राजनीति कभी समाजसेवा और जनकल्याण का माध्यम मानी जाती थी, लेकिन बदलते दौर में यह अधिकतर लोगों के लिए व्यवसाय बनती जा रही है। आजकल राजनीतिक दलों से जुड़ने वाले नेता न केवल सत्ता की सीढ़ियां चढ़ते हैं, बल्कि अपने निजी स्वार्थ और व्यवसायिक लाभ के लिए भी राजनीति का इस्तेमाल कर रहे हैं।
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चंद्रपुर जिले के औद्योगिक नगरी घुग्घुस में दो युवा नेताओं की कहानी भी कुछ इसी प्रकार की है। दोनों अलग-अलग पेशे से राजनीति में आए, लेकिन सत्ता की राजनीति में रमने के साथ ही उन्होंने अपने मूल पेशे से इतर नए रास्ते अपना लिए। एक नेता जो कंस्ट्रक्शन व्यवसाय से जुड़े थे, वे समाज सेवा के जोश में राजनीति में आए और ठेकेदारी से दूर होते चले गए, जबकि दूसरे नेता जो शिक्षा के क्षेत्र से थे, उन्होंने राजनीतिक संबंधों का लाभ उठाकर खुद को ठेकेदारी के क्षेत्र में स्थापित कर लिया।
अब जब घुग्घुस नगर परिषद का पहला चुनाव होने जा रहा है, तो शहर की जनता के बीच यह सवाल चर्चा में है कि क्या इन दोनों नेताओं में से कोई एक नगर अध्यक्ष बनेगा या फिर कोई नया चेहरा जनता की उम्मीदों पर खरा उतरेगा?
पहला नेता: कंस्ट्रक्शन व्यवसाय से राजनीति तक का सफर
इस कहानी का पहला किरदार एक युवा नेता हैं, जिन्होंने मूल रूप से कंस्ट्रक्शन के क्षेत्र में अपना करियर शुरू किया था। लेकिन समाज सेवा और राजनीति में रुचि के कारण वे एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल से जुड़ गए और शहर अध्यक्ष का पद संभाल लिया।
शुरुआत में, उन्होंने शहर के विभिन्न मुद्दों पर खुलकर आवाज उठाई और कई जनहित से जुड़े मामलों में सक्रिय रहे। राजनीति में आने के बाद उन्होंने अपने ठेकेदारी व्यवसाय से दूरी बनानी शुरू कर दी और जनता की सेवा को ही अपनी प्राथमिकता बना लिया। इसके चलते उनकी आर्थिक स्थिति पर भी असर पड़ा, लेकिन फिर भी उन्होंने पीछे हटने के बजाय जनता के हक की लड़ाई जारी रखी।
हालांकि, जनता के बीच उनकी छवि एक ईमानदार और संघर्षशील नेता की बनी, लेकिन सवाल यह भी उठने लगे कि क्या वे चुनाव लड़ने के बाद भी अपनी मूल नीयत पर कायम रहेंगे या सत्ता में आने के बाद वे भी ठेकेदारी और राजनीति के गठजोड़ का हिस्सा बन जाएंगे?
दूसरा नेता: शिक्षक से ठेकेदार बने राजनेता
इस कहानी का दूसरा किरदार एक शिक्षक हैं, जो राजनीति में अपने राजनीतिक गुरु के आशीर्वाद से आए। शिक्षा जगत से होने के बावजूद, उन्होंने राजनीति में प्रवेश के बाद अपने संबंधों का लाभ उठाकर विभिन्न सरकारी ठेकों और अन्य व्यावसायिक अवसरों को हासिल किया।
उनका राजनीतिक सफर एक बड़े नेता के साये में आगे बढ़ा, और उन्होंने अपने गुरु के कहने पर कई महत्वपूर्ण राजनीतिक निर्णय लिए। धीरे-धीरे, राजनीति उनके लिए सिर्फ सामाजिक सेवा का जरिया नहीं रही, बल्कि यह एक आर्थिक उन्नति का माध्यम भी बन गई। शिक्षक होने के बावजूद उन्होंने शिक्षा क्षेत्र से अधिक ठेकेदारी के क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत कर ली।
शहर की जनता में उनकी छवि एक प्रभावशाली और संसाधनों से भरपूर नेता की बन गई, लेकिन उनके विरोधियों का कहना है कि उन्होंने अपनी स्थिति का लाभ उठाकर खुद को आर्थिक रूप से मजबूत किया, न कि जनता की समस्याओं को सुलझाने पर ध्यान दिया।
नगर परिषद चुनाव: जनता की कसौटी पर दोनों नेता
चार साल पहले, 31 दिसंबर 2020 को घुग्घुस को नगर परिषद का दर्जा मिला था, लेकिन अब तक चुनाव नहीं हो पाया। अब जब नगर परिषद चुनाव होने वाला है, तो यह दोनों नेता पहली बार अपनी किस्मत आजमाने के लिए तैयार हैं।
शहर की जनता में यह बहस छिड़ी हुई है कि कौन नेता नगर अध्यक्ष बनने के लायक है? क्या जनता संघर्षशील और समाजसेवी नेता को चुनेगी, जिसने अपने ठेकेदारी व्यवसाय को पीछे छोड़ दिया है? या फिर जनता उस नेता को चुनेगी, जिसने अपने राजनीतिक संबंधों का इस्तेमाल कर खुद को ठेकेदारी में मजबूत किया है?
इस चुनाव में जनता के सामने यह सबसे बड़ा सवाल होगा कि वे किन्हें अपना प्रतिनिधि बनाएं – जो राजनीति को सेवा मानते हैं या जो राजनीति को व्यवसाय के रूप में देखते हैं?
घुग्घुस नगर परिषद चुनाव न केवल इन दो नेताओं के लिए, बल्कि पूरे शहर की राजनीति के भविष्य के लिए भी महत्वपूर्ण साबित होगा। जनता के पास अब यह अवसर है कि वे सही व्यक्ति का चुनाव करें, जो उनके हितों की रक्षा करे और शहर के विकास के लिए कार्य करे।
राजनीति और व्यवसाय के इस गठजोड़ को देखते हुए, यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह चुनाव वाकई जनता के मुद्दों पर लड़ा जाएगा, या फिर वही पुरानी राजनीतिक रणनीतियां हावी होंगी। अब फैसला जनता के हाथ में है – कि वह समाजसेवा की भावना से आए नेता को चुनेगी या सत्ता और ठेकेदारी की राजनीति करने वाले नेता को।