महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर भूचाल आया है! खबरों के मुताबिक विधानसभा चुनावों में पराजित हुए महाविकास आघाड़ी (कांग्रेस-राष्ट्रवादी गठबंधन) के 26 उम्मीदवारों ने मुंबई हाईकोर्ट के नागपुर खंडपीठ में बीजेपी और शिंदे गुट की महायुति के विजयी उम्मीदवारों के खिलाफ गंभीर आरोपों के साथ याचिका दाखिल की है। इसमें EVM के इस्तेमाल पर सवाल खड़े करते हुए कहा गया है कि चुनाव आयोग ने वैधानिक अधिसूचना जारी किए बिना चुनाव करवा दिए!
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तीन बड़े नाम आए निशाने पर
याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने तीन सत्तारूढ़ विधायकों को समन जारी किया है—सुधीर मुनगंटीवार (भाजपा, बल्लारपूर), देवराव भोंगले (भाजपा, राजुरा), मनोज कायंदे (राष्ट्रवादी कांग्रेस – शरद पवार गुट, सिंदखेडराजा) इन नेताओं को तीन सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का आदेश दिया गया है।
कांग्रेस और राष्ट्रवादी ने उठाए गंभीर सवाल
कांग्रेस प्रत्याशी संतोषसिंह रावत, राष्ट्रवादी कांग्रेस के डॉ. राजेंद्र शिंगणे और कांग्रेस के सुभाष धोटे ने अलग-अलग याचिकाएं दायर करते हुए आरोप लगाया है कि— ईवीएम से चुनाव कराने से पहले कोई अधिसूचना जारी नहीं की गई। CCTV फुटेज और फॉर्म नंबर 17 की प्रतियां पराजित उम्मीदवारों को नहीं दी गईं। VVPAT पर्चियों की गिनती नहीं की गई।
न्यायालय ने चुनाव आयोग को दी राहत, लेकिन विजयी उम्मीदवारों को नोटिस
न्यायमूर्ति वृषाली जोशी और न्यायमूर्ति प्रवीण पाटील की खंडपीठ ने चुनाव आयोग और अन्य संस्थाओं के नाम याचिका से हटाने का आदेश दिया, लेकिन विजयी विधायकों को नोटिस जारी करते हुए चार हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा है। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील अॅड. आकाश मून और अॅड. पवन डहाट ने दलील दी कि चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं बरती गई और इससे लोकतंत्र की नींव पर सवाल खड़े होते हैं।
क्या EVM विवाद फिर से गरमाएगा?
महाराष्ट्र की राजनीति में यह मामला एक बड़े तूफान का संकेत है। यदि हाईकोर्ट याचिकाकर्ताओं के पक्ष में फैसला देता है, तो चुनाव प्रक्रिया, ईवीएम की वैधता और चुनाव आयोग की भूमिका को लेकर देशव्यापी बहस छिड़ सकती है।
अब सबकी निगाहें अगले सुनवाई पर टिकी हैं, जो आने वाले हफ्तों में इस राजनीतिक भूचाल की दिशा तय करेगी।