पिछले विधानसभा चुनाव में चंद्रपुर जिले ने भारतीय जनता पार्टी को 6 में से 5 सीटें देकर एक मजबूत जनादेश दिया। इनमें से सबसे ज्यादा चर्चा में रही राजुरा सीट, जहां पार्टी के भीतर ही विरोध के बावजूद टिकट पाए नेता ने बड़ी जीत हासिल की और अब उन्हें लोग “दादा” के नाम से जानते हैं। लेकिन अब वही दादा ‘राजुरा के मामा’ के रूप में चर्चाओं में हैं। उनके पीछे खड़े हैं एक और प्रमुख किरदार — गुरुजी, जो दादा की राजनीतिक यात्रा के अभिन्न सहयोगी बन चुके हैं।
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गुरुजी का जलवा: घुग्घुस से राजुरा तक
इस सफर में एक प्रमुख नाम उभरा — गुरुजी, जो दादा की छाया माने जाते हैं। गुरुजी की टीम का इवेंट मैनेजमेंट क्षेत्र में मिसाल बन चुका है। चाहे वो घुग्घुस का कोई सामाजिक आयोजन हो या राजुरा में कोई राजनीतिक सभा, उनकी उपस्थिति और आयोजन क्षमता ने सबका ध्यान खींचा। यही कारण है कि लोगों के बीच यह धारणा बनी — “दादा को जनता का मामा और गुरुजी को उसका रणनीतिक शिल्पकार बनाया।”
स्थानीय चुनाव: गुरुजी की अगली पारी?
अब जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनावों की तैयारी तेज़ हो चुकी है, राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं तेज़ हो गई हैं कि गुरुजी भी राजनीति में प्रवेश की तैयारी में हैं। राजुरा विधानसभा क्षेत्र में कुल 4 तहसीलें हैं — राजुरा, गोंडपिपरी, कोरपना और जिवती। यहां कुल 12 जिला परिषद सीटें हैं। फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि किस सीट पर आरक्षण की स्थिति क्या होगी, लेकिन सूत्रों की मानें तो गुरुजी अपने अनुकूल सीट की तलाश में हैं, और यदि अवसर मिला, तो वे पहली बार स्थानीय चुनावों में अपनी किस्मत आजमा सकते हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह एक सोची-समझी रणनीति है — पहले अपने नेता की लोकप्रियता के सहारे जनता में पहुंच बनाना, फिर खुद जननेता बनकर उभरना। यदि यह दांव सही बैठा, तो घुग्घुस के ‘गुरुजी’ राजुरा के भविष्य के ‘जनसेवक’ भी बन सकते हैं।
दादा के क्षेत्र में बढ़ती गुरुजी की सक्रियता
विशेष बात यह है कि इन दिनों गुरुजी की सक्रियता अपने “राजनीतिक गुरु” यानी दादा के क्षेत्र में ज्यादा देखी जा रही है। गोंडपिपरी नगर पंचायत अध्यक्ष के विजयोत्सव में उनकी विशेष मौजूदगी, और अन्य कई आयोजनों तक, मीडिया में छपी उनकी तस्वीरें और सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो — सब इस ओर इशारा कर रहे हैं कि गुरुजी अब पर्दे के पीछे नहीं, सीधे सियासत के मंच पर उतरना चाहते हैं।
सोशल मीडिया की ताकत: छवि निर्माण या चुनावी जाल?
इन दिनों गुरुजी और विधायक की जोड़ी सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म पर वायरल हो रही तस्वीरें, वीडियो चर्चा का केंद्र बनी हुई है। और कार्यक्रमों की झलकियां जनमानस पर एक छवि गढ़ रही हैं — “गुरुजी मतलब सेवा का नया चेहरा” और भविष्य की दावेदारी, उनकी रणनीति का हिस्सा लगती हैं, पर क्या यह छवि आगामी चुनावों में वोटों में बदलेगी? क्या दादा की लोकप्रियता अब गुरुजी के लिए रास्ता बनाएगी? या फिर यह केवल रणनीतिक चतुराई तक सीमित रहेगा?
क्या गुरुजी लिखेंगे नई राजनीति की इबारत?
राजनीतिक संकेतों को अगर ध्यान से पढ़ा जाए तो स्पष्ट होता है कि “गुरुजी चला राजुरा की ओर…” सिर्फ एक कहावत नहीं, बल्कि भविष्य की एक राजनीतिक पटकथा का प्रारंभ है। अब सवाल यह है कि क्या गुरुजी, वाकई अपने गुरु की तरह जनता के बीच विश्वास अर्जित कर पाएंगे? क्या आगामी स्थानीय चुनावों में उनकी भूमिका निर्णायक होगी?
राजुरा की ओर बढ़ते कदम… यह तय है कि आने वाला वक्त राजुरा की राजनीति में एक नई करवट ला सकता है — और केंद्र में होंगे घुग्घुस के गुरुजी।