चंद्रपुर जिले के विभिन्न प्रमुख शहरों से बहने वाले जीवनदायिनी वर्धा, पैनगंगा, वैनगंगा, उमा, अंधारी, नदियों से इन दिनों रेत तस्करों की हवस का शिकार बन चुकी है। जिले अनेक तहसीलों से होकर बहने वाली इन पवित्र नदियों के किनारे अब सिर्फ पानी नहीं, अवैध रेत का कारोबार बह रहा है – और वो भी फिल्मी स्टाइल में।
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‘पुष्पा-2’ का रीयल वर्ज़न – बैल बंडी से रेत तस्करी!
सूत्रों के मुताबिक, अब तक हाईवा और ट्रैक्टरों से रेत की तस्करी होती थी, लेकिन अब तस्कर एक कदम आगे बढ़ते हुए बैल बंडी का सहारा लेने लगे हैं। किसानों की बंडी को प्रति चक्कर ₹1000 की दर से किराए पर लिया जा रहा है। यह तरीका हूबहू वैसा ही है जैसा साउथ सुपरस्टार अल्लू अर्जुन ने ‘पुष्पा-2’ में लाल चंदन की तस्करी के लिए अपनाया था।
सत्ताधारी नेताओं के ‘करीबी’ कर रहे रेत का कारोबार?
चौंकाने वाली बात यह है कि इस पूरे अवैध खेल में कुछ सत्ताधारी विधायकों के करीबी नेताओं के नाम सामने आ रहे हैं। जानकारों का कहना है कि यह तस्कर स्थानीय प्रशासन और महसूल विभाग की आंखों में धूल झोंककर खुलेआम नदी से रेत निकाल रहे हैं। जबकि 🔍राज्य के महसूल मंत्री खुद कहते हैं कि “अब रेत तस्करी पर लगाम लगेगी।”
प्रशासन की दोहरी नीति – आम नागरिक तरसे, ठेकेदार मालामाल!
जहां एक ओर आम नागरिक अपने घर के निर्माण के लिए रेत के एक ब्रास के लिए दर-दर भटक रहे हैं, वहीं सरकारी ठेकेदारों को भारी मात्रा में रेत का आवंटन किया जा रहा है। लेकिन वो ठेकेदार तय सीमा से कहीं अधिक रेत निकालकर खुले बाजार में बेच रहे हैं और मालामाल भी हो रहे हैं।
पूर्व मंत्री की नाराज़गी – ‘अपने भतीजे को लगाई फटकार’
हाल ही में राज्य की 🔍पूर्व मंत्री और मुख्यमंत्री की चाची ने प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बन रहे घरों को रेत न मिलने पर अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया। उन्होंने जिल्हाधिकारी से हुई तीखी बहस साथ भतीजे मुख्यमंत्री को भी घेरा।
प्रशासन सो रहा या मजबूर है?
जिला प्रशासन ने 🔍सैंड क्रश के इस्तेमाल की सलाह देकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है। वहीं महसूल विभाग की चुप्पी पर सवाल उठ रहे हैं। क्या यह विभाग सत्ताधारी नेताओं के दबाव में काम कर रहा है? क्या इन्हें कार्रवाई करने से डर लगता है?
प्रश्न उठता है – क्या यह शासन सिर्फ कागजों पर है?
जब आम नागरिक रेत के लिए परेशान हैं और तस्कर लाखों की कमाई कर रहे हैं, तब यह सवाल उठना लाज़मी है – क्या राज्य सरकार के मंत्रियों के आदेश केवल भाषणों और फाइलों में रह जाएंगे? या फिर इस संगठित रेत माफिया पर कोई कठोर कार्रवाई होगी?
🔍चंद्रपुर की वर्धा, पैनगंगा, वैनगंगा, उमा, अंधारी नदियां आज पुकार रही है, उसे बचाने की जरूरत है। अगर अब भी समय रहते कार्रवाई नहीं हुई, तो यह रेत तस्करी सिर्फ पर्यावरण का नहीं, बल्कि शासन व्यवस्था का भी दम घोंट देगी।
राजनीति का रंगमंच बड़ा विचित्र होता है—कल तक जो नेता रेत माफियाओं के संरक्षक माने जाते थे, आज वे मंत्री के साथ मंच साझा कर रहे हैं। लगता है जैसे तस्करी अब ‘सम्माननीय सेवा’ में बदल गई हो और रेत अब केवल नदियों से नहीं, सिद्धांतों से भी खनन की जा रही हो। बैठकों में जब ये चेहरे दिखते हैं तो जनता को समझना मुश्किल हो जाता है कि निर्णय रेत पर हो रहे हैं या नैतिकता पर। सत्ता का यह खेल अब खुलकर दर्शकों के सामने खेला जा रहा है—तालियां गूंज रही हैं, पर लोकतंत्र सन्न है।