देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू पर सत्ता पक्ष का रुख अक्सर आलोचनात्मक रहा है। संसद में उनकी बार-बार की जाने वाली आलोचना इसका प्रमाण है। नेहरू पर राजनीति का यह विवाद दिल्ली तक सीमित नहीं है, अब चंद्रपुर के महात्मा गांधी चौक से ‘अम्मा’ चौक विवाद अब दीक्षाभूमि तक पहुँच गया है।
‘अम्मा की पढ़ाई’ केंद्र पर आंबेडकरवादी कार्यकर्ताओं का विरोध
चंद्रपुर शहर के मध्य गांधी चौक से शुरू हुआ ‘अम्मा’ चौक विवाद अब दीक्षाभूमि तक पहुँच गया है। दीक्षाभूमि परिसर में विधायक किशोर जोरगेवार की मातोश्री ‘अम्मा’ (दिवंगत गंगूबाई जोरगेवार) के नाम से शुरू हुए ‘अम्मा की पढ़ाई’ केंद्र का आंबेडकरवादी कार्यकर्ताओं ने विरोध किया। दूसरी ओर, इसी परिसर में अम्मा का स्मारक एक चौक में बनाने का दावा आम आदमी पार्टी ने किया था। इस दावे को खारिज करते हुए भाजपा की ओर से इस परिसर का नाम दीक्षाभूमि चौक करने की मांग की गई। पिछले पाँच दिनों से यह ‘अम्मा’ प्रकरण शहर के राजनीतिक और सामाजिक माहौल को हिला रहा है। फिलहाल यह मामला विधायक जोरगेवार के इर्द-गिर्द घूमता दिख रहा है।
विधायक का तर्क
विधायक किशोर जोरगेवार का कहना है कि उनकी मां ने बेहद कठिन परिस्थितियों में परिवार का पालन-पोषण किया और अपना जीवन संघर्ष करते हुए इसी स्थान पर बिताया। उन्होंने बेटे के विधायक बनने के बाद भी टोकरियाँ बनाना और बेचना नहीं छोड़ा। जोरगेवार का मानना है कि उनकी मां का यह संघर्ष समाज के लिए प्रेरणास्रोत है और इसी कारण चौक का नाम उनके सम्मान में रखा जाना चाहिए।
कांग्रेस और विपक्ष का विरोध
इस निर्णय के खिलाफ कांग्रेस ने जोरदार प्रदर्शन किया। कांग्रेस शहर अध्यक्ष रामू तिवारी ने पालिका आयुक्त को ज्ञापन सौंपते हुए कहा कि केवल विधायक की मां होने के नाते किसी चौक का नाम बदलना अनुचित है। यदि यह तर्क स्वीकार कर लिया जाए, तो शहर के लगभग हर कोने का नाम बदला जा सकता है, क्योंकि हर स्थान पर किसी न किसी का व्यक्तिगत इतिहास जुड़ा होता है। कांग्रेस का सवाल है – “क्या विधायक की मां का योगदान गांधीजी के योगदान से बड़ा है?”
सोशल मीडिया पर बहस
गांधी चौक का नाम बदलने का निर्णय सोशल मीडिया पर भी चर्चा का विषय बन गया है। कई लोगों ने इस कदम को “गांधी के अपमान” से जोड़ा, जबकि कुछ लोगों ने इसे स्थानीय महिला के संघर्ष को सम्मान देने की पहल बताया। बहस का केंद्र यही है कि क्या गांधी जैसे राष्ट्रीय नेता के नाम को हटाकर किसी व्यक्तिगत नाम का इस्तेमाल करना सही है?
विवाद का सार
यह विवाद केवल नाम बदलने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह इस बात पर भी सवाल उठाता है कि सार्वजनिक स्थलों के नामकरण के मानक क्या होने चाहिए? क्या व्यक्तिगत भावनाओं और स्थानीय महत्व को राष्ट्रीय प्रतीकों से ऊपर रखा जा सकता है?
इस पूरे मामले में अब नजरें राज्य सरकार और उच्च प्रशासनिक अधिकारियों पर टिकी हैं कि क्या वे इस नामकरण को मंजूरी देंगे या फिर विरोध को देखते हुए निर्णय पर पुनर्विचार होगा।
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