गोंडवाना विवि की गिरती साख, घटती छात्र संख्या और नेतृत्व पर उठते सवाल; एजेंटों से एडमिशन की मजबूरी बनी कलंक
GondwanaUniversity: चंद्रपुर – एक समय शिक्षा और नवाचार का प्रतीक माने जाने वाला गोंडवाना विश्वविद्यालय आज बुरी तरह से संकट के दौर से गुजर रहा है। मुंबई, पुणे, बेंगलुरु और हैदराबाद जैसे शहरों में गोंडवाना विवि की डिग्री को अहमियत न मिलने से छात्रों और अभिभावकों का भरोसा लगातार डगमगा रहा है। इसी के चलते अधिकांश विद्यार्थी बारहवीं के बाद अन्य राज्यों या बड़े शहरों के कॉलेजों में दाखिला लेना पसंद कर रहे हैं।
घटती विश्वसनीयता और गिरता नामांकन
विश्वविद्यालय से सम्बद्ध महाविद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या में भारी गिरावट दर्ज की जा रही है। प्रवेश के लिए पर्याप्त छात्र जुटा पाना चुनौती बन चुका है। कभी शिक्षण का हॉटस्पॉट माने जाने वाले ये संस्थान अब ‘एडमिशन एजेंटों’ की मदद से छात्र ढूंढने को मजबूर हैं। इन एजेंटों को हर छात्र लाने पर कमीशन दिया जाता है। यह प्रथा अब केवल कला, वाणिज्य और विज्ञान तक सीमित नहीं रही, बल्कि इंजीनियरिंग, बीएएमएस, नर्सिंग, बीएड, एमबीए, बीसीए जैसे प्रोफेशनल कोर्सेज भी इससे अछूते नहीं हैं।
प्राचार्य से लेकर कर्मचारी तक ‘एडमिशन ड्यूटी’ पर
स्थिति इतनी विकट हो गई है कि प्राचार्य, अंशकालिक प्राध्यापक और गैर-शैक्षणिक कर्मचारियों को भी छात्र लाने की जिम्मेदारी सौंपी जा रही है। कुछ कॉलेजों में तो खुले शब्दों में कहा गया है—“छात्र लाओ, नहीं तो नौकरी छोड़ो”। इससे कर्मचारियों में भय, आक्रोश और असंतोष का माहौल बना हुआ है।
लुभावने ऑफर, फिर भी नतीजा शून्य
छात्रों को आकर्षित करने के लिए महाविद्यालयों ने बस सुविधा, फीस माफी और अन्य सुविधाएं देने की घोषणा की है। सोशल मीडिया पर लगातार प्रचार भी किया जा रहा है, फिर भी विद्यार्थियों की संख्या में खास बढ़ोतरी नहीं हो रही है।
कुलगुरु पर गंभीर आरोप, नेतृत्व और एकपक्षीय कार्यक्रमों पर सवाल
विश्वविद्यालय के कुलगुरु डॉ. प्रशांत बोकारे पर यह आरोप लग रहे हैं कि वे शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के बजाय एकपक्षीय वैचारिक कार्यक्रमों पर अधिक ध्यान दे रहे हैं। इससे विश्वविद्यालय की छवि और गुणवत्ता पर गहरा आघात हुआ है। साथ ही, भ्रष्टाचार, जमीन घोटाले और खेल स्पर्धाओं में अनियमितताओं जैसे विवादों ने विवि की प्रतिष्ठा और भी खराब कर दी है।
भविष्य की चिंता:
आज गोंडवाना विश्वविद्यालय की स्थिति इतना बिगड़ चुकी है कि यदि नेतृत्व ने कठोर निर्णय नहीं लिए, तो आने वाले वर्षों में विश्वविद्यालय के अस्तित्व पर भी संकट गहराता जाएगा।
यह समय है जब विश्वविद्यालय को एजेंटों और दिखावटी प्रचार की बजाय गुणवत्ता, रोजगारपरक पाठ्यक्रम और छात्रों के भरोसे पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
