भ्रम?
घुग्घुस की राजनीति जनता अब समझ चुकी है कि पार्टियाँ इनके लिए धर्मशाला से ज़्यादा कुछ नहीं – जब चाहो आओ, जब चाहो जाओ, पुनः भाजपा में लौटना केवल प्रतीकात्मक नहीं है, बल्कि यह स्थानीय राजनीति की अस्थिरता और अवसरवादिता का भी उदाहरण है। नगर परिषद चुनावों के पहले यह प्रवेश भाजपा के लिए ‘मनोबल बढ़ाने वाला’ कदम है, परंतु असली चुनौती गुटबाजी से उबरकर जनता के सामने एकजुट चेहरा पेश करने की होगी।
तो सवाल यही है – भाजपा की ‘लंका’ में लौट आया ‘हनुमंता’ क्या सचमुच रामभक्त साबित होगा, या फिर किसी और आग का कारण बनेगा?
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