- पर्यटन सीजन के पहले दिन ही ताडोबा के गेट पर प्रदर्शन, एक भी जिप्सी को प्रवेश नहीं देने की चेतावनी।
- वन मंत्री को सांसद का अल्टीमेटम, स्थानीय लोगों के लिए महंगी सफारी बनी “सपनों की बात”।
- बाघों के हमले में जान गंवाने वाले स्थानीय लोगों पर ही आर्थिक बोझ क्यों? – सांसद धानोरकर का सवाल।
ताडोबा-अंधारी बाघ अभयारण्य (TATR) में स्थानीय निवासियों के साथ हो रहे आर्थिक अन्याय के विरोध में आज, १ अक्टूबर २०२५ से, चंद्रपुर की सांसद प्रतिभा धानोरकर के नेतृत्व में एक बड़ा और निर्णायक आंदोलन शुरू हो गया है। नए पर्यटन सीजन के पहले ही दिन आंदोलनकारियों ने ताडोबा के प्रवेश द्वारों पर ‘जिप्सी प्रवेश बंद’ आंदोलन का बिगुल फूंक दिया है, जिससे सफारी के लिए आईं जिप्सियों के पहिए थम गए हैं।
सांसद धानोरकर ने वन मंत्री गणेश नाईक को सीधे और अंतिम चेतावनी दी है कि जब तक स्थानीय लोगों के लिए अत्यधिक प्रवेश शुल्क कम नहीं किया जाता, ताडोबा में एक भी जिप्सी को प्रवेश नहीं करने दिया जाएगा। यह आंदोलन चंद्रपुर के उन नागरिकों के अधिकारों की लड़ाई है, जिनके लिए ताडोबा की पहचान तो है, लेकिन उसकी सफारी एक महंगा सपना बनकर रह गई है।
चंद्रपुर जिला, जो एक ओर अपनी बाघों की आबादी और ताडोबा अभयारण्य के लिए विश्व प्रसिद्ध है, वहीं दूसरी ओर मानव-वन्यजीव संघर्ष की गंभीर समस्या से भी जूझ रहा है। विडंबना यह है कि जिन स्थानीय लोगों को अक्सर बाघों के हमलों का शिकार होना पड़ता है, उन्हीं को अपने ही जिले के बाघों को देखने के लिए हजारों रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं।
वर्तमान में, ताडोबा के कोर ज़ोन में शनिवार और रविवार को एक सफारी के लिए प्रवेश शुल्क ₹१२,६०० तक पहुँच गया है। यह भारी-भरकम राशि स्थानीय ग्रामीणों और चंद्रपुर के आम नागरिकों की पहुँच से कोसों दूर है। इसी अन्याय के खिलाफ सांसद प्रतिभा धानोरकर ने स्थानीय लोगों की आवाज बनकर इस आंदोलन का नेतृत्व किया है।
स्थानीय लोगों का दर्द और सांसद का दृढ़ संकल्प
सांसद प्रतिभा धानोरकर ने वन विभाग को लिखे अपने पत्र में स्पष्ट रूप से कहा, “यह कितना बड़ा अन्याय है कि जो नागरिक बाघों के हमलों में अपनी जान गंवा रहे हैं, उन्हीं से बाघ देखने के लिए हजारों रुपये वसूले जा रहे हैं। ताडोबा हमारे जिले की पहचान है, लेकिन आज यही ताडोबा यहाँ के स्थानीय लोगों के लिए पराया हो गया है। हम इस अन्याय को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेंगे।”
उन्होंने जोर देकर कहा कि यह केवल एक मांग नहीं, बल्कि चंद्रपुर के नागरिकों के अधिकारों के लिए एक निर्णायक संघर्ष है। उनका कहना है कि जब तक सरकार इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप कर स्थानीय लोगों को न्याय नहीं दिलाती, तब तक यह ‘जिप्सी बंदी’ आंदोलन जारी रहेगा। इस आंदोलन का उद्देश्य पर्यटन को रोकना नहीं, बल्कि उसे स्थानीय लोगों के लिए सुलभ और न्यायसंगत बनाना है।
