सुप्रीम कोर्ट का आदेश: महाराष्ट्र में 4 महीने के भीतर होंगी स्थानीय निकाय चुनाव, राज्य चुनाव आयोग ने शुरू की तैयारी
देश की सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने महाराष्ट्र सरकार और राज्य चुनाव आयोग को बड़ा आदेश देते हुए कहा है कि राज्य की सभी स्थानीय स्वराज्य संस्थाओं के चुनाव आगामी चार महीनों के भीतर कराए जाएं। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्देश के बाद, चुनाव आयोग ने तैयारियां शुरू कर दी हैं और संकेत मिल रहे हैं कि ये चुनाव मॉनसून के बाद कराए जा सकते हैं।
Whatsapp Channel |
क्या है मामला?
राज्य में पिछले दो से पाँच वर्षों से महापालिकाएं, जिल्हा परिषदें और नगरपालिका, ग्राम पंचायतें चुनाव के इंतजार में हैं। इस विलंब के चलते इन संस्थाओं का संपूर्ण कार्यभार प्रशासकों के हाथों में है। लोकतांत्रिक प्रक्रिया ठप होने पर कई बार सवाल उठे, और अब न्यायालय के हस्तक्षेप से स्थिति बदलती नजर आ रही है।
कितनी संस्थाएं होंगी शामिल?
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, महाराष्ट्र की 29 महापालिकाएं, 32 जिल्हा परिषदें, 687 नगरपालिका संस्थाएं और 1500 से अधिक ग्राम पंचायतें इस चुनावी प्रक्रिया में शामिल होंगी। कुल मिलाकर, राज्य भर में एक व्यापक लोकतांत्रिक महोत्सव की नींव रखी जा चुकी है।
चुनाव आयोग की तैयारियाँ: मॉनसून के बाद की रणनीति
राज्य चुनाव आयुक्त दिनेश वाघमारे ने बताया कि निम्नलिखित प्रक्रियाएं तुरंत शुरू की गई हैं:
1. वॉर्ड डिलिमिटेशन: चुनाव क्षेत्रों की नई सीमाएँ तय करना।
2. आरक्षण प्रक्रिया: SC/ST/OBC और महिला आरक्षण का निर्धारण।
3. मतदाता सूची अपडेट: नए मतदाताओं को जोड़ा जाएगा।
संभावित तिथि: मॉनसून के बाद सितंबर-अक्टूबर 2024
राजनीतिक तूफान की आहट
इस फैसले से राज्य की राजनीति में जबरदस्त हलचल मच गई है। स्थानीय निकाय चुनाव अक्सर राज्य सरकार के प्रदर्शन पर जनमत का पहला परीक्षण माने जाते हैं। शिवसेना (शिंदे), शिवसेना (उद्धव), एनसीपी (अजित पवार व शरद पवार), कांग्रेस और बीजेपी – सभी दल अब कमर कसते दिख रहे हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि ये चुनाव 2024 के लोकसभा व विधानसभा चुनावों के बाद अब राज्य में सत्ता समीकरणों की अगली परीक्षा होंगे। यही वजह है कि सभी दलों के लिए यह चुनावी संग्राम प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुका है।
महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनावों की घोषणा ने राज्य की राजनीति में एक नई जान फूंक दी है। यह सिर्फ चुनाव नहीं, बल्कि लोकतंत्र के फिर से जागृत होने का शंखनाद है। चार महीने का समय – और उसके बाद जनता की अदालत में नेता, पार्टियां और उनके कामकाज… अब देखना है कौन पास होता है और कौन फेल।