घुग्घुस के विदर्भ मिनरल्स एंड एनर्जी पावर प्लांट में 23 अगस्त शनिवार को मजदूर आंदोलन अचानक उग्र रूप ले बैठा। ठेका पद्धति की बजाय स्थायी रोजगार और बकाया वेतन की माँग को लेकर विजयक्रांति मजदूर संघ पिछले छह दिनों से भूख हड़ताल पर डटा हुआ था।
शनिवार तड़के 3 बजे, मजदूरों के आक्रोश ने बड़ा रूप लिया जब महेंद्र वडस्कर, भारत खनके, सुधाकर काले, सुरेंद्र विके, रमेश सोनेकर, अनिल निखाडे, सुनील जोगी और उमाकांत देठे — ये आठ मजदूर 165 मीटर ऊँची चिमनी पर चढ़ गए। अचानक हुई इस ‘वीरुगिरी’ ने पूरे क्षेत्र में सनसनी फैला दी और बड़ी संख्या में नागरिक प्लांट परिसर में जमा हो गए।
चिमनी पर चढ़े🔍 कामगारों ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो जारी किया, जिसमें उन्होंने कहा:
“हमारी ज़मीन गई और नौकरी भी नहीं मिली, कोर्ट का सहारा लेने की हमारी औकात नहीं।”
“लेबर कमिश्नर और जिल्हाधिकारी को बार-बार निवेदन किया, पर सुनवाई नहीं हुई।”
“अब अगर रोजगार और बकाया वेतन नहीं मिला, तो हमारे पास मौत चुनने के अलावा कोई रास्ता नहीं।”
कामगारों ने स्थानीय नेताओं और राजनीतिक दलों को भी कठघरे में खड़ा करते हुए कहा कि चुनावों के समय गांव वालों से समर्थन लिया जाता है, पर संकट की घड़ी में कोई मदद को सामने नहीं आता।
प्रबंधन और प्रशासन में हड़कंप
चिमनी पर मजदूरों के चढ़ते ही प्लांट प्रबंधन, पुलिस प्रशासन और राजस्व विभाग में हड़कंप मच गया। हालात को संभालने के लिए मौके पर पहुंचे विधायक किशोर जोरगेवार ने आंदोलनकारियों और प्रबंधन के बीच चार घंटे लंबी मध्यस्थता की।
विधायक ने साफ शब्दों में कहा –
“यह भूमिपुत्रों की जमीन है। जिनके घर और खेत देकर यह प्रोजेक्ट खड़ा हुआ, उन्हीं को दरवाज़े पर खड़ा रखना अन्याय है। इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।”
लिखित समझौता – रोजगार की गारंटी
विधायक की ठोस पहल के बाद, उपविभागीय अधिकारी संजय पवार, तहसीलदार ओमकार ठाकरे, थानेदार प्रकाश राउत, कंपनी प्रबंधन के आशीष नरल और दीपक गुप्ता, और मजदूर नेता प्रवीण लांडगे समेत सभी की मौजूदगी में कंपनी प्रबंधन ने लिखित आश्वासन दिया।
- 103 प्रभावितों को 10 सितंबर से छह महीने तक ठेका पद्धति पर काम दिया जाएगा।
- छह महीने बाद स्थायी नौकरी में शामिल करने का वादा किया गया।
लिखित समझौते के बाद 12 घंटे से चिमनी पर डटे मजदूर सुरक्षित नीचे उतरे और आंदोलन समाप्त हुआ।
आंदोलन का पृष्ठभूमि
साल 2008 में गुप्ता एनर्जी कंपनी ने उसगांव क्षेत्र के 103 किसानों की जमीन अधिग्रहित की थी। बदले में उन्हें स्थायी रोजगार देने का वादा किया गया। लेकिन 2015-16 में कंपनी बंद हो गई, और 2017 में दिवालिया घोषित होने से मजदूरों का वेतन भी बकाया रह गया। बाद में कंपनी का संचालन विदर्भ मिनरल्स एंड एनर्जी ने संभाला, लेकिन प्रभावितों को रोजगार का वादा पूरा नहीं किया गया। उल्टा बाहरी मजदूरों की भर्ती शुरू होने से स्थानीयों का गुस्सा भड़क उठा।
आंदोलन में जुटे नेता व नागरिक
आंदोलन की सफलता में स्थानीय नेता और सामाजिक संगठन भी सक्रिय रहे। भाजपा नेता नामदेव डाहुले, कामगार नेता प्रवीण लांडगे, महामंत्री मनोज पाल, उसगांव सरपंच निविदा ठाकरे, उपसरपंच मंगेश आसुटकर, घुग्घुस शहर अध्यक्ष संजय तिवारी, रवि गुरनुले, दशरथसिंह ठाकुर, प्रवीण गिलबिले, मुन्ना लोढे, देवानंद वाढई, मंडळ अध्यक्ष विनोद खेवले, धनंजय ठाकरे, इमरान खान, आशिष माशिरकर, संतोष नूने, स्वप्निल वाढई, राजकुमार गोडसेलवार, महेश लट्ठा, दत्तु जोगी और कई अन्य प्रमुख लोग आंदोलन स्थल पर डटे रहे।
विधायक जोरगेवार की जिद, मजदूरों की एकजुटता और सामाजिक दबाव ने मिलकर इस आंदोलन को सफल अंत दिया। यह केवल रोजगार का सवाल नहीं था, बल्कि भूमिपुत्रों के सम्मान और न्याय की लड़ाई थी।
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