बौद्ध पूर्णिमा की रात ताडोबा में वन्यजीवों की अनोखी गणना: 63 बाघ, 5500 से अधिक वन्यजीव देखे गए, पर टिकट कीमतों पर विवाद बरकरार
बौद्ध पूर्णिमा की चांदनी रात में ताडोबा-अंधारी व्याघ्र प्रकल्प (Tadoba-Andhari Tiger Reserve) में एक अद्वितीय “निसर्ग अनुभव कार्यक्रम” का आयोजन किया गया। इस विशेष अवसर पर कोर और बफर क्षेत्रों में एक साथ 5502 वन्यजीवों की गणना की गई, जिसमें रोमांचकारी रूप से 63 बाघ, 13 तेंदुए और सैकड़ों अन्य दुर्लभ प्राणी शामिल हैं।
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जंगल की गोद में पर्यटकों का रोमांचक अनुभव
ताडोबा प्रबंधन द्वारा इस आयोजन की तैयारियां 15 दिन पहले से ही शुरू कर दी गई थीं। बफर क्षेत्र में 81 और कोर क्षेत्र में 96 ‘मचाण’ (ऊंचे टॉवरनुमा मंच) बनाए गए, जिन पर दो-दो पर्यटकों के साथ एक प्रशिक्षित गाइड की तैनाती की गई थी। बफर क्षेत्र में 162 पर्यटक तो कोर क्षेत्र में 183 वन अधिकारी और कर्मचारी इस पूरी प्रक्रिया में शामिल रहे। शाम 5:30 बजे तक सभी पर्यटकों को वन विभाग द्वारा तय 16 प्रवेश द्वारों से उनके मचाण तक पहुंचाया गया।
गिनती के आंकड़े चौंकाने वाले
गणना में कुल 5502 वन्यजीव देखे गए –
बाघ: 63, तेंदुआ: 13, भालू: 93, जंगली कुत्ता: 96, मूंगूस: 100, जंगली बिल्ली: 7, सांबर: 553, गौर: 882, चितल: 1737, नीलगाय: 87, मोर: 551, खरगोश: 14, चिंकारा: 13, मगर: 6उदबिलाव, सायळ, तडस, भेडकी आदि: सैकड़ों की संख्या में कोर क्षेत्र में सबसे अधिक 3746 तो बफर क्षेत्र में 1756 वन्यजीवों की उपस्थिति दर्ज की गई।
इतिहास और परंपरा का संगम
यह पारंपरिक “मचाण गणना पद्धति” अंग्रेजी राज के समय से प्रचलित है, जिसमें पूर्णिमा की रात्रि को चांदनी के उजाले में प्यासे जानवरों को जलस्रोतों पर आते देखा और गिना जाता था। आज भले ही GPS, ट्रैप कैमरे और पगमार्क जैसे आधुनिक तकनीकों का प्रयोग किया जाता है, लेकिन इस पारंपरिक अनुभव को जीवित रखने के लिए अब भी यह प्रक्रिया सीमित स्तर पर पर्यटकों के लिए खुली जाती है।
शुल्क बना विवाद का विषय
जहां यह कार्यक्रम रोमांच और वन्यजीव प्रेमियों के लिए एक अनूठा अवसर है, वहीं इसकी टिकट दरों को लेकर विवाद भी गर्म है। इस कार्यक्रम के लिए प्रति व्यक्ति ₹4,500 का शुल्क निर्धारित किया गया, जो आम नागरिकों के लिए काफी महंगा माना जा रहा है। पहले यह अनुभव निःशुल्क था, लेकिन बीते कुछ वर्षों से शुल्क लागू किया गया है, जिसमें स्थानीय ग्रामीणों को भी कोई रियायत नहीं दी जाती।
विशेषज्ञों की राय
मुख्य वन संरक्षक डॉ. जितेंद्र रामगावकर के अनुसार, “इस प्रकार की गणना न केवल वन्यजीवों की संख्या जानने का माध्यम है, बल्कि जंगल के इकोसिस्टम को समझने और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी एक महत्त्वपूर्ण कदम है।”
यह आयोजन निश्चित ही वन्यजीव संरक्षण के इतिहास में एक विशिष्ट पहल बनता जा रहा है। लेकिन इसमें शामिल शुल्क और स्थानीय लोगों की भागीदारी पर उठते सवाल सरकार और वन विभाग के लिए चेतावनी हैं। यदि इस अनोखे अनुभव को वाकई जन-जन तक पहुंचाना है, तो इसकी आर्थिक पहुँच और समावेशिता पर गंभीरता से पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।
क्या ताडोबा इस शानदार अनुभव को ‘वन्य पर्यटन’ का मॉडल बना पाएगा या यह विशिष्ट वर्ग तक ही सीमित रह जाएगा – यह आने वाला समय बताएगा।