- नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में राजुरा विधानसभा क्षेत्र में 6,861 फर्जी मतदाताओं का मुद्दा उठाया।
- चुनाव आयोग ने इन नामों को चुनाव से पहले ही अक्टूबर 2024 में रद्द कर दिया था, लेकिन इसके पीछे के मास्टरमाइंड का अब तक पता नहीं चला है।
- पुलिस की जांच 11 महीनों से रुकी हुई है, पुलिस का कहना है कि चुनाव आयोग से जानकारी नहीं मिली, जबकि आयोग का कहना है कि जानकारी स्थानीय अधिकारी (ERO) से मांगी जानी चाहिए।
- एक RTI से नया खुलासा हुआ है कि कई असली मतदाताओं के नाम भी दो-तीन बार दर्ज हैं और उन्हें अलग-अलग वोटर आईडी जारी किए गए हैं।
राहुल गांधी के आरोपों से गरमाया मामला
विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने 18 अक्टूबर, 2025 को अपनी एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कुछ ऐसे नामों की सूची पढ़कर सुनाई, जो हैरान करने वाली थी। ये वही नाम थे जो पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर (FIR) में भी मौजूद थे। इस सूची में ‘YUH’, ‘UQJJW’, और ‘अमेरिकन बाई’ जैसे रहस्यमयी नामों के साथ-साथ ऐसे पते भी थे, जो उस विधानसभा क्षेत्र में मौजूद ही नहीं हैं। इन आरोपों ने चंद्रपुर के राजुरा विधानसभा क्षेत्र में हुए एक बड़े चुनावी फर्जीवाड़े की ओर देश का ध्यान खींचा है, जिसकी जांच पिछले 11 महीनों से किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाई है।
जमीनी हकीकत: पते फर्जी, नाम अजनबी
BBC की खबर के मुताबिक, जब इन आरोपों की पड़ताल के लिए указанные पतों पर पहुंचा गया, तो कहानी और भी साफ हो गई। सूची में एक नाम ‘अफाक हैदर जाफर हुसैन हुसैन’ का था, जिसका पता वार्ड नंबर 4, राजुरा दिया गया था। लेकिन, उस इलाके में रहने वाले हुसैन और हैदर, दोनों परिवारों ने स्पष्ट रूप से कहा कि वे इस नाम के किसी भी व्यक्ति को नहीं जानते और न ही ऐसा कोई व्यक्ति उनके इलाके में रहता है।
इसी तरह, एक अन्य मतदाता ‘अमरजीत रामजोर’ का पता ‘एस. एस. किंगडम रोड, राजुरा’ लिखा था। लेकिन स्थानीय निवासियों का कहना है कि वे जन्म से यहीं रह रहे हैं और उन्होंने अपने गांव में इस नाम की कोई सड़क कभी नहीं सुनी। ये केवल कुछ उदाहरण हैं; ऐसे रहस्यमयी और अस्तित्वहीन पतों वाले कुल 6,861 मतदाताओं की सूची थी, जिसे चुनाव आयोग ने अक्टूबर 2024 में ही रद्द कर दिया था। चुनाव आयोग ने खुद यह स्वीकार किया कि ये नाम फर्जी थे।
चुनाव आयोग और पुलिस की भूमिका: एक दूसरे पर टालमटोल
राहुल गांधी के आरोपों के बाद केंद्रीय चुनाव आयोग ने अपनी सफाई पेश की। आयोग ने कहा, “हमें नए पंजीकरण के लिए 7,592 आवेदन मिले थे। जब मतदान केंद्र-स्तरीय अधिकारियों (BLO) ने आवेदनों की जांच की, तो पाया गया कि आवेदक दिए गए पते पर नहीं रहते थे और आवेदनों के साथ आवश्यक तस्वीरें और सबूत भी नहीं थे। इसी आधार पर हमने 6,861 आवेदन रद्द कर दिए।” आयोग ने यह भी बताया कि राजुरा तहसीलदार की शिकायत पर 19 अक्टूबर, 2024 को राजुरा पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज किया जा चुका है और पुलिस आगे की जांच कर रही है।
लेकिन 11 महीने बीत जाने के बाद भी जांच आगे नहीं बढ़ी है। BBC की खबर के मुताबिक, चंद्रपुर के पुलिस अधीक्षक, मुम्मका सुदर्शन ने बताया, “हमने चुनाव आयोग को पत्र लिखा है, लेकिन अभी तक वहां से जानकारी नहीं मिली है। जब हमें आवश्यक जानकारी मिलेगी, तब हम जांच करेंगे।”
इसके जवाब में, केंद्रीय चुनाव आयोग के मीडिया प्रतिनिधि रविकांत द्विवेदी ने कहा कि सारी जानकारी स्थानीय मतदाता पंजीकरण अधिकारी (ERO) के पास उपलब्ध होती है और इसके लिए केंद्रीय चुनाव आयोग को शामिल करने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने कहा, “जांच अधिकारी को जानकारी ERO से मांगनी चाहिए। इस तरह की बातें (आयोग पर आरोप) राजनीतिक प्रचार का हिस्सा हैं और जनता को गुमराह करने का प्रयास है।”
राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का दौर
इस पूरे मामले पर सियासत भी तेज है। 3,054 वोटों से चुनाव हारने वाले कांग्रेस उम्मीदवार सुभाष धोटे ने आरोप लगाया कि यह “वोट चोरी” की एक बड़ी साजिश थी। उन्होंने कहा, “हमारे कार्यकर्ताओं ने इस फर्जीवाड़े को पकड़ा और हमने जिलाधिकारी से शिकायत की, तब जाकर ये नाम रद्द हुए। अगर हम शिकायत नहीं करते, तो इन नामों पर फर्जी मतदान हो जाता। चुनाव आयोग को लॉगिन आईडी और आईपी एड्रेस पुलिस को देना चाहिए ताकि दोषियों का पता चल सके।”
वहीं, चुनाव जीतने वाले भाजपा विधायक देवराव भोंगले ने इन आरोपों को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा, “जो मुद्दा अस्तित्व में ही नहीं है, उस पर आरोप क्यों लगाए जा रहे हैं? जब ये वोट रद्द हो चुके हैं, तो राहुल गांधी झूठे आरोप क्यों लगा रहे हैं?”
इस बीच, शेतकरी संगठन के नेता और इसी सीट से चुनाव लड़े वामनराव चटप ने दावा किया कि यह घोटाला 6,861 तक सीमित नहीं है, बल्कि फर्जी मतदाताओं की संख्या 11,000 से भी अधिक है। उन्होंने इस चुनाव को रद्द करने की मांग की है।
RTI से हुआ नया खुलासा: एक व्यक्ति, तीन वोटर आईडी
मामले में एक नया मोड़ तब आया जब राजुरा के कांग्रेस कार्यकर्ता सूरज ठाकरे ने सूचना के अधिकार (RTI) के तहत लोकसभा चुनाव के बाद बढ़े हुए मतदाताओं की सूची प्राप्त की। इस सूची से पता चला कि फर्जीवाड़े का एक और तरीका अपनाया गया था।
- एक ही युवती का नाम मतदाता सूची में तीन बार दर्ज किया गया था, और तीनों के लिए अलग-अलग वोटर आईडी नंबर जारी किए गए थे।
- हैरानी की बात यह है कि उसके तीन में से दो आवेदन एक ही दिन स्वीकार किए गए थे।
- जब उस युवती से संपर्क किया गया, तो उसने बताया कि बीएलओ ने यह कहकर उससे दोबारा दस्तावेज़ लिए थे कि पहला आवेदन रद्द हो गया है, लेकिन तीसरा आवेदन किसने भरा, इसकी जानकारी उसे नहीं है।
सूरज ठाकरे के अनुसार, सूची की जांच में अब तक ऐसे 200 मामले सामने आ चुके हैं, जहां एक ही व्यक्ति के नाम दो या तीन वोटर आईडी हैं।
अनुत्तरित प्रश्न
- यह मामला कई गंभीर सवाल खड़े करता है:
- इतनी बड़ी संख्या में फर्जी मतदाता पंजीकरण के पीछे कौन था और उसका मकसद क्या था?
- क्या यह किसी संगठित गिरोह का काम था या किसी राजनीतिक दल की साजिश?
- जिन लोगों के मोबाइल नंबर और OTP का इस्तेमाल किया गया, क्या वे केवल मोहरे थे या इस साजिश में शामिल थे?
- पुलिस की जांच 11 महीने से क्यों रुकी हुई है? क्या जानकारी का अभाव है या जांच को जानबूझकर धीमा किया जा रहा है?
- चुनाव आयोग की प्रणाली में इतनी बड़ी सेंध कैसे लगी कि एक ही व्यक्ति को कई वोटर आईडी जारी कर दिए गए?
भले ही चुनाव आयोग ने समय रहते इन 6,861 फर्जी नामों को सूची से हटा दिया, लेकिन इस साजिश के पीछे के चेहरे अब भी बेनकाब नहीं हुए हैं। जब तक इन सवालों के जवाब नहीं मिलते, तब तक चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठते रहेंगे।
