चंद्रपुर जिले का औद्योगिक शहर घुग्घूस, जो कभी कोयले की समृद्ध खदानों और वर्धा नदी के किनारे बसे अपने भूगोल के लिए जाना जाता था, आज पानी की एक-एक बूंद के लिए तरस रहा है। यह हालात केवल प्रशासनिक लापरवाही नहीं, बल्कि विकास की उस खोखली अवधारणा का परिणाम हैं, जिसमें जनता की मूलभूत आवश्यकताओं को अक्सर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।
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जनसंख्या बढ़ी, व्यवस्था पिछड़ी
2011 की जनगणना में घुग्घूस की जनसंख्या 32,654 थी, जो अब 60,000 के पार हो चुकी है। 2020 में इसे ग्रामपंचायत से नगरपरिषद का दर्जा मिला, लेकिन हैरानी की बात है कि इन साढ़े चार सालों मे अब तक एक बार भी स्थानीय चुनाव नहीं हुए। जनप्रतिनिधियों की गैरमौजूदगी में प्रशासनिक जवाबदेही भी शून्य हो गई है।
सूखती टंकियां और बेकार मशीनें
वेकोलि (WCL) की कॉलोनियों को छोड़ दें, तो बाकी शहर जल संकट से जूझ रहा है। करोड़ों की लागत से बनीं पानी की टंकियां बेकार पड़ी हैं और शहर में लगाए गए ‘पानी एटीएम’ केवल दिखावे बनकर रह गए हैं। जब पानी का स्रोत ही सूख जाए, तो तकनीक भी बेबस हो जाती है।
टैंकर आधारित जीवन
आज घुग्घूस की प्यास टैंकरों के भरोसे है—जो न तो नियमित हैं, न ही पर्याप्त। नगरपरिषद, लॉयड्स मेटल और भाजपा और काँग्रेस राजनीतिक दलों के टैंकर नागरिकों को जैसे-तैसे पानी पहुँचा रहे हैं। कई बार तो मोलभाव, सिफारिश और लंबा इंतज़ार नागरिकों की नियति बन चुका है।
बोरवेल और भूजल संकट
नई बस्तियों में बोरवेल जरूर हैं, लेकिन गिरते भूजल स्तर ने उन्हें भी बेकार बना दिया है। गर्मी शुरू होते ही समस्या और गंभीर हो जाती है। अप्रैल आते-आते जल संकट विकराल रूप ले चुका है।
नल हैं, लेकिन पानी नहीं
नगरपरिषद द्वारा दिए गए नल कनेक्शन केवल औपचारिकता हैं। उनमें पानी नहीं आता और नागरिकों को हर दिन टैंकरों के भरोसे जीना पड़ता है। यह स्थिति शर्मनाक भी है और प्रशासन की असफलता का खुला प्रमाण भी।
राजस्व करोड़ों का, सुविधा शून्य
राज्य सरकार को घुग्घूस से हर साल करोड़ों की कमाई होती है, लेकिन यहां के नागरिकों को बुनियादी सुविधाएं तक नहीं मिल रहीं। विकास के नाम पर केवल घोषणाएं और भूमिपूजन होते हैं, ज़मीन पर कुछ नहीं बदलता।
टैंकर तंत्र, प्यास बुझाइए, राजनीति नहीं
पानी की समस्या के बीच शहर में टैंकर श्रय का एक समानांतर तंत्र उभर आया है। भाजपा और कांग्रेस जैसे राजनीतिक दल अपने-अपने दावे करते हैं कि उन्होंने विकास किया, लेकिन आम जनता आज भी पीने के पानी के लिए संघर्ष कर रही है। विकास के नाम पर केवल भाषण, उद्घाटन और विज्ञापन हुए हैं, लेकिन धरातल पर हालात ज्यों के त्यों हैं।
जब तक जल संकट को प्राथमिकता नहीं दी जाएगी, घुग्घूस जैसे शहरों की हालत नहीं सुधरेगी। चुनाव हों, जिम्मेदारी तय हो और जल प्रबंधन को ईमानदारी से लागू किया जाए—यह आज की सबसे बड़ी जरूरत है।
घुग्घूस की प्यास केवल पानी की नहीं, बल्कि अधिकार, सम्मान और सुनवाई की भी है। इसे अनदेखा करना लोकतंत्र के मूल को ही सूखा देना होगा।