चंद्रपुर जिले के चिमूर तालुका के मोटेगांव गांव से शुरू हुई एक धार्मिक यात्रा अंततः एक मार्मिक त्रासदी में बदल गई। 45 वर्षीय मोरेश्वर आनंदराव सोनवाने अपने 11 वर्षीय बेटे सागर के साथ 24 फरवरी को प्रयागराज के महाकुंभ में शाही स्नान के लिए निकले थे। मगर किसे पता था कि यह यात्रा उनके जीवन की आखिरी होगी, और बेटे की यादों में हमेशा के लिए एक दुखद अध्याय छोड़ जाएगी।
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श्रद्धा से शुरू, संघर्ष में उलझी यात्रा
गोंदिया से रवाना हुए मोरेश्वर और सागर जबलपुर पहुंचे ही थे कि अज्ञात चोरों ने उनकी सारी जमा-पूंजी, कपड़े और जरूरी सामान लूट लिया। किसी तरह प्रयागराज पहुंचे भी तो जेब खाली थी, लेकिन आस्था ने उन्हें आगे बढ़ने का हौसला दिया। शाही स्नान किया, मगर भूख और बेबसी उनके पीछे-पीछे चली आई। मोरेश्वर ने बेटे के कानों से सोने के बाले निकालकर 3,000 रुपये जुटाए और वाराणसी की ओर रवाना हुए। लेकिन वहां भी किस्मत ने साथ नहीं दिया। कुछ स्थानीय गुंडों ने उन्हें धमकाया, पैसे और मोबाइल छीन लिए। अब वे दोनों सड़क पर आ गए – भूखे, लाचार और बेसहारा।
मानसिक संतुलन खो बैठे पिता, पुलिस से डरता बेटा
वाराणसी में 43 दिन तक दोनों पिता-पुत्र सड़कों पर भटकते रहे। कभी किसी मंदिर के बाहर, कभी किसी पेड़ के नीचे, जहां जगह मिली वहीं सो गए। मोरेश्वर मानसिक रूप से टूट चुके थे। बेटे से कहते, “पुलिस से दूर रहना, वरना जेल में डाल देंगे। “वहीं, मोटेगांव में लोग उन्हें खोज रहे थे। सोशल मीडिया पर तस्वीरें वायरल की गईं, मगर कहीं कोई सुराग नहीं मिला।
टूट चुकी थी आस, बेटे के सामने पिता ने की आत्महत्या
8 अप्रैल को मोरेश्वर ने वाराणसी में एक पेड़ से फांसी लगाने की कोशिश की। बेटे ने तुरंत पुलिस को सूचित किया, लेकिन जब तक पुलिस पहुंचती – बहुत देर हो चुकी थी। मोरेश्वर अपनी जीवनलीला समाप्त कर चुके थे। वाराणसी पुलिस से फोन आने पर गांव के चंदू रामटेके, संजय सोनवणे, विलास कोराम और अन्य रिश्तेदार वाराणसी पहुंचे। वहां बेटे को सुरक्षित पाया, मगर पिता की मौत ने सबकी आंखें नम कर दीं। मोरेश्वर का अंतिम संस्कार वारासिवनी नदी के किनारे किया गया।
बिखर गया परिवार, खामोश हो गया घर
मोरेश्वर की पत्नी पहले से ही गरीबी में जीवन बिता रही थी। अब पति की मौत के बाद दो छोटे बच्चों की परवरिश का सवाल सामने खड़ा हो गया है। गांव वालों ने प्रशासन से परिवार को आर्थिक सहायता देने की अपील की है।
विधायक ने बढ़ाया मदद का हाथ
चिमूर विधानसभा के विधायक बंटी भांगड़िया ने इस पूरे मामले को गंभीरता से लिया। उन्होंने परिवार की वाराणसी यात्रा के लिए आर्थिक सहायता दी और वहां की पुलिस से बात कर हर संभव मदद दिलवाने का निर्देश दिया। उन्होंने भरोसा दिलाया कि अगर प्रशासनिक कोई समस्या आई, तो वह स्वयं हस्तक्षेप करेंगे।
यह सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं है, यह एक सिस्टम की असफलता भी है – जहाँ एक पिता अपने बेटे को बचाने के लिए अंतिम सांस तक लड़ता रहा, मगर अंत में उसे हार माननी पड़ी। यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है – क्या हम एक ऐसे समाज में रह रहे हैं, जहां धार्मिक आस्था की यात्रा भी असुरक्षित है?