चंद्रपुर जिले के तुकुम क्षेत्र में आदिवासी समाज के अधिकारों की खुली नज़रअंदाज़ी सामने आई है। यहां एक गरीब आदिवासी परिवार की दीढ़ एकड़ ज़मीन पर कथित रूप से कुछ धनाढ्य और प्रभावशाली गैर-आदिवासी लोगों ने अवैध रूप से कब्जा कर लिया है। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि इस पूरी साज़िश में सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत के गंभीर आरोप सामने आ रहे हैं।
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क़ब्र के सन्नाटे में लिपटी पुश्तैनी ज़मीन की चीख!
जिस ज़मीन को लेकर यह घमासान मचा है, वह दिवंगत भगवान भीमा कुळमेथे के नाम पर दर्ज थी, जो वर्षों से उस क्षेत्र में रह रहे थे। सर्वे नंबर 92/2 के अंतर्गत आने वाली यह भूमि चंद्रपुर की पॉश “बैंक कॉलोनी” में स्थित है, जिसकी कीमत आज करोड़ों में आँकी जा रही है। वर्तमान में उनकी विधवा पत्नी और बेटियाँ उसी ज़मीन पर एक छोटी सी झोपड़ी में गुज़ारा कर रही हैं। लेकिन अब उन्हें न सिर्फ ज़मीन से बेदखल करने की धमकियाँ दी जा रही हैं, बल्कि उनकी झोपड़ी तक तोड़ने की बात की जा रही है।
‘पैसे’ और ‘पद’ की मिलीभगत, न्याय बेबस!
स्थानीय सूत्रों का दावा है कि कुछ रसूखदार लोगों ने पैसे और सत्ता के दम पर यह ज़मीन हड़प ली है। इनमें एक प्रादेशिक परिवहन कार्यालय के अधिकारी का नाम भी सामने आया है। हैरान करने वाली बात यह है कि यह कब्जा बिना किसी कानूनी प्रक्रिया, सूचना या अनुमति के किया गया है। कुळमेथे परिवार की बड़ी बेटी पंचफुला मडावी इस अन्याय के खिलाफ अकेली संघर्ष कर रही हैं। लेकिन वकील करने तक के पैसे न होने के कारण उनकी लड़ाई बेहद कठिन हो गई है।
कानून की धज्जियाँ: कहाँ है आदिवासी सुरक्षा कानून?
महाराष्ट्र जमीन महसूल संहिता, 1966 की धारा 36-अ के तहत आदिवासी ज़मीन गैर-आदिवासी को बेचना बिना राज्य सरकार की अनुमति के पूरी तरह गैरकानूनी है। इसके बावजूद, यहाँ नियमों को सरेआम कुचला गया। इसके अलावा, महाराष्ट्र अनुसूचित जमातींना जमीन प्रत्यार्पित करणे अधिनियम 1974 भी स्पष्ट करता है कि ऐसे अवैध हस्तांतरण को निरस्त कर ज़मीन आदिवासी को लौटाई जानी चाहिए — लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही बयाँ कर रही है।
प्रशासन भी कटघरे में!
कुळमेथे परिवार ने गंभीर आरोप लगाए हैं कि तहसील, नगर निगम और पुलिस विभाग के कुछ अधिकारी इस साजिश में शामिल हैं। उन्हें धमकियाँ दी जा रही हैं और प्रशासन द्वारा दबाव बनाकर ज़मीन खाली करवाने की कोशिश हो रही है।
राजनीतिक हलचल: शिवसेना नेता ने खोला मोर्चा
इस मामले ने राजनीतिक रंग भी ले लिया है। शिवसेना (शिंदे गुट) के जिला प्रमुख बंडू हजारे ने जिलाधिकारी से मिलकर इस अवैध कब्जे की शिकायत की और तत्काल कार्रवाई की मांग की। उन्होंने कहा: “यह पूरी प्रक्रिया गैरकानूनी और अमानवीय है। आदिवासी परिवार को न्याय मिलना ही चाहिए, अन्यथा हम सड़कों पर उतरेंगे।”
अब सवाल यह है…
क्या पंचफुला मडावी की यह अकेली लड़ाई सिस्टम की दीवार तोड़ पाएगी?
क्या करोड़ों की इस लूट के पीछे छिपे सफेदपोश बेनकाब होंगे?
क्या महाराष्ट्र सरकार आदिवासी अधिकारों की रक्षा के लिए आगे आएगी या यह मामला भी ठंडे बस्ते में चला जाएगा?
यह सिर्फ एक ज़मीन का मुद्दा नहीं है, यह उस व्यवस्था पर सीधा सवाल है जो आदिवासी समाज को आज भी हाशिए पर रखती है।
अब देखना यह है कि न्याय की देवी इस बार आँखें खोलती है या फिर एक और पंचफुला मडावी की आवाज़ सिसकियों में खो जाएगी।