पूर्व मंत्री सुधीर मुनगंटीवार ने महाराष्ट्र विधानसभा में एक ही दिन में 30 अशासकीय विधेयकों की पुनर्स्थापना कर रचा इतिहास। जानिए कैसे यह लोकतंत्र और जनहित की दिशा में मील का पत्थर साबित हुआ।
महाराष्ट्र की विधानमंडल प्रक्रिया में शुक्रवार का दिन (4 जुलाई 2025) ऐतिहासिक बन गया, जब भाजपा के वरिष्ठ नेता, विधायक एवं राज्य के पूर्व वन, सांस्कृतिक कार्य और मत्स्य व्यवसाय मंत्री सुधीर मुनगंटीवार ने एक ही दिन में 30 अशासकीय विधेयकों की पुनर्स्थापना करके लोकतंत्र की नई मिसाल पेश की। यह न केवल एक रिकॉर्ड ब्रेकिंग राजनीतिक उपलब्धि है, बल्कि आम जनता के मुद्दों के प्रति उनकी तपस्वी संवेदनशीलता और प्रतिबद्धता का प्रमाण भी है।
इस ऐतिहासिक क्षण पर बोलते हुए मुनगंटीवार ने कहा, > “ शुक्रवार का दिन महाराष्ट्र की विधान प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। इन अशासकीय विधेयकों के माध्यम से नागरिकों को उनके न्यायसंगत अधिकारों के लिए एक सशक्त मंच मिलेगा।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह विधेयक मात्र “संख्या का खेल” नहीं है, बल्कि समाज की वास्तविक आवश्यकताओं और नीतिगत बदलावों पर केंद्रित हैं।
विधेयकों का दायरा और उद्देश्य:
इन विधेयकों में किसानों, विद्यार्थियों, महिलाओं, ग्रामीण विकास, पर्यावरण और लोकहित से जुड़े विषयों को शामिल किया गया है। हर एक विधेयक में सामाजिक समता, टिकाऊ विकास, और लोकनीति के प्रति प्रतिबद्ध दृष्टिकोण स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
विधानसभा अध्यक्ष ने विधेयकों की पुनर्स्थापना की अनुमति देते हुए “स्पिरिट ऑफ लॉ और स्पिरिट ऑफ लेटर” की भावना की सराहना की। इस पर मुनगंटीवार ने आभार प्रकट करते हुए कहा: > “आज जब अशासकीय विधेयकों के लिए समय दिया गया, तो यह लोकतंत्र के लिए एक आश्वासक संकेत है। विधानभवन ‘लक्षवेधी भवन’ बनता जा रहा है, लेकिन इस प्रकार की चर्चा वास्तविक लोकशाही को सशक्त करती है।”
राजनीतिक गलियारों में इस कदम को रणनीतिक और वैचारिक दूरदर्शिता से भरा हुआ माना जा रहा है। जहां अनेक नेता जनप्रतिनिधित्व को केवल राजनीतिक लाभ तक सीमित रखते हैं, वहीं मुनगंटीवार की यह पहल यह दर्शाती है कि विधायिका को जनहित का माध्यम बनाना ही असली नेतृत्व है।
विशेषज्ञों के अनुसार, यह प्रयास केवल “विधायी प्रक्रिया” नहीं बल्कि एक लोक-नीति क्रांति की शुरुआत है, जिसमें जनता के सवाल और उनके समाधान ही राजनीति का केंद्रबिंदु हैं।
महाराष्ट्र के संसदीय इतिहास में सुधीर मुनगंटीवार का यह कदम लोकशाही की गरिमा, विधायकीय सक्रियता, और जनहित के प्रति प्रतिबद्ध नेतृत्व की एक नई मिसाल बनकर उभरा है। आने वाले वर्षों में यह दिन महाराष्ट्र विधानमंडल के स्वर्णिम पन्नों में दर्ज होगा।
