भाजपा की आंतरिक राजनीति ने एक बार फिर जोरदार भूचाल लाया है। चंद्रपुर और राजुरा विधानसभा क्षेत्र में मंडल अध्यक्षों की चयन प्रक्रिया शुक्रवार को एक जबरदस्त तनावपूर्ण वातावरण में पूरी हुई। इस पूरे घटनाक्रम ने न सिर्फ पार्टी के अंदरूनी मतभेदों को उजागर कर दिया, बल्कि बड़े नेताओं के बीच चल रही रस्साकशी को भी साफ तौर पर सामने ला दिया।
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रणजित सावरकर की निगरानी में उठा बवाल
प्रदेश महामंत्री रणजित सावरकर को निरीक्षक के रूप में इस प्रक्रिया की निगरानी के लिए भेजा गया था। शुक्रवार सुबह 10 बजे श्यामा प्रसाद मुखर्जी वाचनालय में बैठक शुरू हुई। पहले चरण में उन्होंने मंडलवार मतदाताओं की सूची पढ़कर सुनाई। इसी सूची को लेकर पूर्व नगरसेवक सुभाष कासनगोट्टूवार ने कुछ नामों पर आपत्ति जताई, जिसके चलते कई नाम सूची से हटाए गए। इस फैसले ने मौजूद पदाधिकारियों के बीच गर्मा-गर्म बहस और शाब्दिक संघर्ष को जन्म दिया।
निकषों पर मचा घमासान, मतदाताओं की संख्या हुई आधी
पार्टी ने तय किया था कि सिर्फ उन्हीं लोगों को अभिप्राय देने का अधिकार मिलेगा जो चयन के निकषों पर खरे उतरते हों। इससे मतदाताओं की संख्या आधी रह गई, लेकिन दोनों गुटों ने अपने-अपने समर्थकों का जमावड़ा लगा दिया, जिससे माहौल और भी तनावपूर्ण हो गया।
जोरदार दांव-पेंच: जोरगेवार बनाम मुनगंटीवार
इस प्रक्रिया को प्रतिष्ठा की लड़ाई बना बैठे थे चंद्रपुर के विधायक किशोर जोरगेवार और राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष हंसराज अहीर। दोनों ने एक ही दिन में तीन बैठकें कर समर्थकों को अपनी ओर मोड़ने की पूरी कोशिश की। वहीं भाजपा के वरिष्ठ नेता व मंत्री सुधीर मुनगंटीवार भी चुप नहीं बैठे। उन्होंने इरई नदी खोदाई कार्यक्रम से समय निकालकर जोरगेवार को टक्कर दी और अपनी उपस्थिति से संदेश देने की कोशिश की।
स्वागत के फलक से शुरू हुआ तकरार
रणजित सावरकर के चंद्रपुर आगमन पर मुनगंटीवार गुट ने शहरभर में स्वागत के फलक लगवाए। यह बात जोरगेवार गुट को चुभ गई और उन्होंने भी तुरंत अपने फलक लगवाकर जवाबी दांव चला। यह महज एक ‘स्वागत’ नहीं, बल्कि राजनीतिक वर्चस्व की एक बानगी थी।
राजुरा में भी दो ध्रुव: भोंगले बनाम अहीर-धोटे
राजुरा में भी कुछ अलग तस्वीर नहीं थी। यहां विधायक देवराव भोंगले एक ओर थे, तो दूसरी ओर अहीर और पूर्व विधायक संजय धोटे। साथ ही मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की चाची शोभा फडणवीस की भी सक्रियता ने संकेत दिए कि मंडल अध्यक्ष पद के पीछे कितनी बड़ी रणनीति काम कर रही है।
घोषणा के बाद होगा शक्ति परीक्षण का परिणाम स्पष्ट
दो दिनों में प्रदेश भाजपा कार्यालय से मंडल अध्यक्षों की अधिकृत घोषणा होने वाली है। तभी यह तय होगा कि जोरगेवार-अहीर की सधी रणनीति रंग लाई या मुनगंटीवार की पकड़ अभी भी मजबूत बनी हुई है। फिलहाल इतना तय है कि इस चयन प्रक्रिया ने भाजपा के अंदरूनी घावों को सतह पर ला खड़ा किया है।
मंडल अध्यक्ष की नियुक्ति एक सामान्य संगठनात्मक कार्य होता है, पर चंद्रपुर-राजुरा में यह सत्ता, वर्चस्व और व्यक्तिगत प्रतिद्वंद्विता की खुली लड़ाई बन चुकी है। आने वाले दिनों में भाजपा को अपने अंदरूनी संकट से कैसे निपटना है, यह इन नियुक्तियों के बाद ही साफ होगा।