चंद्रपुर: पिछले कुछ दिनों से मूल-चंद्रपुर मार्ग (Mul-Chandrapur Road) पर केसलाघाट क्षेत्र में ‘के मार्क’ (K Mark) नाम की एक बाघिन ने नागरिकों को पूरी तरह से परेशान कर दिया है। इस बाघिन के लगातार हमलों और हरकतों के चलते वन विभाग (Forest Department) ने अब एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक कदम उठाया है। बाघिन के मार्ग को रोकने के लिए वन विभाग ने जो ‘चक्रव्यूह’ रचा है, अब यह देखना बाकी है कि यह बाघिन उसे भेदकर निकल पाती है या इस घेरे में फंस जाती है।
बछड़े के गम में हमलावर हुई बाघिन?
बताया जा रहा है कि पिछले कुछ समय से यह बाघिन केसलाघाट क्षेत्र में वाहन चालकों के लिए आतंक का पर्याय बन गई है।
- इस बाघिन ने हाल ही में एक दोपहिया वाहन चालक को घायल कर दिया।
- इसी तरह, दोपहिया वाहन पर सवार एक दंपति बाल-बाल बचा। यह दंपति जब अपनी बाइक से जा रहा था, तभी बाघिन पीछे से आई और सड़क पार करके दूसरी ओर चली गई। यह क्षण उनके लिए जान सांसत में डालने वाला था।
बाघिन के इस हिंसक व्यवहार के पीछे एक दुखद कारण बताया जा रहा है। मूल-चंद्रपुर महामार्ग पर केसलाघाट के रास्ते पर एक वाहन की टक्कर से एक बाघ के शावक की मौत हो गई थी। ताडोबा-अंधारी बाघ परियोजना (Tadoba-Andhari Tiger Project) की ‘के मार्क’ बाघिन के तीन शावकों में से अब एक उसके साथ दिखाई नहीं दे रहा है। ऐसे में यह आशंका व्यक्त की जा रही है कि दुर्घटना में मरा हुआ शावक यही रहा होगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि शावक को खोने के गम में बाघिन व्याकुल होकर इधर-उधर भटक रही है और अपने शावक की तलाश में सामने आने वाले वाहनों पर हमला कर रही है।
‘के मार्क’ का संवेदनशील अधिवास
‘के मार्क’ बाघिन चंद्रपुर महामार्ग पर केसलाघाट इलाके में काफी मशहूर है। इस बाघिन के तीन शावक थे।
- इस सड़क के दाहिनी ओर प्रादेशिक वन क्षेत्र है, जबकि बाईं ओर ताडोबा-अंधारी बाघ परियोजना का बफर क्षेत्र है।
- दक्षिण ताडोबा का केसलाघाट और झरीपेठ का जंगल उसका स्थायी निवास स्थान है।
- एक बेहद जोखिम भरे अधिवास से यह राष्ट्रीय राजमार्ग गुजरता है।
- पहले यह बाघिन शावकों के साथ अक्सर इस मार्ग पर घूमती दिखती थी, लेकिन इसने कभी भी किसी वाहन पर हमला नहीं किया था।
वन विभाग ने उठाया ‘ऐतिहासिक’ कदम
नागरिकों की सुरक्षा और बाघिन को नुकसान से बचाने के लिए वन विभाग ने एक अभूतपूर्व उपाय किया है:
1 KM का घेराव: केसलाघाट क्षेत्र में लगभग एक किलोमीटर मार्ग के दोनों किनारों पर मजबूत और ऊँची जालियाँ (फेंसिंग) लगाई गई हैं। यह फेंसिंग बाघिन को सीधे सड़क पर आने से रोकेगी।
24×7 निगरानी: पूरे क्षेत्र पर कैमरा ट्रैप (Camera Trap) की मदद से लगातार नज़र रखी जा रही है।
टीम तैनात: किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए बड़ी संख्या में विशेष वनपथकों (Forest Patrol Teams) को तैनात किया गया है।
वन अधिकारियों का कहना है कि यह पहली बार है जब ऐसी विस्तृत और महंगी उपाययोजना की गई है। अब सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या वन विभाग द्वारा रचा गया यह सुरक्षा ‘चक्रव्यूह’, बछड़े के गम में गुस्साई हुई इस शातिर बाघिन को रोक पाएगा, या फिर वह इसे भेदकर फिर से हाईवे पर अपनी दहशत कायम करेगी।
