कर्नाटक की आलंद विधानसभा सीट पर वोट चोरी के मामले में CID जांच रोककर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने मात्र 5 दिनों में SIT गठित की। राहुल गांधी के तीखे बयान के बाद राज्य सरकार ने तीन जांबाज़ और निष्पक्ष अफसरों – बी. के. सिंह, सैदुलु अदवत और शुभनविता – को जिम्मेदारी सौंपी। इससे सरकार का यह संदेश गया कि वह मामले की तह तक जाने को तैयार है।
इसके विपरीत, महाराष्ट्र के राजुरा में पिछले 11 महीनों से वोट चोरी कांड पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। स्थानीय पुलिस चुनाव आयोग को पाँच बार पत्र लिख चुकी है, लेकिन डाटा अब तक उपलब्ध नहीं कराया गया। सवाल यह है कि जब अपराध दर्ज है तो मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस SIT गठित कर निष्पक्ष जांच क्यों नहीं कराते?
महाराष्ट्र सरकार पर सवाल: क्या सच में चाहते हैं पाक-साफ चुनाव?
फडणवीस बार-बार “स्वच्छ और पारदर्शी चुनाव” की बात करते हैं। पर राजुरा में स्थिति अलग है – FIR दर्ज है, पुलिस जांच में सहयोग की गुहार लगा रही है, लेकिन कार्रवाई ठप है। आलंद की तरह SIT गठित कर जांच शुरू करना उनकी राजनीतिक ईमानदारी की असली परीक्षा हो सकती है।
यदि CM फडणवीस खुद को पारदर्शिता का पक्षधर बताते हैं, तो यह कदम उठाना उनके लिए राजनीतिक अवसर भी हो सकता है। अन्यथा, यह आरोप और मजबूत होंगे कि सत्ता पक्ष वोट चोरी के आरोपों को दबा रहा है।
कांग्रेस का भी ढुलमुल रवैया
राजुरा का यह मामला केवल भाजपा बनाम कांग्रेस का नहीं, बल्कि कांग्रेस संगठन की कमजोरियों को भी उजागर करता है। यदि यह वोट चोरी कांड सच निकला तो यह स्पष्ट होगा कि जिलाध्यक्ष सुभाष धोटे के साथ अन्याय हुआ।
जिलाध्यक्ष संगठन में सबसे बड़ा पद होता है। परंतु कांग्रेस के सांसद प्रतीभा धानोरकर, विधायक विजय वडेट्टीवार और सुधाकर अडबाले ने इस मुद्दे पर सड़क से सदन तक कोई बड़ा आंदोलन नहीं किया। राहुल गांधी के प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद भी कांग्रेस का रुख महज़ बयानबाजी तक सीमित रहा।
यह सवाल जनता पूछ रही है – जो नेता अपने ही जिलाध्यक्ष के लिए आवाज़ नहीं उठा सकते, वे जनता के लिए कितना लड़ पाएंगे?
आलंद मॉडल बनाम राजुरा सन्नाटा
कर्नाटक की SIT को सीधे सबूत जब्त करने के अधिकार दिए गए हैं। बी. के. सिंह जैसे अफसर, जिन्होंने गौरी लंकेश और प्रज्वल रेवन्ना जैसे हाई-प्रोफाइल मामलों में कड़ी कार्रवाई की, इस जांच को गंभीरता देते हैं।
राजुरा में भी यदि SIT गठित होती है, तो न केवल सच्चाई सामने आएगी, बल्कि जनता का लोकतंत्र में भरोसा भी बढ़ेगा।
अन्यथा यह संकेत जाएगा कि सरकार और चुनाव आयोग दोनों ही लोकतंत्र से ऊपर खुद को समझ रहे हैं।
राजुरा वोट चोरी मामला केवल एक शहर का चुनावी विवाद नहीं, बल्कि लोकतंत्र की साख का प्रश्न बन चुका है। कर्नाटक में जिस तरह SIT बनाकर तेज़ कार्रवाई हुई, वैसा ही कदम महाराष्ट्र में क्यों नहीं उठाया जा रहा – यह सवाल हर दिन बड़ा हो रहा है।
फडणवीस सरकार यदि वास्तव में ईमानदार है, तो SIT गठित कर इस मामले में कार्रवाई करे। और कांग्रेस यदि खुद को विपक्ष कहती है, तो उसे भी आंदोलन, जनदबाव और कानूनी मोर्चे पर सक्रिय होना होगा – वरना जनता का भरोसा दोनों पर से उठ सकता है।
