चंद्रपुर जिले की औद्योगिक नगरी घुग्घुस एक बार फिर राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बन चुकी है। इस बार चर्चा का विषय हैं दो प्रभावशाली नेता—एक कांग्रेस के जलसेवक, तो दूसरा भाजपा के रुग्नसेवक। आगामी स्थानीय निकाय चुनावों की सरगर्मियों के बीच यह मुकाबला राजनीतिक गलियारों में गहरी दिलचस्पी का कारण बन गया है।
‘जलसेवक’ राजुरेड्डी: वर्षों से जनता की प्यास बुझाने में सक्रिय
कांग्रेस के शहर अध्यक्ष राजुरेड्डी को क्षेत्र में लंबे समय से टैंकरों के माध्यम से जल आपूर्ति करने के चलते ‘वॉटर मैन’ या ‘जलसेवक’ की उपाधि प्राप्त है। रेड्डी ने जल संकट के समय आम जनता की सेवा करते हुए एक मजबूत सामाजिक छवि बनाई है। वर्ष 2020 में घुग्घुस को नगर परिषद का दर्जा मिलने के बाद से क्षेत्र में चुनाव नहीं हुए हैं, लेकिन रेड्डी की लगातार सक्रियता ने उन्हें जनता के बीच लोकप्रिय बनाए रखा है।
‘रुग्नसेवक’ विवेक बोडे: भाजपा नेता की सेवा की नई परिभाषा
दूसरी ओर, भाजपा के जिला महामंत्री विवेक बोडे ने भी सामाजिक सेवा के क्षेत्र में अपनी जगह बनाने की कोशिश की है। टैंकरों के माध्यम से जल आपूर्ति के साथ-साथ बीमार नागरिकों को इलाज हेतु सेवाग्राम और अन्य अस्पतालों में पहुंचाकर उन्होंने ‘रुग्नसेवक’ की छवि गढ़ी है। हाल ही में उनके जन्मदिन पर शहर में ‘रुग्नसेवक’ के रूप में लगाए गए होर्डिंग्स और अखबारों में प्रकाशित विज्ञापन चर्चा का विषय बन गए।
हालांकि, इस उत्सव के दौरान एक विवाद भी जन्मा—जब पहलगाम आतंकी हमले और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद पूरे देश में तनाव और शोक का माहौल था, तब विवेक बोडे ने जन्मदिन पर आतिशबाजी और धूमधाम के साथ जश्न मनाया, जिससे जनता में नाराज़गी देखी गई।
‘सेवा’ की सियासत या खुद की छवि निर्माण?
जहां एक ओर सेवा को राजनीति से जोड़ना आम बात होती जा रही है, वहीं जनता का सवाल यह है कि क्या यह सेवा वास्तव में समाजहित में है या केवल राजनीतिक छवि बनाने का साधन? उल्लेखनीय है कि दोनों नेताओं पर पूर्व में ‘नॉट फॉर सेल’ और ‘फ्रॉड शिक्षक’ जैसे आरोप भी लगे हैं, जिससे इनकी छवि पर सवाल उठते रहे हैं।
आगामी निकाय चुनावों में भाजपा-कांग्रेस सीधी टक्कर में
वर्ष 2020 में नगर परिषद का दर्जा मिलने के बाद पहली बार होने वाले चुनाव अक्टूबर में संभावित हैं। ऐसे में कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी टक्कर देखने को मिल सकती है। भाजपा की आंतरिक राजनीति में भी गुटबाजी देखने को मिल रही है। पूर्व मंत्री विधायक सुधीर मुनगंटीवार के सेवा केंद्र से जुड़े कई नेता अब विधायक किशोर जोरगेवार के खेमे में शामिल हो गए हैं, जिससे भोंगले और बोडे का गुट कमजोर होता दिख रहा है।
बोडे की ‘राजुरा’ में दिलचस्पी और संभावित जिला परिषद दावेदारी?
एक और राजनीतिक संकेत यह है कि विवेक बोडे के राजनैतिक गुरु देवराव भोंगले जब राजुरा से विधायक बने, तब से बोडे की सक्रियता राजुरा क्षेत्र में बढ़ी है। बोडे के जिलापरिषद सदस्य बनने की तैयारी की चर्चाएं भी चल रही हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वह स्थानीय से लेकर जिला स्तर तक अपनी सियासी पकड़ मजबूत करना चाहते हैं।
पानी बनाम इलाज की सेवा में कौन पड़ेगा भारी?
आज के घुग्घुस में जहां एक तरफ जल की आपूर्ति करने वाला नेता ‘जलसेवक’ की छवि गढ़ रहा है, वहीं बीमारों की सेवा करने वाला ‘रुग्नसेवक’ बनकर उभर रहा है। लेकिन सवाल यही है कि सेवा की यह राजनीति वास्तव में कितनी पारदर्शी और जनहितैषी है?
आगामी चुनाव न केवल इन दोनों नेताओं की लोकप्रियता की परीक्षा लेंगे, बल्कि यह भी तय करेंगे कि घुग्घुस की जनता किस सेवा को प्राथमिकता देती है—जलसेवा या रुग्नसेवा?
राजनीति के इस दिलचस्प द्वंद्व में कौन जीतेगा, यह तो आनेवाला वक्त ही बताएगा, लेकिन इतना तय है कि घुग्घुस की राजनीति में यह मुकाबला लंबे समय तक चर्चा में रहेगा।
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