Ghugus G-39 Railway Flyover : दिसंबर 2021 में बड़े वादों और उम्मीदों के साथ शुरू किया गया घुग्घुस का G-39 रेलवे गेट फ्लाईओवर प्रोजेक्ट आज साढ़े तीन साल बाद भी अधूरा है। करीब 30 करोड़ रुपये की लागत से MRIDC (Maharashtra Rail Infrastructure Development Corporation) द्वारा मुंबई की RK मदनी कंपनी के माध्यम से यह कार्य शुरू किया गया था। लेकिन वर्षों बाद भी निर्माण कार्य “कछुए की चाल” से चल रहा है।
जनता बेहाल, प्रशासन सवालों के घेरे में:
रेलवे गेट पर रोज़ाना हजारों राहगीरों, विद्यार्थियों, मरीजों और औद्योगिक वाहनों को ट्रैफिक जाम व हादसों से जूझना पड़ रहा है। यह मार्ग न केवल राज्य महामार्ग क्रमांक-7 का हिस्सा है, बल्कि यह चंद्रपुर, यवतमाल और वणी जैसे शहरों को जोड़ने वाला एकमात्र मुख्य मार्ग है।
फ्लाईओवर की धीमी प्रगति का कारण:
जब इस मामले में पुल निर्माण कंपनी के अधिकारियों से बात की गई, तो उन्होंने जवाब दिया: > “G-39 रेलवे गेट पर जो गेटर्स लगाने हैं, उसके लिए रेलवे विभाग से अनुमति मांगी गई है। परंतु अभी तक कोई आदेश नहीं आया है, जिस कारण काम रुका हुआ है।” इस जवाब ने सीधे तौर पर रेलवे विभाग की कार्यप्रणाली और प्रशासन की समन्वयहीनता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
विवादित डिज़ाइन और सुरक्षा का मुद्दा:
इस टी-आकार के फ्लाईओवर की डिज़ाइन भी अब विवादों में है। एक ओर पुल पर टुवे (दोतरफा मार्ग) दिया गया है, तो दूसरी ओर वनवे (एकतरफा मार्ग) बनाया गया है, लेकिन दोनों तरफ से वाहनों का एकसाथ गुजरना मुश्किल बताया जा रहा है। जानकारों का कहना है कि इस पुल की चौड़ाई इतनी नहीं है कि दो वाहन आसानी से पार हो सकें। इसके चलते भविष्य में दुर्घटनाओं की प्रबल आशंका जताई जा रही है।
नामकरण की होड़ लेकिन समस्या पर चुप्पी:
हैरानी की बात यह है कि पुल का निर्माण पूरा भी नहीं हुआ है और पहले से राजनीतिक एवं सामाजिक संगठनों के बीच इसे “महात्मा गाँधी”, “जय श्रीराम”, “वीर सावरकर”, “डॉ. अंबेडकर” या “संत तुकडोजी महाराज” के नाम पर रखने की होड़ लगी हुई है। परन्तु किसी भी नेता या संगठन ने इस धीमी प्रगति पर आवाज़ उठाना जरूरी नहीं समझा!
नतीजे और असर:
आये दिन ट्रैफिक जाम, एम्बुलेंस और स्कूल बसों को घंटों इंतजार, एक्सीडेंट की घटनाएं बढ़ीं और जनता में भारी आक्रोश
G-39 रेलवे गेट फ्लाईओवर का यह मामला केवल एक अधूरे निर्माण का नहीं, बल्कि प्रशासनिक उदासीनता, योजना की खामियों और जनता के साथ हो रहे अन्याय का प्रतीक बन गया है।
अगर समय रहते रेलवे विभाग और MRIDC ने ठोस कार्रवाई नहीं की, तो यह प्रोजेक्ट आने वाले समय में एक और सरकारी फेल्योर की मिसाल बन सकता है।
