चंद्रपुर जिले की भारतीय जनता पार्टी (BJP) इकाई इन दिनों भीतरी अंतर्विरोधों और गुटबाजी की गिरफ्त में है। यह घटनाक्रम सिर्फ स्थानीय स्तर की हलचल नहीं, बल्कि भाजपा जैसी अनुशासन प्रिय पार्टी के लिए गहन आत्ममंथन का विषय बन गया है। वर्षों से जिस संगठन ने ‘एक नेता, एक विचार’ की नीति पर चलते हुए अनुशासन और एकजुटता का प्रदर्शन किया, आज वही संगठन दो खेमों में बंटता दिखाई दे रहा है।
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राज्य मे मंत्रिमंडल विस्तार के बाद पार्टी के भीतर की दरारें अब सार्वजनिक मंच पर आ गई हैं। पूर्व मंत्री एवं वर्तमान विधायक सुधीर मुनगंटीवार का गुट अब तक चंद्रपुर जिलाध्यक्ष पद पर काबिज रहा है। उनके करीबी हरिश शर्मा वर्तमान जिलाध्यक्ष हैं, जिन्होंने पहले भी यह पद संभाला है। लेकिन इस बार समीकरण बदलते नजर आ रहे हैं। पूर्व केंद्रीय गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर गुट को अब पूर्व मंत्री शोभाताई फडणवीस और जिले के तीन विधायकों का साथ मिलने से राजनीतिक संतुलन बदल गया है। मुनगंटीवार के खेमे में केवल विधायक देवराव भोंगले ही मुख्य चेहरा बचे हैं और उनके खेमे की पकड़ को कमजोर करता दिखाई दे रहा है।
जिलाध्यक्ष पद की होड़—कौन बनेगा सिरमौर?
इस पद को लेकर कई दावेदार सामने आ रहे हैं। पूर्व केंद्रीय गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर समर्थक माने जाने वाले पूर्व विधायक अॅड. संजय धोटे को टिकट से वंचित किए जाने के बाद संगठन में बड़ी जिम्मेदारी मिलने की संभावना जताई जा रही है। वहीं, विवेक बोढे, जो देवराव भोंगले के करीबी माने जाते हैं, मुनगंटीवार समर्थक माने जाते हैं और संभावित उम्मीदवार हो सकते हैं। तीसरे दावेदार नामदेव डाहुले हैं, जो भाजपा तालुकाध्यक्ष और जिल्हा महामंत्री जैसे पदों पर कार्यरत रह चुके हैं।
अनुशासित छवि को खतरा
भाजपा की पहचान अब तक एक अनुशासित और संगठित पार्टी के रूप में रही है। विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस की गुटबाजी पर भाजपा अकसर तंज कसती रही है। लेकिन अब वही हालात चंद्रपुर में भाजपा के भीतर दिखाई दे रहे हैं। यह न सिर्फ पार्टी कार्यकर्ताओं के मनोबल को प्रभावित करता है, बल्कि आम मतदाता की नजरों में भी पार्टी की विश्वसनीयता पर असर डालता है।
कार्यकर्ताओं की उलझन
गुटबाजी से सबसे अधिक प्रभावित कार्यकर्ता हैं। वे असमंजस में हैं कि किस गुट का समर्थन करें, ताकि उनका भविष्य सुरक्षित रहे। यदि नेतृत्व स्तर पर शीघ्र हस्तक्षेप नहीं किया गया, तो इससे कार्यकर्ताओं का मनोबल गिर सकता है और संगठनात्मक ढांचा ढीला पड़ सकता है।
अप्रैल में प्रस्तावित जिलाध्यक्ष की घोषणा इस पूरे घटनाक्रम का निर्णायक मोड़ हो सकती है। देखना यह होगा कि अनुभव और परंपरा के नाम पर मुनगंटीवार गुट की पकड़ बनी रहती है या अहीर गुट अपने नए समीकरणों के साथ आगे बढ़ता है। लेकिन जो सबसे महत्वपूर्ण बात है, वह है संगठन की एकता और विचारधारा की रक्षा—जिसे बनाए रखना अब भाजपा के लिए चुनौती बन चुका है।