जिले की औद्योगिक नगरी घुग्घुस में इन दिनों सड़कों पर एक ऐसी रहस्यमयी और खौफनाक ख़ामोशी पसरी है जो किसी बड़े अपराध की गवाही देती प्रतीत होती है। यहां की गलियों, मुख्य सड़कों और कॉलोनियों में नजर आने वाले सैकड़ों आवारा गाय और बैल अचानक गायब हो गए हैं। सवाल उठ रहा है – आखिर कहां गए ये जानवर?
इन पशुओं का इस तरह एकसाथ लापता होना सामान्य संयोग नहीं हो सकता। आशंका जताई जा रही है कि यह पूरा घटनाक्रम एक संगठित तस्करी रैकेट का हिस्सा है, जो इन निर्दोष जानवरों को कत्लखानों तक पहुंचाने का काम कर रहा है।
चौंकाने वाली बात यह है कि जिन तथाकथित गोरक्षक संगठनों को इन पशुओं की रक्षा के लिए सक्रिय रहना चाहिए, वे अब पूरी तरह मौन हैं। घुग्घुस जैसे औद्योगिक और व्यस्त शहर में इतनी बड़ी संख्या में पशुओं का अचानक गायब होना न केवल पशुप्रेमियों के लिए चिंता का विषय है, बल्कि यह प्रशासनिक जवाबदेही पर भी सवाल खड़ा करता है।
सूत्र बताते हैं कि, इन गायों को रातोंरात ट्रकों में भरकर कत्लखानों की ओर रवाना कर दिया जाता है, जहां इनकी निर्मम हत्या कर मांस के रूप में भारी मुनाफा कमाया जा रहा है। यह सब एक संगठित ‘काउ स्मगलिंग सिंडिकेट’ के तहत किया जा रहा है, जिसमें कई रसूखदार चेहरे शामिल होने की आशंका है।
विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, जैसे ही किसी इलाके में गोतस्करी की गुप्त सूचना मिलती है, एक टीम बनती है — जिसमें फर्जी गोरक्षक, एक नामी पत्रकार, और कभी-कभी पुलिस दल के कुछ लोग शामिल होते हैं। यदि ‘सेटिंग’ हो जाती है, तो न कोई कार्रवाई होती है, न कोई रिपोर्ट। लेकिन अगर सेटिंग फेल हो जाए, तो मामला पुलिस में शिकायत की जाती हैं।
घुग्घुस जैसे औद्योगिक शहर में आवारा पशुओं का अचानक गायब होना महज संयोग नहीं हो सकता। यह किसी गंभीर तस्करी नेटवर्क का हिस्सा हो सकता है। अब देखना यह है कि प्रशासन इस पर कब तक मौन रहता है और कब कोई ठोस कार्रवाई होती है।
जनता का सवाल: “गायें कहां गईं? और अगर गोरक्षक चुप हैं, तो क्या सच में कोई घिनौना व्यापार हो रहा है उनकी आड़ में?”
