राजनीतिक उठापटक: 12 घंटे में BJP से कांग्रेस में वापसी का विश्लेषण
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हाल ही में चंद्रपुर जिले के पोंभूर्णा कृषि उत्पन्न बाजार समिति (APMC) के दो निदेशकों अशोक साखलवार और प्रफुल लांडे ने 24 घंटे के भीतर BJP छोड़कर कांग्रेस में घरवापसी कर ली। यह घटनाक्रम जिले की राजनीति में दल-बदल की प्रवृत्ति, राजनीतिक दबाव और गुटबाजी को उजागर करता है।
दल-बदल का घटनाक्रम
शनिवार 22 मार्च को पोंभूर्णा कृषि उत्पन्न बाजार समिति के दो निदेशकों को समिति के अध्यक्ष रविंद्र मरपल्लीवार ने चंद्रपुर ले जाकर BJP में शामिल करा दिया। यह प्रवेश वरिष्ठ BJP नेता और विधायक सुधीर मुनगंटीवार की उपस्थिति में हुआ। बताया जाता है कि कांग्रेस समर्थित ये दोनों निदेशक बाजार समिति के कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करने गए थे, लेकिन वहां उन्हें बिना पूर्व जानकारी के भाजपा में प्रवेश दिला दिया गया।
हालांकि, अगले ही दिन रविवार 23 मार्च को दोनों नेताओं ने कांग्रेस के जिलाध्यक्ष संतोषसिंह रावत और अन्य कांग्रेस नेताओं की उपस्थिति में फिर से कांग्रेस जॉइन कर ली। उन्होंने BJP में शामिल होने को “दिशा भटकाने की साजिश” करार दिया और खुद को कांग्रेस का निष्ठावान कार्यकर्ता बताया।
राजनीतिक विश्लेषण: क्यों हुआ यह घटनाक्रम?
» बाजार समिति में राजनीतिक घमासान
पोंभूर्णा कृषि उत्पन्न बाजार समिति पहले कांग्रेस के नियंत्रण में थी, लेकिन बाद में इसके अध्यक्ष रविंद्र मरपल्लीवार ने BJP का दामन थाम लिया और अपने साथ दो निदेशकों को भी ले गए। इससे कांग्रेस को झटका लगा था, लेकिन समिति के भीतर ही BJP की गुटबाजी और असंतोष बना हुआ था।
» BJP में अंदरूनी कलह और असंतोष
BJP में पहले से ही दो गुट बने हुए हैं, जो एक-दूसरे को कमजोर करने में लगे रहते हैं। एक गुट ने बाजार समिति में भर्ती प्रक्रिया पर स्टे लगवा दिया था, जिससे असंतोष और बढ़ गया। ऐसे में जब दो निदेशकों को BJP में लाया गया, तो इससे पार्टी के अंदर ही असहमति देखने को मिली।
» कांग्रेस की रणनीतिक वापसी
भाजपा में शामिल होने के बाद कांग्रेस ने तेजी से डैमेज कंट्रोल किया और इन दोनों नेताओं को अपने खेमे में वापस लाने में सफलता पाई। जिले के प्रमुख कांग्रेस नेताओं ने इस मुद्दे को गंभीरता से लिया और तुरंत इनका “घर वापसी” अभियान चलाया।
आगामी चुनावों की पृष्ठभूमि
जिले में आगामी स्थानीय निकाय चुनावों को देखते हुए कांग्रेस और BJP दोनों अपने-अपने गढ़ मजबूत करने में जुटी हैं। भाजपा चाहती है कि वह छोटे स्तर तक पकड़ बनाए रखे, जबकि कांग्रेस अपने पुराने नेताओं और कार्यकर्ताओं को वापस लाने पर ध्यान दे रही है।
भविष्य के संकेत और राजनीतिक संदेश
» BJP को झटका – 12 घंटे में हुए इस दल-बदल से BJP की रणनीति और प्रबंधन पर सवाल उठते हैं। इससे यह संकेत मिलता है कि भाजपा स्थानीय स्तर पर अपने कार्यकर्ताओं की निष्ठा बनाए रखने में सफल नहीं हो रही।
» कांग्रेस का आत्मविश्वास बढ़ा – इस घटनाक्रम से कांग्रेस को संजीवनी मिली है। पार्टी ने यह साबित किया कि अभी भी उसके कार्यकर्ता निष्ठावान हैं और बीजेपी की ओर जाने वाले नेताओं को वापस लाने की उसकी क्षमता बनी हुई है।
» गुटबाजी BJP के लिए खतरा – स्थानीय भाजपा नेताओं के बीच गुटबाजी के कारण पार्टी में असंतोष पनप रहा है, जिससे विपक्षी दलों को लाभ मिल सकता है।
» राजनीतिक मोर्चे पर सावधानी जरूरी – भविष्य में ऐसे घटनाक्रम जिले में भी देखने को मिल सकते हैं, खासकर वहां जहां स्थानीय गुटबाजी और असंतोष हावी है।
चंद्रपुर जिले में 12 घंटे के भीतर हुए इस राजनीतिक नाट्य ने यह दिखा दिया कि स्थानीय राजनीति कितनी जटिल और अप्रत्याशित हो सकती है। जहां एक ओर BJP ने अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश की, वहीं कांग्रेस ने तुरंत प्रतिक्रिया देकर अपनी स्थिति को संभाल लिया। यह घटनाक्रम जिले की राजनीति में दल-बदल और गुटबाजी की जटिलताओं को उजागर करता है और संकेत देता है कि आने वाले दिनों में जिले की राजनीति और भी दिलचस्प मोड़ ले सकती है।