भारत ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्यातिप्राप्त ताडोबा-अंधारी टाइगर रिजर्व की सफारी अब आम पर्यटक के बजट से बाहर होती जा रही है। प्रशासन ने सफारी दरों में भारी इजाफा करते हुए पर्यटकों पर हजारों रुपये का अतिरिक्त बोझ डाल दिया है। साथ ही, मानसून की दस्तक के साथ ही 1 जुलाई से कोर ज़ोन में सफारी बंद करने का फैसला किया गया है, जबकि बफर ज़ोन में सफारी जारी रहेगी।
नए नियम क्या हैं? जानिए कितना खर्च बढ़ा
ताडोबा टाइगर रिजर्व के कोर और बफर जोन में सफारी की नई दरें कुछ इस प्रकार हैं:
कोर ज़ोन सफारी शुल्क:
| बुकिंग अवधि | सप्ताह के दिन | शनिवार-रविवार / अवकाश |
| 60-120 दिन पहले | ₹8,800 | ₹12,800 |
| 1-59 दिन पहले | ₹5,800 | ₹6,800 |
नए सीज़न (1 अक्टूबर) से कोर ज़ोन की ये दरें लागू होंगी।
बफर ज़ोन सफारी शुल्क (1 जुलाई से लागू):
सप्ताह के दिन ₹6,000
शनिवार-रविवार / अवकाश ₹7,000
इस अचानक बढ़ोत्तरी से रिज़ॉर्ट मालिकों और स्थानीय गाइड्स में भारी नाराज़गी है। उनका कहना है कि यह निर्णय बिना किसी पूर्व सूचना के लिया गया, जिससे पर्यटक भ्रमित हो सकते हैं और पर्यटन पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।
मानसून की मार – कोर ज़ोन रहेगा बंद
हर साल की तरह इस बार भी मानसून के दौरान कोर ज़ोन को पर्यटकों के लिए बंद कर दिया गया है। इसका कारण जंगल में मौजूद कच्चे मिट्टी के रास्ते हैं, जो बारिश में फिसलनभरे और खतरनाक हो जाते हैं। लेकिन अच्छी खबर यह है कि बफर ज़ोन में मानसून सफारी जारी रहेगी। यहाँ 16 प्रवेश द्वार हैं और मौसम को ध्यान में रखते हुए हर गेट पर स्थिति के अनुसार सफारी संचालन का निर्णय लिया जाएगा।
क्या है इसका असर?
1. पर्यटकों की जेब पर सीधा असर: बढ़ी हुई कीमतों के कारण आम और मध्यमवर्गीय पर्यटकों के लिए सफारी अब महंगी साबित होगी।
2. स्थानीय अर्थव्यवस्था को झटका: गाइड, ड्राइवर और रिसॉर्ट संचालकों को कम बुकिंग की आशंका सता रही है।
3. मानसून पर्यटन सीमित: केवल बफर जोन तक सीमित सफारी का अनुभव, जंगल की पूरी भव्यता देखने को नहीं मिलेगी।
4. प्राकृतिक संतुलन का ध्यान: मानसून में कोर ज़ोन को बंद करने का उद्देश्य जैव विविधता को नुकसान से बचाना है, जो पर्यावरण की दृष्टि से एक ज़रूरी निर्णय है।
वन्यजीव विशेषज्ञों की राय
वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि प्रवेश शुल्क में वृद्धि यदि पारदर्शी तरीके से की जाए और उसका उपयोग संरक्षित क्षेत्र की बेहतर निगरानी, पर्यावरणीय अध्ययन और गाइड्स के प्रशिक्षण में हो, तो यह दीर्घकालीन दृष्टि से फायदेमंद हो सकता है। लेकिन अचानक किया गया फैसला संपूर्ण इको-टूरिज्म चक्र को असंतुलित कर सकता है।
ताडोबा सफारी को लेकर यह बदलाव सिर्फ दरों का नहीं, बल्कि पर्यटन नीति के दृष्टिकोण का संकेत है। अब सवाल यह है कि क्या बढ़ती कीमतों के बीच पर्यटक ताडोबा की ओर रुख करेंगे या फिर इस फैसले का असर जंगल की रौनक पर भी पड़ेगा?
