चंद्रपुर जिले के मध्य चांदा वनविभाग के राजुरा वनक्षेत्र में वन्यजीव तस्करों के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान के तहत🔍 बहेलिया गिरोह के 13 सदस्यों की गिरफ्तारी के बाद एक बड़े अंतरराष्ट्रीय शिकारी सिंडिकेट का खुलासा हुआ है। वन विभाग ने चुनाळा से बहेलिया गिरोह के सरगना 🔍अजित राजगोंड सहित परिवार के 7 लोगों को हिरासत में लेने के बाद गहन जांच शुरू की। जांच के दौरान चौंकाने वाले खुलासे हुए, जिसके चलते वन विभाग की विशेष टीम ने मिझोराम, मेघालय, हरियाणा और यहां तक कि श्रीलंका तक पहुंचकर आरोपियों को गिरफ्तार किया।
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वन विभाग ने इस संगठित अपराध की गंभीरता को देखते हुए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जांच को विस्तार दिया। दो महीने की गहन पड़ताल और विशेष जांच दल (SIT) के अथक प्रयासों के बाद वन विभाग ने अंततः मंगलवार को राजुरा न्यायालय में आरोपपत्र (चार्जशीट) दाखिल कर दिया। इस चार्जशीट में वाघों के शिकार और उनके अवयवों के अवैध व्यापार से जुड़े तमाम पहलुओं को शामिल किया गया है।
शिकारी गिरोह का बड़ा नेटवर्क: पूरे भारत से होती थी वाघों के अंगों की आपूर्ति!
इस हाई-प्रोफाइल केस में अब तक 29 लोगों पर अपराध दर्ज किया जा चुका है, जिनमें से 13 को गिरफ्तार कर दंडाधिकारी न्यायालय में पेश किया गया है। जांच के दौरान खुलासा हुआ कि यह गिरोह भारत के विभिन्न राज्यों में फैले एक विशाल संगठित अपराध सिंडिकेट का हिस्सा था, जो वाघों के अंगों की सप्लाई में संलिप्त था। पकड़े गए आरोपी सिर्फ शिकार तक सीमित नहीं थे, बल्कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वाघों के अंगों की तस्करी में भी शामिल थे।
गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ में पता चला कि वाघों के पंजे, नाखून, खाल, हड्डियां और अन्य अंगों की आपूर्ति न केवल भारत के विभिन्न राज्यों में, बल्कि विदेशी बाजारों तक की जा रही थी। ये शिकारी आधुनिक तकनीकों का उपयोग कर लंबे समय से वन्यजीवों का शिकार कर रहे थे और वनों में अपनी गतिविधियों को अंजाम देकर वर्षों तक बचते आ रहे थे।
जंगल में शिकारी, पीछे अंतरराष्ट्रीय गिरोह!
🔍चंद्रपुर जिले के 🔍चुनाळा जंगल में वन विभाग की विशेष टीम ने ७ लोगों को हिरासत में लिया था। गहन पूछताछ के बाद इस संगठित अपराध के राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कनेक्शन सामने आए। इसके बाद विशेष जांच दल (SIT) ने मिझोराम, मेघालय, हरियाणा और श्रीलंका में भी छापेमारी कर गिरोह के अन्य सदस्यों को गिरफ्तार किया। अब तक कुल १३ आरोपी पकड़े जा चुके हैं, जबकि इस काले धंधे में शामिल २९ अपराधियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है।
अवैध तस्करी में कौन-कौन शामिल?
जांच में खुलासा हुआ कि गिरफ्तार आरोपी अंतरराष्ट्रीय वन्यजीव तस्करी सिंडिकेट का हिस्सा हैं। ये गिरोह विभिन्न राष्ट्रीय उद्यानों और टाइगर रिजर्व से वाघों का शिकार कर उनके अंगों को ब्लैक मार्केट में बेचते थे। इस नेटवर्क के जरिए वाघों की हड्डियां, नाखून, खाल और अन्य अंगों की तस्करी की जा रही थी।
गुप्त ऑपरेशन के तहत हुआ खुलासा
वन विभाग को लंबे समय से इस गिरोह के बारे में गुप्त सूचना मिल रही थी, लेकिन आरोपियों तक पहुंचना मुश्किल था। जांच के दौरान वन विभाग ने कड़ी गोपनीयता बरती और इस कारण पूछताछ व कार्रवाई को लेकर कई सवाल खड़े हुए थे। लेकिन, अब जब इस संगठित अपराध का पर्दाफाश हुआ है, तो यह भारत में वन्यजीव अपराधों के खिलाफ एक बड़ी जीत मानी जा रही है।
शिकारी गिरोह से जुड़े कई राज्य और देश!
जांच में यह सामने आया है कि यह गिरोह महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, असम, मिझोराम, मेघालय समेत कई राज्यों में सक्रिय था। वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि यह गिरोह वाघों के अंगों को अंतरराष्ट्रीय बाजारों में तस्करी करता था, जहां इनकी कई लाखों से करोड़ों तक की कीमत लगती है।
गुप्त ऑपरेशन और वन विभाग की सख्ती
वन विभाग ने इस जांच को अत्यंत गोपनीय रखा था, जिससे इस पूरे अभियान पर सवाल भी उठने लगे थे। हालांकि, अब जब चार्जशीट दाखिल कर दी गई है, तो यह स्पष्ट हो गया है कि वन विभाग ने एक मजबूत और ठोस केस तैयार किया है, ताकि शिकारी सिंडिकेट के इन सदस्यों को कठोरतम सजा दिलाई जा सके।
इस मामले की जांच में प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) श्रीनिवास राव, प्रधान मुख्य वन संरक्षक (नियोजन व प्रबंधन) विवेक खांडेकर, मुख्य वन संरक्षक जितेंद्र रामगावकर, ताडोबा व्याघ्र प्रकल्प के क्षेत्र संचालक प्रभुनाथ शुक्ला, चंद्रपुर के पुलिस अधीक्षक सुदर्शन मुम्मक्का, और उपवन संरक्षक पियूषा जगताप सहित वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे। इसके अलावा, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, असम, मिझोराम और मेघालय में क्षेत्रीय जांच के लिए उपवन संरक्षक श्वेता बोड्डू, आनंद रेड्डी और जांच अधिकारी पवन कुमार जोंग, चिंतन कुमार को विशेष जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
क्या था गिरोह का तरीका?
बहेलिया शिकारी गिरोह जंगलों में पारंपरिक और आधुनिक शिकार तकनीकों का उपयोग कर वाघों का शिकार करता था। ये शिकारी ऐसे गुप्त तरीके अपनाते थे जिससे उनके पकड़े जाने की संभावना कम होती। शिकार किए गए वाघों के अंगों को अलग-अलग माध्यमों से तस्करी कर ऊंचे दामों में बेचा जाता था। अंतरराष्ट्रीय बाजार में वाघों के अंगों की भारी मांग के चलते इस गिरोह ने पूरे भारत में अपना नेटवर्क फैला रखा था।
अभी भी फरार हैं कई शिकारी, चल रहा है सघन अभियान
हालांकि, इस मामले में अब तक 13 गिरफ्तारियां हो चुकी हैं, लेकिन जांच एजेंसियां अभी भी फरार आरोपियों की तलाश में जुटी हुई हैं। बताया जा रहा है कि इस गिरोह के कई और महत्वपूर्ण सदस्य अब भी पुलिस और वन विभाग की पकड़ से दूर हैं, जिन्हें जल्द ही गिरफ्तार करने के लिए विशेष अभियान चलाया जा रहा है।
भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत वाघों के शिकार और उनके अवयवों की तस्करी एक गंभीर अपराध है, जिसमें कड़ी सजा का प्रावधान है। अगर अदालत में चार्जशीट में दिए गए सबूतों को ठोस माना जाता है, तो आरोपियों को आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है।
भारत में वाघों के लिए खतरा!
भारत में वाघों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है, लेकिन शिकार और तस्करी का खतरा अभी भी बना हुआ है। यह मामला वन्यजीव अपराधों के खिलाफ भारत सरकार और वन विभाग की बड़ी जीत मानी जा रही है।
अब देखना होगा कि अदालत इन खूंखार शिकारी माफियाओं को कितनी सख्त सजा देती है और फरार आरोपियों को कब तक गिरफ्तार किया जाता है!