सत्ताधारी व विपक्ष के विवादों में नप के ठेके बन सकते हैं सिरदर्द
घुग्घुस नगर परिषद (Ghugus Municipal Council) का निर्माण होने के साथ ही यह अब तक विवादों का केंद्र रहा है। नये-नये विवादों के चलते यहां नियुक्त हुए मुख्याधिकारी (CO) पदों पर विराजमान अफसरों के लगातार तबादले हुए। राजस्व विभाग से यहां आये एक अफसर ने स्थानीय सत्ताधारी दल के राजनीतिज्ञों से सही तालमेल बिठा पाएं, इसके चलते उन्हें काफी लंबे समय तक इस पद जिम्मेदारी संभालने का मौका मिला। अब नये CO के रूप में बीते शुक्रवार को नीलेश रांजनकर पदभार संभाला हैं। परंतु घुग्घुस की जनता में तर्क-वितर्क लगाये जा रहे है कि रांजनकर कितने दिनों तक टिक पाएंगे। कहा जा रहा है कि स्थानीय नेताओं के ठेके और उन ठेकों के चलते होने वाली राजनीति का शिकार नप के अफसर होते रहे हैं। इसके चलते उन पर लगातार दबाव बढ़ता चला गया और उन्होंने यहां से तबादला कर दूसरी जगह जाना ही अधिक पसंद किया। इसलिए अब नये CO रांजनकर के समक्ष अनेक चुनौतियां है।
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चंद्रपुर जिले की औद्योगिक नगरी घुग्घुस काफी मामलों में मशहूर है। यहां सीमेंट, लोह कारखाने व कोयला खानों के चलते शहर की न केवल आबादी तेजी से बढ़ी बल्कि औद्योगिक विकास भी हुआ। इन हालातों में घुग्घुस ग्राम पंचायत को गत 29 सालों के संघर्ष के बाद 31 दिसंबर 2020 को नगर परिषद घोषित किया गया था। नगर परिषद बनने के बाद पहली महिला CO (मुख्याधिकारी) अशिया जुही ने पदभार संभाला। अपने 10 महीने के कार्यकाल में अनेक विकासात्मक कार्यों को अंजाम दिया। कहा जाता है कि यहां के भाजपा के नेताओं ने उन पर जिले के बड़े नेताओं के माध्यम से आये दिन दबाव डालना शुरू कर दिया। नेताओं द्वारा उनकी इच्छा के अनुसार कार्य करने के लिए लगातार उन पर दबाव बढ़ता ही चला गया। आखिरकार वह परेशान हो गई और उन्होंने अपना तबादला मांगा तथा यहां से चली गई। उनके जाने के बाद यह चार्ज नये एडिशनल CO के रूप में सूर्यकांत पिदुरकर को दिया गया। बताया जाता है कि उन्हें भी सत्ताधारियों ने काफी परेशान किया। उन्हें राजनीतिक दबाब के चलते शहर के अमराई वार्ड में भूस्खलन मामले में पीड़ितों को अवकाश के दिन धनराशि का वितरण करने के लिए बाध्य किया गया। जब उन्होंने सत्ताधारियों के दबाव को टालना चाहा तो उन्हें शोकाॅस नोटिस थमाया गया और वे महज 3 महीने के कार्यकाल के बाद यहां से चले गये। इसके बाद घुग्घुस नप मुखिया अफसर की कुर्सी खाली देख, चंद्रपुर के तहसीलदार नीलेश गौड़ को यहां की जिम्मेदारी सौंपी गई। उन्होंने पदभार संभाला। इसके पश्चात नायब तहसीलदार जितेंद्र गदेवार को जिला प्रशासन ने अतिरिक्त जिम्मेदारी के रूप में घुग्घुस नगर परिषद का कार्य सौंपा गया। वे घुग्घुस के राजनीतिक दलों के नेताओं से तालमेल बिठाने में कामयाब रहे। लेकिन उनकी इस कामयाबी के साथ नप के ठेकों में स्थानीय नेताओं के हस्तक्षेप को लेकर उन पर गंभीर आरोप लगने की चर्चा है।
ज्ञात हो कि घुग्घुस नगर परिषद के अंर्तगत 11 प्रभाग हैं। विभिन्न विभागों के 7 इंजीनियर और अधिकारियों के अलावा कार्यलय और सफाई कर्मी ऐसे कुल 106 कर्मचारी हैं। यहां कार्यरत अनेक कर्मचारी यह ग्राम पंचायत के दौरान नियुक्त हुए थे, जो शहर के राजनीतिक दलों के नेताओं के आश्रय से नियुक्त होने की जानकारी है। कहा जा रहा है कि जलापूर्ति विभाग में 3 ठेकेदार, निर्माण विभाग में 1 ठेकेदार, स्वास्थ्य विभाग में 2 ठेकेदार, विद्युत विभाग में 2 ठेकेदार और अन्य सामग्री के लिए और भी ठेकेदार सक्रिय हैं।
बताया जाता है कि नगर परिषद स्थापित होने के बाद जब CO की नियुक्ति हुई तो नियमानुसार यहां डेवलपमेंट के अनेक कार्यों का काम CO की निगरानी में बिना किसी राजनीतिक दबाव के किये जाते थे। फिर जब राजस्व विभाग के अधिकारियों को नगर परिषद का CO बनाया गया तो यहां सत्ताधारियों के एक नेता के अनुकूल अपने निकटतम ठेकेदारों की एंट्री की गई। कहा जाता है कि टेंडर प्रक्रिया शामिल होने हेतु सिर्फ नाममात्र के लिए ठेकेदार दर्शाये जाने लगे। और मुनाफ़ा में हिस्सेदारी नेता बटोर ले जाने लगे। इस प्रकार पिछले कई वर्षों से मिलीभगत का यह खेल चल रहा है। जो अधिकारी इन नेताओं के अनुकूल नहीं होते तो उन्हें परेशान करना और यहां से तबादला लेने के लिए मजबूर किये जाने की चर्चा है। इन कारणों से नप में कोई CO टिक नहीं पाता था। यहां देखा जाए तो नेता ही एक प्रकार से ठेकेदार बन बैठे हैं। इन हालातों में नये CO रांजनकर कैसे ठेकेदारी व मुनाफे के खेल पर अंकुश लगा पाएंगे, यह देखना दिलचस्प होगा। इसलिए नये CO के समक्ष अनेक चुनौतियां हैं।