प्रतिकूल परिस्थितियों पर विजय पाकर, लिमंत्रिका ने पांच विषयों में एमए किया और इतिहास में दोहरे स्वर्ण पदक के साथ महाराष्ट्र में नाम कमाया।
जीवन में सुख के दिन चुपचाप बीत जाते हैं, लेकिन अचानक आई कोई विपत्ति बहुत कुछ सिखा जाती है। इसी प्रकार की प्रेरणादायक घटना महाराष्ट्र के ब्रह्मपुरी की रहने वाली लिमंत्रिका भगवान नवघडे (अनघा अविनाश दंडवते) के जीवन में घटित हुई। जिन्होंने प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करते हुए दुगुना स्वर्ण पदक हासिल किया।
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लिमंत्रिका की शादी के बाद उनका जीवन ब्रह्मपुरी में सामान्य रूप से चल रहा था। उनके पति सार्वजनिक निर्माण विभाग में अधिकारी पद पर कार्यरत थे। घर का काम और बचे हुए समय में पढ़ाई, यही उनका दिनचर्य था। उस समय उन्होंने केवल एक विषय में एमए किया था, लेकिन उनके पति ने उनकी अध्ययन की रुचि देखकर उन्हें और पढ़ाई करने के लिए प्रोत्साहित किया। लिमंत्रिका ने भी पूरे जोश और मेहनत से आगे की पढ़ाई शुरू की।
सब कुछ सुचारू रूप से चल रहा था, लेकिन अचानक उनके पति का निधन हो गया। यह उनके लिए एक बड़ा आघात था और कुछ समय तक उन्हें समझ नहीं आया कि आगे क्या करना है। लेकिन अपने पति के शब्दों को याद करते हुए, जिन्होंने कहा था कि किसी भी संकट में धैर्य बनाए रखना चाहिए, उन्होंने अपनी दोनों बेटियों के लिए खुद को संभाला। उन्होंने सरकारी शिक्षिका की नौकरी हासिल करने के लिए मेहनत की और सफलतापूर्वक यह मुकाम हासिल किया।
लिमंत्रिका यहीं नहीं रुकीं, उन्होंने एक के बाद एक पांच विषयों में एमए की डिग्री प्राप्त की। हाल ही में, उन्होंने गोंडवाना विश्वविद्यालय से इतिहास में एमए की परीक्षा में दोहरा स्वर्ण पदक जीता। गोंडवाना विश्वविद्यालय के 11वें और 12वें दीक्षांत समारोह में, राज्यपाल और कुलपति सी. पी. राधाकृष्णन के हाथों उन्हें यह सम्मान प्रदान किया गया।
इस सफलता ने लिमंत्रिका को महाराष्ट्र भर में चर्चा का विषय बना दिया है और ब्रह्मपुरी शहर को भी गर्व का अवसर दिया है।