महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ा भूचाल! ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर लंबे समय से लटकी हुई चुनाव प्रक्रिया को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने आज ऐतिहासिक और कड़ा फैसला सुनाया है। अब चार महीनों के भीतर राज्य में स्थानीय निकाय चुनाव कराने का आदेश दिया गया है, जो एक बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम माना जा रहा है।
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सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि ओबीसी आरक्षण की स्थिति वही रहेगी जो वर्ष 2022 से पहले थी। यानी ओबीसी वर्ग को पहले जितनी सीटें आरक्षित थीं, उतनी ही सीटें अब भी आरक्षित रहेंगी। कोर्ट ने राज्य चुनाव आयोग को निर्देश दिया है कि चार सप्ताह के भीतर चुनाव अधिसूचना जारी की जाए और चार महीनों के भीतर चुनाव प्रक्रिया पूरी की जाए।
इस मुद्दे पर याचिकाकर्ताओं की ओर से वकीलों ने कोर्ट को बताया कि महाराष्ट्र में कई जगहों पर पिछले पांच वर्षों से प्रशासक कार्यरत हैं, जो संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है। लोकनियुक्त प्रतिनिधियों का न होना लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है, ऐसा कोर्ट ने भी माना।
कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि, “अनियमितताएं सामने आई हैं, और अब चुनाव कराना आवश्यक है।“ जब कोर्ट ने पूछा कि क्या चुनाव कराने में किसी पक्ष को आपत्ति है, तो राज्य सरकार ने स्पष्ट किया कि उन्हें चुनाव कराने पर कोई आपत्ति नहीं है।
ओबीसी आरक्षण पर सुनवाई जारी रहेगी
गौर करने वाली बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी आरक्षण पर सुनवाई अभी भी जारी है, और अंतिम निर्णय आने के बाद उस आदेश को सभी को मानना पड़ेगा। लेकिन जब तक अंतिम निर्णय नहीं आता, तब तक 2022 से पूर्व की आरक्षण व्यवस्था लागू रहेगी।
यदि किसी क्षेत्र में चुनाव कराना संभव न हो तो चुनाव आयोग सुप्रीम कोर्ट से समय-सीमा बढ़ाने की अनुमति ले सकता है, ऐसा भी कोर्ट ने स्पष्ट किया है।
यह फैसला उन लाखों मतदाताओं के लिए बड़ी राहत है जो वर्षों से लोकप्रतिनिधियों के अभाव में विकास कार्यों से वंचित रहे। अब देखना होगा कि चुनावी रणभूमि में कौन-कौन से नए समीकरण बनते हैं और ओबीसी आरक्षण को लेकर आगे की राजनीति क्या रुख लेती है।
राजनीतिक हलकों में हड़कंप मच गया है, और सभी दल अब चुनावी तैयारियों में जुट गए हैं। यह निर्णय न केवल ओबीसी समाज के लिए बल्कि महाराष्ट्र की लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए भी एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है।