आज जब संपूर्ण विश्व जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संकट से जूझ रहा है, तब वृक्षारोपण और हरियाली को बचाना सिर्फ एक अभियान नहीं, बल्कि मानव जाति के अस्तित्व से जुड़ा दायित्व बन चुका है। लेकिन दुर्भाग्यवश, चंद्रपुर जिले की घुग्घूस नगरपरिषद द्वारा शुरू की गई “सेल्फ वाटरिंग ट्री गार्ड” परियोजना, पर्यावरण संरक्षण के इस पवित्र उद्देश्य को शर्मसार करती नजर आ रही है।
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33 लाख की योजना, सूखे सपने और वास्तविकता में अंतर:
वर्ष 2023 में घुग्घूस नगरपरिषद ने एक हजार पेड़ लगाने के लिए रेनबो ग्रीनर्स प्रा. लि. नामक कंपनी को ठेका सौंपा। योजना की कुल लागत थी ₹33 लाख। ठेकेदार को ₹22 लाख का भुगतान किया गया, जबकि सवाल यह है कि 11 लाख रुपये का भुगतान क्यों रोका गया? 33 लाख का टेंडर 22 लाख रुपए रिलीज एसी क्या वजह है 11 लाख की बड़ी रकम किसके जेब मे गया!
नगरपरिषद का दावा था कि लगाए गए पेड़ स्वचालित जल-प्रणाली (सेल्फ वाटरिंग ट्री गार्ड) से युक्त होंगे, जिससे उनका संरक्षण सुनिश्चित होगा। परंतु, धरातल पर अधिकांश पेड़ एक वर्ष के भीतर ही सूख गए। सिंचाई, देखरेख या निगरानी की कोई ठोस व्यवस्था नहीं की गई।
हरियाली के नाम पर हरासनीति
नगरपरिषद का दावा था कि ये पेड़ कुछ वर्षों में बड़े होकर शहर को हरियाली और शुद्ध हवा देंगे। लेकिन हकीकत इससे कोसों दूर निकली। अधिकांश पौधे एक साल के भीतर ही सूख गए। न सिंचाई की व्यवस्था हुई, न देखभाल का कोई स्थायी प्रबंध। “सेल्फ वाटरिंग ट्री गार्ड” नामक अवधारणा सिर्फ कागजों तक सजी रही, ज़मीन पर सूखा ही सूखा पसरा रहा।
ठेकेदार को विशेष कृपा और प्रशासन की चुप्पी
स्थानीय सूत्रों का कहना है कि इस योजना में ठेकेदार को नगरपरिषद की विशेष ‘लाढ’ प्राप्त थी। काम की गुणवत्ता, निरीक्षण, पौधों की स्थिति आदि किसी भी मानक पर जांच नहीं हुई, फिर भी लाखों रुपये का भुगतान कर दिया गया। नागरिकों का आरोप है कि “यह सिर्फ लापरवाही नहीं, सुनियोजित भ्रष्टाचार है।”
आज जब देशभर में वृक्षारोपण और हरियाली को बढ़ावा देने के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं, ऐसे में घुग्घूस जैसे प्रकरण इस संकल्प को ठेंगा दिखा रहे हैं। एक ओर सरकार “हर घर पेड़, हर आंगन हरियाली” की बात करती है, दूसरी ओर ऐसे घोटाले विश्वास तोड़ रहे हैं।
इस सवाल के जवाब में ही छिपा है घुग्घूस का ‘सेल्फ वाटरिंग ट्री गार्ड’ का घोटाला!
-» क्या पेड़ लगाने के बाद नगरपरिषद ने उनकी निगरानी की?
-» ठेकेदार को समय पर भुगतान करने से पहले पेड़ों की हालत की जांच क्यों नहीं की गई?
-» जब अधिकांश पेड़ सूख चुके हैं, तो अब तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
-» क्या यह सिर्फ लापरवाही है या फिर सुनियोजित घोटाला?
यह केवल घुग्घूस की नहीं, पूरे प्रशासनिक तंत्र की साख का सवाल है। यदि दोषियों पर समय रहते कड़ी कार्रवाई नहीं होती, तो यह संदेश जाएगा कि पर्यावरण भी अब भ्रष्टाचार के लिए एक नया बहाना बन गया है।
33 लाख की ‘सेल्फ वॉटरिंग ट्री गार्ड’ योजना से अनजान प्रशासन
“33 लाख रुपये की ‘सेल्फ वॉटरिंग ट्री गार्ड’ योजना तत्कालीन अधिकारी लाढ के कार्यालय में स्वीकृत की गई थी। इस संदर्भ में जब नगरपरिषद के वर्तमान अधिकारी प्रतीक डोंगे से संपर्क किया गया, तो उन्होंने कहा, ‘मुझे यह पदभार संभाले तीन महीने हुए हैं और इस योजना के बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है।’”
क्या यह घोटाला भी बाकी फाइलों की तरह ‘सूख’ जाएगा?
जनता अब भी सवाल पूछ रही है। जवाबदारों की चुप्पी इन सवालों को और तेज़ करती जा रही है। पेड़ तो सूख चुके हैं, लेकिन जनता का भरोसा अब भी बचा है – यदि सरकार चाहे तो उसे सींच सकती है।
“यदि पेड़ लगाने की योजना भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाए, तो भविष्य में हमें ऑक्सीजन नहीं, सिर्फ अफसोस मिलेगा।”