चंद्रपुर-वणी-आर्णी लोकसभा क्षेत्र में इस बार भाजपा ने अपना उम्मीदवार बदल दिया है। पिछली बार उम्मीदवार रहे हंसराज अहीर के बदले में इस बार राज्य के वन मंत्री सुधीर मुनगंटीवार को चुनाव मैदान में उतारा गया है। मुनगंटीवार की उम्मीदवारी यवतमाल जिले के दो विधानसभा क्षेत्रों और छह तहसीलों में जोर आजमाइश करेगी। लेकिन यहां का जातीय समीकरण बेहद अलग है। ओबीसी बहुल इस लोकसभा क्षेत्र में भाजपा के लिए जीत आसान नहीं होगी। जबकि वणी-आर्णी क्षेत्र को बरसों से पूर्व सांसद हंसराज अहीर का गढ़ माना जाता रहा है। यहां मुनगंटीवार के लिए अपनी नैया पार लगाना काफी मुश्किल भरा काम होगा।
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चंद्रपुर- वणी-आर्णी लोकसभा क्षेत्र से सुधीर मुनगंटीवार की उम्मीदवारी की घोषणा होते ही मुनगंटीवार के समर्थक उत्साहित हैं। महा विकास अघाड़ी के उम्मीदवार की घोषणा अभी बाकी है, लेकिन सुधीर मुनगंटीवार के समर्थकों ने उनकी जीत की गणना शुरू कर दी है। मुनगंटीवार और हंसराज अहीर के बीच राजनीतिक दरार को देखते हुए यह संदेह है कि लोकसभा नामांकन नहीं मिलने से आहत अहीर इस चुनाव में क्या मुनगंटीवार का समर्थन करेंगे ?
चंद्रपुर-वणी-अर्णी लोकसभा क्षेत्र के लिए पिछड़ा वर्ग आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष हंसराज अहीर के नाम की जमकर चर्चा हुई। हालांकि, पार्टी ने मुनगंटीवार को उम्मीदवार बनाया। 2014 के चुनाव में हंसराज अहीर ने कांग्रेस के संजय देवताले को 2 लाख 36 हजार 179 वोटों से हराया था। 5 वर्ष पूर्व 2019 में कांग्रेस के सुरेश (बाळू) धानोरकर ने बीजेपी के केंद्र राज्य गृहमंत्री हंसराज अहीर को 44 हजार 744 वोटों से हराया था। राज्य में कांग्रेस के एकमात्र सुरेश (बाळू) धानोरकर सांसद चुने गये। अहीर की हार से बीजेपी का ‘कांग्रेस मुक्त महाराष्ट्र’ का नारा कमजोर पड़ गया। यह हार भाजपा के लिए बहुत महंगी पड़ी। जब हंसराज अहीर को पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष चुना गया तो राजनीतिक गलियारों में चर्चा होने लगी कि चंद्रपुर-वणी-आर्णी लोकसभा क्षेत्र में अहीर की दावेदारी खत्म हो गई है।
बीजेपी ने महाविकास अघाड़ी के लिए सुधीर मुनगंटीवार के रूप में चुनौती खड़ी कर दी है। फिर भी सुधीर मुनगंटीवार के लिए यह चुनाव आसान नहीं है। इस संसदीय क्षेत्र में जातीय समीकरण हमेशा हावी रहे हैं। निर्वाचन क्षेत्र में ‘धनोजे कुणबी’ समूदाय के वोट हमेशा निर्णायक रहे। अगर महाविकास अघाड़ी यहां धनोजे कुणबी समूदाय से उम्मीदवार देती है तो मुनगंटीवार के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं। मुनगंटीवार जिस आर्य वैश्य समाज के नेतृत्व करते हैं वह समाज आर्णी में बहुत संख्या में है। लेकिन आदिवासी, बंजारा, मराठा (कुणबी), मुस्लिम समूदाय की तुलना में यह कम है। इसलिए मुनगंटीवार को जातीय समीकरण के साथ-साथ सामाजिक समीकरण पर भी जोर देना होगा। हालांकि वणी और केलापुर निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा के विधायक हैं, लेकिन ये निर्वाचन क्षेत्र पारंपरिक कांग्रेस के हैं। यह भी ध्यान रखना होगा कि इस क्षेत्र में संघ या भाजपा के परंपरागत वोटर नहीं हैं। यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि 2014 और 2019 में, दोनों भाजपा विधायक नरेंद्र मोदी और भाजपा की लहर में चुने गए थे।
कांग्रेस में उम्मीदवारी के लिए जोर-आजमाइश चल रही है। सांसद सुरेश (बाळू) धानोरकर के निधन के बाद उनकी पत्नी विधायक प्रतिभा धानोरकर कांग्रेस से उम्मीदवारी पर जोर दे रही हैं। हालाँकि, राज्य के विपक्षी नेता विजय वडेट्टीवार अपनी बेटी, युवा कांग्रेस महासचिव शिवानी वडेट्टीवार को नामांकन दिलाने की कोशिश कर रहे हैं। तो अब राजनीतिक गलियारों की नजरें इस बात पर टिक गई हैं कि इन दोनों में से जीत किसकी होती है ?