मशहूर स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा का नया शो🔍 ‘नया भारत’ अब विवादों के घेरे में आ गया है। अपने तीखे राजनीतिक कटाक्ष और व्यंग्यपूर्ण गानों के लिए पहचाने जाने वाले कामरा ने इस शो में देश की मौजूदा राजनीति पर तंज कसे, जिससे हंगामा मच गया। शिवसेना के कार्यकर्ताओं ने मुंबई के उस कॉमेडी क्लब में जमकर तोड़फोड़ कर दी, जहां यह शो रिकॉर्ड किया गया था।
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शिवसैनिकों का तांडव, ‘शिवसेना स्टाइल’ में न्याय!
जैसे ही कामरा का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, वैसे ही शिवसेना के कार्यकर्ताओं का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। गुस्साए शिव सैनिकों ने मुंबई के खार इलाके में स्थित ‘द हैबिटेट’ कॉमेडी क्लब में धावा बोल दिया और जमकर तोड़फोड़ मचाई। इस हमले में 35 से अधिक शिव सैनिक शामिल थे, जिनमें पार्टी की युवा सेना के सचिव राहुल एन. कनाल भी मौजूद थे। राहुल कनाल ने मीडिया से बात करते हुए अपने कृत्य को जायज़ ठहराया और कहा,
> “जो हमारे नेताओं का अपमान करेगा, उसे हम बख्शेंगे नहीं! हम परिसर में घुसकर उसे तहस-नहस कर देंगे!”
कुणाल कामरा के खिलाफ एफआईआर दर्ज, धमकियों की झड़ी!
इस पूरे विवाद के बीच मुंबई पुलिस ने भी कुणाल कामरा के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली है। महाराष्ट्र के गृह मंत्री योगेश कदम ने कहा कि पुलिस कामरा का पता लगाने में जुटी हुई है। इसी बीच, शिवसेना सांसद नरेश म्हास्के ने तो धमकी भरे अंदाज में यह तक कह दिया कि,
> “कामरा अब मुंबई में नहीं रह पाएंगे! उन्हें भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया जाएगा!”
‘तानाशाह’ और ‘गद्दार’ गाने बने विवाद की वजह?
कामरा के शो🔍 ‘नया भारत’ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तंज कसते हुए ‘तानाशाह’ नाम का गाना पेश किया गया। इतना ही नहीं, शिवसेना नेता और महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे पर भी उन्होंने निशाना साधा। कामरा ने ‘दिल तो पागल है’ की धुन पर ‘गद्दार’ शब्द का इस्तेमाल किया, जिससे शिवसैनिक भड़क उठे। हालांकि, कामरा ने नेताओं का नाम सीधे तौर पर नहीं लिया, लेकिन संकेत इतने स्पष्ट थे कि दर्शक समझ गए कि वह किसकी बात कर रहे हैं।
क्या महाराष्ट्र में लोकतंत्र खतरे में?
महाराष्ट्र में राजनीतिक असहिष्णुता कोई नई बात नहीं है। लेकिन, लोकतंत्र के नाम पर खुलेआम हिंसा, धमकी और गुंडागर्दी का यह नया रूप बेहद चिंताजनक है।
अब देखना यह होगा कि क्या कानून-व्यवस्था ऐसे हमलावरों पर कोई कड़ी कार्रवाई करती है या यह मामला भी सिर्फ एक राजनीतिक ड्रामा बनकर रह जाएगा? क्या कुणाल कामरा को सिर्फ व्यंग्य करने की सजा मिलेगी, या अभिव्यक्ति की आज़ादी पर मंडरा रहा खतरा और भी बढ़ेगा?