Maharashtra Assembly Election Campaign in Chandrapur District Reaches its Peak, Today the Campaign Guns Will Fall Silent Bjp vs Congress
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बीते अनेक दिनों से जारी राजनीतिक गतिविधियां और चुनावी प्रचार का खुमार अब सिर चढ़कर बोलने लगा है। जिले के हर गली-चौराहों पर राजनीति और उम्मीदवारों की ही चर्चा हो रही है। कौन जीतेगा, कौन हारेगा ? इसी पर बहस होने लगी है। कौनसे उम्मीदवार ने क्या किया ? यह चर्चा का केंद्र बन गया है। इस सब के बीच उम्मीदवारों के गुणों के साथ साथ उनकी खामियों पर भी बात होने लगी है। मीडिया में भी यह विषय सूर्खियां बटोर रहा है। चंद्रपुर जिले में कुल 6 विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र हैं। इनमें मुख्य 2 राजनीतिक दलों के बीच टक्कर नजर आ रही है। भाजपा और कांग्रेस के बीच की लड़ाई में कुछ निर्दलीय चेहरे ऐसे भी हैं, जो वोटों का गणित बिगाड़ सकते हैं। उम्मीदवार कहां कम पड़ रहे हैं, इसका आकलन जनता कर रही है।
♦ मंत्री सुधीर मुनगंटीवार : Ballarpur Assembly
पिछले पंद्रह वर्षों से प्रतिनिधित्व करने वाले क्षेत्र में पर्याप्त सिंचाई सुविधाएं न होने के कारण किसानों में गहरी नाराजगी देखी जा रही है। लंबे समय से क्षेत्र की समस्याओं को लेकर आवाजें उठाई जा रही थीं, लेकिन इस मुद्दे का समाधान नहीं हो सका। इसका परिणाम यह हुआ कि किसानों को अपनी फसलें समय पर पानी न मिलने के कारण नुकसान उठाना पड़ा। पोंभुर्णा में एमआईडीसी (महाराष्ट्र औद्योगिक विकास निगम) स्थापित की गई, लेकिन वहां उद्योग लाने में हो रही देरी ने स्थानीय लोगों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। यह परियोजना क्षेत्र के युवाओं के लिए रोजगार का बड़ा स्रोत बन सकती थी, लेकिन धीमी गति के कारण अभी तक इसका पूरा लाभ नहीं मिल पाया है। भले ही कार्यकर्ताओं का नेटवर्क मजबूत हो, लेकिन जमीनी स्तर पर सक्रियता की कमी और सीधे नेताओं पर निर्भरता से कई योजनाओं का क्रियान्वयन अधूरा रह गया। हालांकि, क्षेत्र में अपेक्षा से अधिक विकास कार्य हुए हैं, लेकिन जनता की बुनियादी समस्याओं को पूरी तरह हल न कर पाने की वजह से असंतोष का माहौल बना हुआ है। यह असंतोष आगामी चुनावों में बड़ी चुनौती बन सकता है।
♦ विधायक विजय वडेट्टीवार : Bramhapuri Assembly
ग्रामीण इलाकों में सड़क निर्माण और विकास कार्यों की स्थिति संतोषजनक नहीं है। स्थानीय लोगों का कहना है कि सड़कें दुरुस्त करने या नई सड़कों के निर्माण में अपेक्षित गति और गुणवत्ता नहीं दिखाई दे रही है। इसके कारण ग्रामीणों को आवाजाही में कठिनाई हो रही है, और यह असंतोष का कारण बन रहा है। पिछले दो विधानसभा चुनाव एक ही निर्वाचन क्षेत्र से लड़े जाने के कारण इस बार स्थानीय लोगों में थोड़ी नाराजगी उत्पन्न हुई है। चुनावी प्रक्रिया में एक ही क्षेत्र से लगातार उम्मीदवारों का खड़ा होना, स्थानीय समस्याओं के समाधान के बजाय चुनावी रणनीति पर ज्यादा जोर डालना, मतदाताओं में असंतोष और हताशा का कारण बन सकता है। पार्टी के कार्यकर्ताओं में आपसी विवाद और मतभेद बढ़ रहे हैं। पार्टी में पदों और जिम्मेदारियों के बंटवारे को लेकर कार्यकर्ताओं में असंतोष है, जिससे पार्टी की एकता कमजोर हो रही है। इस आंतरिक संघर्ष का असर चुनावी रणनीतियों पर भी पड़ सकता है। ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी एक गंभीर समस्या बन गई है। स्थानीय उद्योगों की कमी के कारण युवाओं के पास रोजगार के अवसर नहीं हैं। इससे पलायन और असंतोष की स्थिति उत्पन्न हो रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन के लिए आवश्यक कदम नहीं उठाए जा रहे हैं, जिससे बेरोजगारी और गरीबी की समस्या बढ़ रही है। यह खबर ग्रामीण क्षेत्रों में हो रहे विकास कार्यों की कमी, बेरोजगारी, और पार्टी के भीतर के आंतरिक विवादों को लेकर उत्पन्न असंतोष और समस्याओं को उजागर करती है।
♦ विधायक सुभाष धोटे : Rajura Aseembly
राजुरा विधानसभा क्षेत्र में विभिन्न उद्योग और कंपनियां होने के बावजूद, बेरोजगारी की समस्या गंभीर बनी हुई है। परप्रांतीय मजदूरों का बड़े पैमाने पर आना इस क्षेत्र में स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार के अवसर कम कर रहा है। यह क्षेत्र कपास उत्पादन के लिए जाना जाता है, फिर भी यहां कपास पर आधारित उद्योगों की स्थापना नहीं हो पाई है। इससे स्थानीय किसानों और मजदूरों को फायदा नहीं हो रहा। इसके अलावा, प्रोजेक्ट से प्रभावित लोगों की समस्याएं अब भी जस की तस बनी हुई हैं। सिंचाई क्षेत्र का विस्तार करने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किए गए हैं, जिससे खेती पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। प्रदूषण की समस्या और ग्रामीण सड़कों की खराब स्थिति ने ग्रामीण जीवन को और मुश्किल बना दिया है। इन सभी मुद्दों ने क्षेत्र के विकास को अवरुद्ध कर दिया है।
♦ विधायक किशोर जोरगेवार : Chandrapur Assembly
वर्ष 2019 में 200 यूनिट बिजली मुफ्त देने का वादा किया गया था, लेकिन इसे पूरा करने में नाकामी ने जनता के बीच निराशा और नाराजगी पैदा कर दी है। आम मतदाताओं को उम्मीद थी कि यह वादा पूरा किया जाएगा, लेकिन ऐसा न होने से उनकी भरोसेमंदी पर गहरा असर पड़ा है। भाजपा में प्रवेश के बाद आम मतदाताओं के बीच असंतोष और बढ़ गया है। भाजपा में शामिल होने के उनके फैसले को लेकर कई लोगों ने आलोचना की है, खासकर उनके उन समर्थकों ने, जो उन्हें पहले कांग्रेस या राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से जुड़े देखना चाहते थे। इसके अलावा, पार्टी प्रवेश को लेकर बार-बार बदले गए उनके रुख ने भी उनकी छवि पर सवाल खड़े किए हैं। कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी द्वारा टिकट न दिए जाने के कारण उनकी स्थिति और कमजोर हुई है। भाजपा के अंदर भी उनके टिकट को लेकर नाराजगी है। पार्टी के कुछ कार्यकर्ता उनकी उम्मीदवारी से खुश नहीं हैं, और यह असंतोष पार्टी के लिए आंतरिक चुनौती बन सकता है। इन सभी मुद्दों ने मिलकर उनकी राजनीतिक यात्रा को और मुश्किल बना दिया है, जिससे आगामी चुनाव में उनकी स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
♦ विधायक बंटी भगड़िया : Chimur Assembly
ग्रामीण क्षेत्रों में विकास की कमी और वहां की समस्याओं को लेकर लोगों के बीच बढ़ती नाराजगी को उजागर करती है। इसमें निम्नलिखित मुद्दे उठाए गए हैं। ग्रामीण इलाकों में विकास कार्यों की स्थिति संतोषजनक नहीं है, जिसके कारण मतदाताओं में नाराजगी फैल रही है। जनता का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में सरकार ने इन इलाकों में कोई ठोस विकास कार्य नहीं किए हैं, और मूलभूत सुविधाओं की घातक कमी हो गई है। इस असंतोष का सीधा असर आगामी चुनावों में मतदाताओं के रुझान पर पड़ सकता है। कृषि आधारित अर्थव्यवस्था वाले ग्रामीण इलाकों में सिंचन की सुविधाओं का अभाव गंभीर समस्या बन गई है। जल संकट और सिंचाई की सुविधाओं की कमी के कारण किसान आर्थिक रूप से संकट में हैं। इस कारण उनकी कृषि उत्पादन क्षमता में गिरावट आई है, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहा है। यह किसानों में सरकार के प्रति असंतोष को बढ़ा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में उद्योगों की कमी के कारण बेरोजगारी बढ़ रही है। युवाओं के पास रोजगार के अवसर नहीं हैं, जिससे उन्हें शहरों की ओर पलायन करना पड़ रहा है। बेरोजगारी की इस समस्या ने गांवों में सामाजिक और आर्थिक असंतोष पैदा कर दिया है। यह मुद्दा ग्रामीण जनता के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय बन चुका है। ग्रामीण इलाकों में सड़क निर्माण और मरम्मत के काम धीमी गति से हो रहे हैं या फिर पूरी तरह से रुके हुए हैं। इससे ग्रामीणों को यात्रा करने में दिक्कतें हो रही हैं, और यातायात की सुविधाओं की कमी के कारण उनका जीवन प्रभावित हो रहा है। सड़क निर्माण में हो रही देरी ने सरकार के खिलाफ असंतोष को और बढ़ा दिया है। यह खबर ग्रामीण क्षेत्रों में विकास के अभाव, बेरोजगारी, सिंचन की समस्याओं और अधूरी परियोजनाओं को लेकर बढ़ती नाराजगी और असंतोष को दर्शाती है।
♦ पूर्व विधायक वामनराव चटप : Rajura Assembly
एड. वामनराव चटप पहले तीन बार विधायक रह चुके हैं। हालांकि, 2019 के विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। उनके पिछले कार्यकालों के दौरान जो मजबूत कार्यकर्ताओं की टीम उनके साथ थी, अब वह पहले जैसी नहीं रही। ग्राम पंचायत और नगरपालिका स्तर पर उनकी किसान संघटना का प्रभाव काफी कम हो गया है। यह संगठन, जो पहले ग्रामीण इलाकों में मजबूत पकड़ रखता था, अब कमजोर पड़ चुका है। शहरी क्षेत्रों में भी उन्हें अपेक्षाकृत कम समर्थन मिल रहा है। वहां के लोगों का उनके प्रति रुझान कम होता दिख रहा है। ये सभी कारण उनकी राजनीतिक स्थिति को चुनौतीपूर्ण बना रहे हैं।
♦ देवराव भोंगले : Rajura Assembly
उम्मीदवारी घोषित होने के बाद, पूर्व विधायक एड. संजय धोटे और सुदर्शन निमकर का विरोध हुआ। कुछ लोगों द्वारा उम्मीदवार की छवि को “पार्सल उम्मीदवार” के रूप में पेश करना, भाजपा के पुराने कार्यकर्ताओं में असंतोष, जातीय वोटों में ध्रुवीकरण, और ग्रामीण मतदाताओं में नाराजगी जैसे मुद्दे उभरकर सामने आए हैं। इस विरोध ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। स्थानीय कार्यकर्ताओं और नेताओं के बीच यह चर्चा तेज है कि पार्टी नेतृत्व ने निर्णय लेने में पुराने और समर्पित कार्यकर्ताओं की अनदेखी की है। वहीं, जातीय समीकरणों के चलते मतों के ध्रुवीकरण की आशंका जताई जा रही है, जिससे पार्टी की स्थिति कमजोर हो सकती है। ग्रामीण क्षेत्रों में मतदाताओं के बीच भी नाराजगी देखी जा रही है, जो सरकार की नीतियों और स्थानीय नेतृत्व की कार्यप्रणाली से असंतुष्ट हैं। इन सबके बीच, उम्मीदवार की “पार्सल” छवि ने उनकी विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इन सभी चुनौतियों का समाधान किए बिना पार्टी के लिए यह चुनाव जीतना मुश्किल हो सकता है।
♦ संतोषसिंह रावत : BallarpurAssembly
कांग्रेस में चल रहे आंतरिक गुटबाजी के कारण पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है। गुटों के बीच आपसी खींचतान और तालमेल की कमी ने संगठन को कमजोर बना दिया है। इस आंतरिक कलह का प्रभाव आगामी चुनावों पर पड़ने की संभावना है, जिससे कांग्रेस को अपने पारंपरिक वोट बैंक को बनाए रखने में मुश्किल हो सकती है। इसके अलावा, बैंक भर्ती में आई स्थगन ने लोगों में निराशा पैदा की है। युवा, जो इस भर्ती प्रक्रिया का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे, अब अपनी नाराजगी व्यक्त कर रहे हैं। वहीं, बैंक के अंदर चल रहे विवादों ने भी संगठन की छवि को नुकसान पहुंचाया है। जातीय समीकरणों के चलते मतों का ध्रुवीकरण हो रहा है। विभिन्न समुदायों के बीच विश्वास की कमी और राजनीतिक दलों द्वारा इसे भुनाने की कोशिशों ने क्षेत्र में राजनीतिक माहौल को और जटिल बना दिया है। बल्लारपुर शहर में कांग्रेस की पकड़ कमजोर होती दिख रही है। पार्टी का क्षेत्र में संपर्क सीमित होने के कारण स्थानीय मतदाताओं के बीच नाराजगी बढ़ रही है। यह सभी मुद्दे मिलकर कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती खड़ी कर सकते हैं।
♦ डॉ अभिलाषा गवतुरे : Ballarpur Assembly
कांग्रेस द्वारा उम्मीदवार का टिकट न देने के कारण निर्दलीय चुनाव लड़ने की स्थिति पैदा हो गई है, जो पार्टी के लिए शर्मनाक साबित हो सकती है। टिकट न मिलने से नाराज नेता ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया है, जिससे पार्टी के वोट बैंक में विभाजन की संभावना बढ़ गई है। इस ध्रुवीकरण का लाभ विरोधी दलों को मिल सकता है। इसके अलावा, निर्दलीय उम्मीदवार के पास कार्यकर्ताओं की कमी एक बड़ी चुनौती बन गई है। पार्टी के संगठनात्मक समर्थन के अभाव में उन्हें प्रचार और जनसंपर्क के लिए कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। निर्दलीय उम्मीदवार होने के कारण, कई समर्थक और कार्यकर्ता, जो उनकी मदद करना चाहते हैं, खुलकर सामने आने से बच रहे हैं। राजनीतिक दबाव और संभावित नतीजों के डर से ऐसे कई लोग दूरी बनाए हुए हैं। यह स्थिति कांग्रेस के आंतरिक संघर्ष और पार्टी नेतृत्व की नीतियों को भी उजागर करती है, जो कई बार जमीनी स्तर पर नेताओं और कार्यकर्ताओं की भावनाओं को समझने में विफल रही है। इस तरह की परिस्थितियां आगामी चुनावों में कांग्रेस की स्थिति को और कमजोर कर सकती हैं।
♦ प्रवीण पडवेकर : Chandrapur Assembly
मतदाताओं तक पहुंचने के लिए पर्याप्त समय न मिलने के कारण उम्मीदवार अपनी बात सही तरीके से मतदाताओं तक पहुंचाने में असफल रहे। चुनावी माहौल के बीच उन्हें अपनी योजनाएं और दृष्टिकोण जनता के सामने रखने का अवसर कम मिला, जिससे उनके प्रचार अभियान पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। इसके अलावा, उनके पास प्रभावी कार्यकर्ताओं का मजबूत नेटवर्क नहीं है, जो उनके लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। चुनावी रणनीति में कार्यकर्ताओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, लेकिन नेटवर्क की इस कमी ने उनकी पहुंच सीमित कर दी है। हालांकि उनके साथ पुराने कार्यकर्ता जुड़े हुए हैं, लेकिन उनमें से कई कांग्रेस में प्रभावशाली स्थिति में नहीं हैं। यह स्थिति न केवल प्रचार में बाधा उत्पन्न कर रही है, बल्कि संगठनात्मक ताकत को भी कमजोर कर रही है। इस वजह से मतदाताओं के बीच अपनी पकड़ मजबूत करना उनके लिए कठिन हो रहा है।
♦ राजू झोड़े : Chandrapur Assembly
बल्लारपुर क्षेत्र छोड़कर ऐन वक्त पर चंद्रपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने का फैसला किया गया है। इस बदलाव के कारण चंद्रपुर क्षेत्र में कार्यकर्ताओं की कमी एक बड़ी चुनौती बन गई है। कार्यकर्ताओं के सीमित नेटवर्क और समर्थन के कारण उम्मीदवार का प्रभाव मतदाताओं तक पूरी तरह नहीं पहुंच पा रहा है। चुनावी प्रचार के लिए कम समय मिलने के कारण मतदाताओं तक अपनी योजनाएं और वादे पहुंचाने में भी कठिनाई हो रही है। इसके साथ ही, इस क्षेत्र में मतों के विभाजन की संभावना भी बढ़ गई है, जो चुनावी परिणामों को प्रभावित कर सकती है। ग्रामीण इलाकों में संपर्क की कमी उनकी राजनीतिक रणनीति पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही है। ग्रामीण मतदाताओं तक पहुंच न बना पाना और उनके मुद्दों को समय पर संबोधित न कर पाना, चुनावी दौड़ में उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है।
♦ प्रवीण काकड़े : Warora Assembly
चुनाव में टिकट बांटने को लेकर कुछ गुटों में नाराजगी है। दावेदारों का मानना है कि पार्टी ने उनके अनुभव और योगदान को नजरअंदाज करते हुए उम्मीदवार तय किए हैं। यह असंतोष खासतौर पर ऐसे नेताओं में देखने को मिल रहा है जो काफी समय से पार्टी के लिए काम कर रहे हैं। कुणबी समाज, जो चुनावी गणित में एक महत्वपूर्ण समुदाय है, में मतों का विभाजन देखा जा रहा है। पार्टी की रणनीतियों और उम्मीदवारों के चयन ने इस समाज के भीतर असंतोष पैदा कर दिया है, जिससे एकजुटता टूट रही है। पार्टी ने अनुभवी और वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार करते हुए नए चेहरों और रिश्तेदारों को टिकट दिया है। यह निर्णय पार्टी के भीतर खींचतान का कारण बन रहा है और वरिष्ठ नेताओं के समर्थकों में असंतोष पैदा कर रहा है। धानोरकर परिवार, जो कि राजनीति में प्रभावशाली है, के सदस्यों के बीच आपसी मतभेद सामने आ रहे हैं। इन आंतरिक विवादों का प्रभाव स्थानीय राजनीति पर पड़ रहा है, और इससे पार्टी की छवि को नुकसान हो सकता है। यह खबर चुनावी तैयारियों के बीच पार्टी के भीतर चल रहे तनाव और सामुदायिक समीकरणों पर पड़ने वाले असर को रेखांकित करती है।
♦ कारण देवतले : Warora Assembly
राजनीति में घराणेशाही, भाजपा के भीतर चल रहे आंतरिक विवाद, और कुछ नेताओं के राजनैतिक अनुभव के अभाव को लेकर उत्पन्न मुद्दों को उजागर करती है। इसमें निम्नलिखित बिंदुओं पर प्रकाश डाला गया है। राजनीति में घराणेशाही की समस्या लगातार चर्चा में रहती है। इसमें देखा जाता है कि कुछ राजनीतिक परिवारों में सत्ता और प्रभाव पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है, जिससे अन्य योग्य नेताओं को अवसर नहीं मिल पाते। यह स्थिति भाजपा जैसी पार्टी में भी देखने को मिल रही है, जहां कुछ परिवारों के सदस्य प्रमुख पदों पर काबिज हैं, जबकि पार्टी में अन्य कार्यकर्ताओं को तवज्जो नहीं मिल रही। भाजपा के भीतर आंतरिक मतभेद और संघर्ष भी लगातार चर्चा में हैं। पार्टी के कुछ सदस्य और नेता एक-दूसरे से असहमत हैं, और यह विवाद पार्टी की एकजुटता और चुनावी रणनीतियों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं। आंतरिक मतभेदों के कारण पार्टी को अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। कुछ नेताओं का जनसंपर्क बहुत कमजोर है, जिससे उन्हें जनता से जुड़ने और उनकी समस्याओं का समाधान करने में कठिनाई हो रही है। यह कमी उन नेताओं के लिए चुनावी सफलता की राह में बड़ी रुकावट बन सकती है, क्योंकि चुनावी राजनीति में जनता से निरंतर संवाद और उनकी अपेक्षाओं को समझना बहुत महत्वपूर्ण होता है। कुछ नेता जिनके पास पर्याप्त राजकीय अनुभव नहीं है, वे चुनावी प्रतिस्पर्धा में पीछे रह सकते हैं। राजनीति में अनुभव का बहुत महत्व होता है, क्योंकि यह नेता को सही फैसले लेने में मदद करता है और जनता के बीच विश्वास स्थापित करता है। अनुभवहीन नेताओं की कमी पार्टी के लिए एक चुनौती बन सकती है, खासकर उन चुनावों में जहां राजनीतिक रणनीतियों और निर्णयों की कुशलता जरूरी होती है। यह खबर राजनीति में घराणेशाही, आंतरिक विवादों, जनसंपर्क की कमी और अनुभव के अभाव के मुद्दों को लेकर गंभीर चिंताओं को सामने लाती है।
♦ डॉ. सतीश वाजुरकर : Chimur Assembly
जिला परिषद के अध्यक्ष पद पर रहते हुए भी बेरोजगारों को रोजगार देने के लिए आवश्यक प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। यह स्थिति लोगों में असंतोष का कारण बन रही है, क्योंकि बेरोजगारी की समस्या गांवों और जिलों में गंभीर होती जा रही है। सरकार और स्थानीय नेताओं द्वारा रोजगार सृजन के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाने से युवाओं और बेरोजगारों में नाराजगी फैल रही है। पार्टी में पदाधिकारियों की नियुक्ति के दौरान केवल अपने पसंदीदा और करीबी कार्यकर्ताओं को ही पद दिए जा रहे हैं। यह पक्षपाती रवैया पार्टी के भीतर अंतर्गत असंतोष को जन्म दे रहा है। जो कार्यकर्ता पार्टी के लिए लंबे समय से काम कर रहे थे, उन्हें नजरअंदाज कर दिया जा रहा है, जबकि नए और नजदीकी कार्यकर्ताओं को प्राथमिकता दी जा रही है। इससे पार्टी के अंदर मतभेद और आंतरिक विवाद बढ़ रहे हैं, जो संगठन की एकता को कमजोर कर सकते हैं। यह खबर राजनीतिक निर्णयों और प्रशासनिक असफलताओं के कारण उत्पन्न हो रहे आंतरिक विवादों और असंतोष को दर्शाती है, जिनका असर पार्टी और जनता दोनों पर पड़ सकता है।
♦ क्रिष्ण सहारे : Bramhapuri Assembly
यह खबर चुनावी राजनीति में एक नए चेहरे के उत्थान, पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच कमजोरी, और विभिन्न मतदाताओं के बीच असमंजस को लेकर उठे मुद्दों को दर्शाती है। इसमें निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है। आगामी विधानसभा चुनाव के लिए एक नया चेहरा सामने लाया गया है, जिसे पार्टी ने उम्मीदवार के रूप में खड़ा किया है। हालांकि, इस नए चेहरे के पास चुनावी अनुभव और पहचान की कमी हो सकती है, जो उसे मतदाताओं से जुड़ने में कठिनाई का सामना करवा सकती है। पार्टी में कार्यकर्ताओं के बीच संगठनात्मक पकड़ कमजोर है, जिससे पार्टी की आधारशिला कमजोर पड़ सकती है। कार्यकर्ताओं की कमी और उनमें उत्साह की कमी के कारण चुनावी अभियान प्रभावित हो सकता है। कार्यकर्ताओं में विश्वास और समर्थन की कमी पार्टी के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकती है। उम्मीदवार के पास ग्रामीण क्षेत्रों का अच्छा अध्ययन और अनुभव हो सकता है, जिससे वह ग्रामीण मतदाताओं के लिए एक भरोसेमंद नेता बन सकता है। हालांकि, शहरी मतदाताओं के लिए यह चेहरा नया और अनजाना हो सकता है। शहरी क्षेत्रों में मतदाताओं के बीच पहचान बनाने में समय लग सकता है, और यह चुनावी सफलता के लिए एक बाधा बन सकता है। यह खबर एक नए चेहरे की चुनौती और पार्टी के भीतर कार्यकर्ताओं की कमजोरी के साथ-साथ ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच बढ़ते मतभेदों को लेकर उत्पन्न होने वाली कठिनाइयों को उजागर करती है।
♦ डॉ. चेतन खुटेमाटे : Warora Assembly
सामाजिक क्षेत्र में और बहुजन आंदोलनों में निरंतर सक्रिय दिखाई देने वाले डॉ. चेतन खुटेमाटे वैसे तो एक जाना-माना चेहरा है। परंतु राजनीतिक दलों के बजाय निर्दलीय होकर चुनाव लड़ने का खामियाजा इन्हें भुगतना पड़ सकता है। क्योंकि इनके पास राजनीतिक दलों की तरह कार्यकर्ताओं की बड़ी टीम नहीं है। ऐसे में दलों के प्रत्याशियों को सीधी टक्कर देना काफी मुश्किलों से भरा काम है।
♦ ब्रिजभूषण पाझारे : Chandrapur Assembly
भाजपा के लिए बरसों से काम करने वाले निष्ठावान के रूप में मंत्री सुधीर मुनगंटीवार की सेवा में रहे ब्रिजभूषण पाझारे को इस बार बार भी भाजपा ने उम्मीदवार नहीं बनाया। इसके चलते वे निर्दलीय होकर चुनाव लड़ रहे हैं। हालांकि पाझारे का जनसंपर्क तगड़ा है, परंतु राजनीतिक टिकट मिल जाती और चुनाव लड़ते तो शायद चित्र कुछ और ही होता। पार्टी नेतृत्व और कार्यकर्ताओं की कमी के चलते निर्दलीय प्रत्याशी होकर लड़ना इनके लिए भी काफी दिक्कतों से भरा कार्य बन गया है।
♦ अहेतेशाम अली : Warora Assembly
वरोरा विधानसभा चुनावों के मद्देनजर भाजपा के स्थानीय नेता अहेतेशाम अली ने बगावत कर दी। उन्होंने प्रहार जनशक्ति पार्टी की ओर से अपना नामांकन भरा है। पार्टी प्रमुख बच्चू कडू उनके प्रचार में पूरी शक्ति झोंक रहे हैं। ऐसे में अली की सक्रियता से मुख्य राजनीतिक दलों का सिरदर्द बढ़ गया है। परंतु प्रहार जनशक्ति पार्टी में कार्यकर्ताओं की अपेक्षा के अनुरूप संख्या नहीं है। मुख्य राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं, धन-बल के आगे अली की शक्ति कमजोर पड़ने के आसार है।