संजय तिवारी की नियुक्ति पर ऐतराज और हंसराज अहीर, बंटी भांगडिया, हरिश शर्मा ‘ऑल इज वेल’
महाराष्ट्र की राजनीति में सुलगती मराठी-गैरमराठी की आग अब चंद्रपुर जिले के औद्योगिक नगरी कहे जाने वाले घुग्घुस के गली-कूचों, चौक-चौराहों, चाय-पान टपरियों और खासकर ‘राजनीतिक सेवा केंद्रों’ में इन दिनों काफी चर्चा का विषय बना हुआ है। जैसे ही भाजपा विधायक किशोर जोरगेवार के समर्थक संजय तिवारी घुग्घुस भाजपा के शहराध्यक्ष बने, विरोधी गुटों की खुराफातें शुरू हो गई है। संजय तिवारी को गैर-मराठी बताते हुए उनका अंदरुनी विरोध भाजपा के एक दूसरे गुट से किया जा रहा है। दूसरे गुट के समर्थक एवं समर्पित मीडिया की ओर से खबरें तथा पोस्ट सोशल मीडिया पर इन दिनों वायरल है।
जबकि पूर्व से ही चंद्रपुर जिले में बरसों से जिले की कमान संभालने वाले केंद्र सरकार में महत्वपूर्ण समझे जाने वाले केंद्रीय गृह मंत्री पद पर आसिन रहे हंसराज अहीर, लंबे समय से विधायक के रूप में सेवारत बंटी भांगडिया और बरसों से पार्टी की सेवा कर रहे हरिश शर्मा जैसे अनेक नेताओं की सक्रियता पर यह विरोधी गुट खुलकर कुछ नहीं कह पा रहा है। एक सामान्य कार्यकर्ता संजय तिवारी के घुग्घुस शहराध्यक्ष बनते ही उनकी छवि को धूमिल करने की साजिश के चलते भाजपा की गुटबाजी जहां एक ओर उजागर हो रही है, वहीं भाजपा के आम कार्यकर्ताओं में इस गुटबाजी से उपज रहे षडयंत्रपूर्ण गतिविधियों से काफी नाराजगी फैली है। समय रहते यदि दोनों गुटों के वार-प्रतिवार नहीं थमे तो भाजपा निश्चित तौर पर हार के मुहाने पर होगी।
राजनीति में भाषा की दीवार या गुटों की चाल?
शहर के कुछ भाजपा नेताओं द्वारा तिवारी की जातीय और भाषाई पहचान को मुद्दा बनाकर उनके चयन पर सवाल उठाना केवल गैर मराठी विरोध नहीं, बल्कि भाजपा की गंभीर आंतरिक दरारों का संकेत देता है। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे संदेशों में मराठी और ओबीसी समुदाय के “आहत होने” की बात सामने आ रही है। परंतु इसी भाजपा के चंद्रपुर ग्रामीण जिलाध्यक्ष हरीश शर्मा भी ‘गैर मराठी’ हैं — तो क्या ये मुद्दा वाकई सामाजिक असंतुलन का है या केवल राजनैतिक मोहरे बदलने की चाल?
घुग्घूस: एक औद्योगिक संगम, सांस्कृतिक विविधता का प्रतीक
घुग्घूस कोई साधारण गांव नहीं, बल्कि एक औद्योगिक नगरी है जहाँ बीते कई दशकों में देश के विभिन्न राज्यों से आए लोगों ने स्थायी निवास बना लिया है। यहां डॉक्टर, इंजीनियर, व्यापारी, शिक्षक से लेकर नेता तक गैर मराठी पृष्ठभूमि से उभर कर आए हैं। ऐसे में केवल जाति या भाषा के आधार पर पदों का विरोध करना क्या उस लोकतांत्रिक बहुलता पर कुठाराघात नहीं है जिसकी दुहाई सभी दल समय-समय पर देते हैं?
भाजपा की गुटबाजी: जोरगेवार बनाम मुंगटीवार
जानकार बताते हैं कि भाजपा चंद्रपुर में पिछले विधानसभा चुनावों के बाद से दो खेमों में बंटी हुई है — एक ओर हैं विधायक सुधीर मुंगटीवार, तो दूसरी ओर हैं विधायक किशोर जोरगेवार। यही वजह रही कि 25 वर्षों बाद मुंगटीवार खेमें से शहर अध्यक्ष पद जोरगेवार समर्थक संजय तिवारी को सौंपा गया — और यहीं से मामला गरमाया।
इतिहास — अध्यक्ष पद पर गैर मराठी पहले भी रहे हैं
वर्ष 2000 में जब देवराव भोंगले सरपंच बने थे, तब उनके बाद ग्रामपंचायत सदस्य शंकर पुनम, जो गैर मराठी थे, अध्यक्ष बने। बाद में विनोद चौधरी और विवेक बोडे जैसे मराठी नेताओं ने पद संभाला। लेकिन तब ऐसी ‘भाषाई पहचान’ कभी मुद्दा नहीं बनी। फिर अब क्यों?
प्रश्न यही है…
जब तक कोई व्यक्ति पद पर है, तब तक ‘समाजवादी प्रतिनिधित्व’ की बात कोई नहीं करता — लेकिन जैसे ही कोई दूसरा समूह उससे आगे बढ़ता है, उसे ‘गैर’ का तमगा देकर धकेलने की कोशिश होती है।
क्या राजनीति में योग्यता और समर्पण से अधिक अब पहचान और जुड़ाव मायने रखने लगे हैं?
भाजपा को आत्ममंथन करना होगा कि क्या उसका लक्ष्य सर्वसमावेशक विकास है या गुटबाजी और पहचान की राजनीति? घुग्घूस जैसे बहु-सांस्कृतिक औद्योगिक शहर में राजनीतिक नेतृत्व में विविधता कोई कमजोरी नहीं, बल्कि उसकी शक्ति होनी चाहिए।
वरना यह “गैर मराठी” बनाम “मराठी” की आग एक दिन पूरी पार्टी की लोकप्रियता को भस्म कर सकती है।
News Title : Marathi vs Non-Marathi: Political Fire Erupts in Ghugus Over sanjay tiwari BJP City President Post
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