औद्योगिक प्रगति की रफ्तार से दौड़ती जिले की यह नगरी घुग्घुस अब केवल उद्योग, प्रदूषण, अपराध और राजनैतिक समीकरणों के लिए नहीं, बल्कि तेजी से उभरते एक नए वर्ग – जनहितैषियों के लिए भी चर्चित होती जा रही है। वास्तव में यह शहर उद्योगों से घिरा हुआ है, और इसी औद्योगिकीकरण के साए में समस्याएं भी दिन-ब-दिन विकराल रूप लेती जा रही हैं। इन समस्याओं का समाधान खोजने का दावा करते हुए कुछ लोग आजकल जनहितैषी बनकर उभर रहे हैं – परंतु सवाल यह है कि क्या ये वाकई जनहित में कार्य कर रहे हैं, या फिर अपने निजी स्वार्थ की पूर्ति के लिए जनहित का मुखौटा ओढ़े हुए हैं?
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इन स्वघोषित जनहितैषियों की कार्यशैली बड़ी दिलचस्प है – पहले समस्याओं पर निवेदन, फिर आरटीआई, फिर नेताओं-मंत्रियों से फ़ोटो खिंचवाने की दौड़ और सोशल मीडिया पर युद्ध स्तर पर प्रचार। समस्या चाहे सड़क की हो, ब्रिज की, जमीन अधिग्रहण की हो या किसी सरकारी विभाग में भ्रष्टाचार की, ये जनहितैषी हर मुद्दे पर अपनी स्नेही मंडली के साथ डिजिटल मोर्चा खोल देते हैं।
सोशल मीडिया का रणक्षेत्र
फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम से लेकर यूट्यूब तक इनकी सक्रियता इतनी अधिक है कि कभी-कभी वास्तविक मुद्दा गायब और प्रचार हावी हो जाता है। असल में, ये ‘डिजिटल जननायक’ सोशल मीडिया को अपने स्वार्थ सिद्ध करने का हथियार बना चुके हैं।
रणनीति का चक्रव्यूह
इनकी कार्यप्रणाली किसी सोची-समझी रणनीति से कम नहीं –
● पहले समस्या को लेकर आरटीआई या निवेदन।
● फिर थोड़े दिन इंतजार, और जब जवाब न मिले तो…
● स्नेही मित्रों की मदद से खबरों की झड़ी लगाना।
● संबंधित अधिकारी या ठेकेदार को ‘टारगेट’ करना।
● अंत में उन्हीं से समझौता कर लाभ लेना।
यानी समस्या का समाधान तो माध्यम भर है, असली लक्ष्य है – चर्चा और स्वार्थ की सिद्धि।
जनहितैषी या स्वार्थी? असली मकसद क्या है?
यह भी विशेष है कि पहले एक जनहितैषी को मीडिया ने खासा तवज्जो दी, जिससे प्रोत्साहित होकर अब एक और नया जनहितैषी जन्म ले चुका है। ये नए जनहितैषी भी अपने-अपने ‘स्नेही गिरोह’ के साथ हर मुद्दे में कूद पड़ते हैं, सोशल मीडिया की सुर्खियों में बने रहने के लिए।
क्या कहता है समाज?
समाज के सजग वर्ग और कुछ वरिष्ठ नागरिक अब इस पूरे घटनाक्रम पर गंभीर प्रश्न उठा रहे हैं। क्या ये सच में जनहित में लड़ रहे हैं या सिर्फ़ ‘हमारे प्रयासों से ही हुआ’ का ढोल पीटकर अपनी ब्रांडिंग कर रहे हैं? क्या इनका लक्ष्य जनकल्याण है या निजी लाभ?
इस विश्लेषण का उद्देश्य जनहित कार्यों की आलोचना नहीं, बल्कि उन चेहरों की पड़ताल करना है जो जनहित की आड़ में स्वार्थ का कारोबार कर रहे हैं। समाज को अब और अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है – ताकि असली जनसेवकों और नकली जनहितैषियों के बीच अंतर समझा जा सके।