जम्मू-कश्मीर के आतंकवाद प्रभावित इलाकों में भारतीय सेना की एक और बड़ी सफलता दर्ज हुई है। 22 अप्रैल को हुए पहलगाम आतंकी हमले का मास्टरमाइंड और उसके तीन साथी आखिरकार सेना के विशेष कमांडो ऑपरेशन महादेव में मारे गए। यह एनकाउंटर सोमवार, 28 अप्रैल को श्रीनगर के पास हरवण के घने जंगलों में हुआ, जिसने देशभर में सुर्खियां बटोरीं।
इस ऑपरेशन में चंद्रपुर जिले के मूल तालुका के गाड़ीसुर्ला गांव के वीर सपूत अक्षय चिट्टावार का सक्रिय योगदान रहा। उनकी इस शौर्यगाथा की खबर गांव पहुंचते ही लोगों में खुशी की लहर दौड़ गई।
गांव में जश्न का माहौल – “हमारे अक्षय ने दिखाया कमाल”
जैसे ही एनकाउंटर की खबर गाड़ीसुर्ला पहुंची, गांव में ढोल-नगाड़ों के साथ जश्न का माहौल बन गया। लोग घर-घर मिठाई बांटने लगे। ग्रामीणों का कहना है कि अक्षय ने न सिर्फ गांव बल्कि पूरे जिले का नाम रोशन किया है।
गरीब परिवार का बेटा बना कमांडो
अक्षय का जन्म एक साधारण चरवाहा परिवार में हुआ। उनके पिता सुखदेव चिट्टावार के पास केवल एक एकड़ जमीन है और वे भेड़-बकरी पालन करके परिवार चलाते हैं। आर्थिक तंगी के बावजूद उन्होंने अपने बेटे और बेटी रीना को पढ़ाने का सपना देखा।
अक्षय ने प्राथमिक शिक्षा गांव में पूरी की और फिर आगे की पढ़ाई नागभिड तालुका के वडोना गांव में मामा के घर रहकर पूरी की। बचपन से ही सेना में जाने और देश सेवा का जुनून उनके मन में था।
कोरोना काल में सेना में भर्ती, अब श्रीनगर में तैनाती
लंबे समय तक तैयारी के बाद अक्षय ने 2020 में कोरोना काल के दौरान सेना में भर्ती होकर 9 अक्टूबर 2020 को जम्मू में पारा कमांडो के रूप में ज्वाइनिंग की। वर्तमान में वे श्रीनगर के गांदरबल इलाके में तैनात हैं।
पिता की प्रतिक्रिया – “देश के लिए बेटे को समर्पित कर गर्व महसूस कर रहा हूं”
एनकाउंटर की खबर सुनकर अक्षय के पिता सुखदेव भावुक हो गए। उन्होंने कहा –
“मेरे बेटे को बचपन से ही सेना में जाने और देश सेवा करने का सपना था। गरीबी के बावजूद उसने हार नहीं मानी और कमांडो बन गया। आज जब उसने देश के दुश्मनों का खात्मा किया है, तो मुझे और पूरे गांव को उस पर गर्व है।”
ऑपरेशन महादेव क्यों है खास?
- पहलगाम हमले का बदला: 22 अप्रैल को हुए हमले में कई जवान शहीद हुए थे। इस ऑपरेशन से सेना ने मास्टरमाइंड को खत्म कर बड़ा संदेश दिया।
- स्थानीय युवाओं की प्रेरणा: अक्षय चिट्टावार की सफलता ने ग्रामीण इलाकों के युवाओं को भी सेना में जाने की प्रेरणा दी।
- रणनीतिक सफलता: हरवण के घने जंगलों में एनकाउंटर करना सेना के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण था।
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