आगामी स्थानिक स्वराज्य संस्था (स्थानीय निकाय) चुनावों की तैयारियों के बीच महाराष्ट्र भाजपा ने संगठन को सशक्त करने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है। भाजपा ने प्रदेश के 58 जिलों में नए जिलाध्यक्षों की घोषणा कर दी है। लेकिन इस कवायद के बीच चंद्रपुर, गढ़चिरोली और वर्धा में नियुक्तियों को लेकर पार्टी के अंदर जबरदस्त घमासान मच गया है।
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भाजपा के प्रदेश चुनाव निर्णय अधिकारी चैनसुख संचेती के हस्ताक्षर से जारी परिपत्रक के अनुसार, पार्टी ने राज्य के सभी 36 जिलों के लिए कुल 58 जिलाध्यक्षों की नियुक्ति की है। यह नियुक्तियां मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, प्रदेशाध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुळे और कार्याध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल के नेतृत्व में की गईं। मगर चंद्रपुर, गढ़चिरोली और वर्धा में अध्यक्षों की घोषणा टाल दी गई है।
चंद्रपुर: वर्चस्व की जंग, भाजपा के भीतर दो धड़े आमने-सामने
चंद्रपुर जिले में जिलाध्यक्ष पद को लेकर पार्टी के भीतर जबरदस्त गुटबाजी सामने आई है। सूत्रों के मुताबिक, भाजपा के कद्दावर नेता और राज्य सरकार में मंत्री सुधीर मुनगंटीवार के वर्चस्व को चुनौती देने के लिए उनके ही पार्टी विरोधी नेताओं ने एकजुट मोर्चा खोल दिया है।
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष हंसराज अहीर, विधायक किशोर जोरगेवार, बंटी भांगड़िया, करण देवतले पूर्व विधायक शोभाताई फडणवीस और संजय धोटे ने मुनगंटीवार के खिलाफ रणनीतिक गठबंधन बना लिया है। दूसरी ओर, मुनगंटीवार को राजुरा के विधायक देवराव भोंगले पूर्व विधायक प्रो. अतुल देशकर और नागपुर निवासी पूर्व विधायक नाना शामकुले का समर्थन प्राप्त है।
मंडल प्रमुखों की नियुक्ति बनी संघर्ष का कारण
इस विवाद की शुरुआत राजुरा और चंद्रपुर विधानसभा क्षेत्र के मंडल प्रमुखों की नियुक्ति को लेकर हुई। पार्टी द्वारा भेजी गई अभिप्राय सूची पर विरोध जताया गया, जिसके बाद प्रक्रिया को स्थगित कर पुनः शुरू किया गया। इस दौरान दोनों गुटों ने ताबड़तोड़ बैठकें कर शक्ति प्रदर्शन किया।
जिलाध्यक्ष पद को लेकर जबरदस्त रस्साकशी
सूत्रों के अनुसार, लगभग 25 वर्षों में पहली बार ऐसा हुआ कि जिलाध्यक्ष पद के लिए ‘अभिप्राय नोंदणी’ (फीडबैक) की प्रक्रिया अपनाई गई। मुनगंटीवार के खेमे के वर्तमान ग्रामीण जिलाध्यक्ष हरीश शर्मा और महानगर जिलाध्यक्ष राहुल पावडे का कार्यकाल जल्द ही समाप्त हो रहा है। विरोधियों को आशंका है कि मुनगंटीवार अपने समर्थकों को पुनः इस पद पर बैठाने की कोशिश कर सकते हैं। इसी आशंका के चलते उनके विरोधी उन्हें संगठन से बाहर करने की रणनीति बना रहे हैं।
राजनीतिक मायने और आने वाले चुनाव
चंद्रपुर में यह सत्ता संघर्ष सिर्फ एक जिलाध्यक्ष पद को लेकर नहीं, बल्कि पूरे संगठनात्मक ढांचे पर वर्चस्व स्थापित करने की लड़ाई बन चुकी है। आगामी स्थानीय निकाय चुनावों में जिलाध्यक्षों की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होगी — टिकट वितरण से लेकर चुनावी रणनीति तय करने तक। ऐसे में यह टकराव भाजपा के लिए आने वाले समय में परेशानी खड़ी कर सकता है।
फैसला अब कोर कमिटी के हाथ में
सूत्र बताते हैं कि चंद्रपुर, गढ़चिरोली और वर्धा के जिलाध्यक्षों पर अंतिम निर्णय कोर कमिटी की बैठक में लिया जाएगा, जो संभवतः अगले सप्ताह आयोजित हो सकती है।
भाजपा भले ही संगठन को मजबूत करने की दिशा में आगे बढ़ रही हो, लेकिन चंद्रपुर जैसे जिलों में आंतरिक कलह उसकी राह में बड़ी चुनौती बन सकता है। यदि समय रहते समाधान नहीं निकाला गया, तो यह कलह आगामी चुनावों में पार्टी के प्रदर्शन पर सीधा असर डाल सकती है।