चंद्रपुर में रेत को लेकर सियासी उबाल तेज होता जा रहा है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की चाची, शोभाताई फडणवीस ने राज्य सरकार की रेत नीति पर तीखी आलोचना करते हुए मौजूदा व्यवस्था पर सवाल खड़े किए हैं। और सत्ताधारी दल में विद्रोह का बिगुल फूंका है। वहीं, बीजेपी के वरिष्ठ नेता और विधायक सुधीर मुनगंटीवार ने रेत संकट को लेकर राजस्व मंत्री के साथ उच्चस्तरीय बैठक कर सरकार पर दबाव बनाया है।
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रेत की रियासत: लिखितवाडा में खुलेआम चल रहा ‘रेत साम्राज्य’
राजुरा विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत गोंदपिपरी तालुका के लिखितवाडा में नजारा कुछ ऐसा है मानो सरकार की नाक के नीचे कोई समानांतर शासन चल रहा हो। ट्रैक्टर, जेसीबी, पोकलेन और हाईवे ट्रक दिन-रात रेत को लाद रहे हैं। विशाल रेत के पहाड़ इस बात का सबूत हैं कि यहां कुछ बड़ा खेल चल रहा है। मज़े की बात यह है कि सरकार इसे “शासकीय काम के लिए आरक्षित” बता रही है, लेकिन जनता पूछ रही है—”क्या गरीब का घर शासकीय काम नहीं?”
रेत नहीं, तो क्रश सैंड ही सही: सरकार का तर्क
प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) के तहत हजारों घर मंजूर किए गए हैं, लेकिन रेत की अनुपलब्धता के चलते अधिकांश निर्माण अधर में लटके हैं। हालात ऐसे हैं कि जिला प्रशासन को क्रश सैंड (Crusher Sand) को वैकल्पिक सामग्री के रूप में अपनाने की सलाह देनी पड़ी है। हालांकि, गांवों के पास बहने वाली नदियों और नालों में प्राकृतिक रेत प्रचुर मात्रा में मौजूद है, लेकिन सरकार का कहना है कि इनसे निकाली गई रेत सिर्फ शासकीय कामों के लिए इस्तेमाल की जाएगी। आम नागरिकों को इससे वंचित रखा जा रहा है।
रेत माफिया बनाम नियम-कानून: किसकी चलेगी?
रेत अब सोने से भी महंगी हो चुकी है। माफिया सक्रिय हैं, और नेताओं की छत्रछाया में खुलेआम अवैध उत्खनन कर रहे हैं। नदियों का सीना चीर कर रेत निकाली जा रही है, जिससे अब बाढ़ का खतरा और पर्यावरणीय आपदा सिर पर मंडरा रही है। लेकिन प्रशासन या तो बेबस है, या फिर…?
सियासी समीकरणों में बदलाव के संकेत?
मुख्यमंत्री की ही रिश्तेदार द्वारा सार्वजनिक मंच से रेत नीति की आलोचना करना बीजेपी में आंतरिक मतभेदों का संकेत देता है। वहीं, सुधीर मुनगंटीवार जैसे वरिष्ठ नेता का सरकार के ही राजस्व विभाग पर दबाव बनाना यह दर्शाता है कि रेत संकट अब केवल प्रशासनिक नहीं, बल्कि राजनीतिक मुद्दा बन चुका है।
सत्ताधारी दल में दोफाड़ की आहट?
मुख्यमंत्री की ही चाची की खुलेआम नाराज़गी और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की नाराज़गी इस ओर इशारा कर रही है कि बीजेपी में अंदर ही अंदर कुछ खौल रहा है। क्या रेत का मुद्दा सत्ता के भीतर दरार डाल देगा? क्या यह केवल विकास का मुद्दा है या आने वाले चुनावों का ‘गेम चेंजर’?
क्या सरकार जागेगी?
अब देखना यह है कि क्या राज्य सरकार इस गंभीर मुद्दे पर ठोस कदम उठाएगी या फिर रेत की राजनीति यूं ही सियासी रेत में दबती जाएगी। सवाल उठता है—जब शासकीय रेत के पहाड़ खड़े हैं, तो गरीबों के घर क्यों अधूरे हैं?